श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी इस सिद्धान्त का प्रमाण देते हैं।
सूत्रं – ७९
“एकान्ती व्यपदेष्टव्यः”
सरल अनुवाद
“एकान्ती व्यपदेष्टव्यः” – प्रपन्न की पहचान …
व्याख्या
श्रीविष्णु पुराण “एकान्ती व्यापदेष्टव्यो नैव ग्राम कुलादिभिः | विष्णुना व्यापदेष्टव्यस् तस्य सर्वं स एव हि ||” (प्रपन्न की पहचान उसके मूल गाँव, कुल आदि से नहीं होनी चाहिए। क्या वह भगवान विष्णु के साथ अपने सम्बन्ध से नहीं जाना जाता? उसके लिए मूल गाँव, कुल आदि सब कुछ भगवान विष्णु ही हैं) इसके साथ ही यह समझाया गया है कि प्रपन्न की पहचान उसके मूल गाँव, कुल आदि से नहीं होनी चाहिए। वह विष्णु से जुड़े हुए अपने संबंध से जाना जाता है। उसके लिए मूल गाँव, कुल आदि सब कुछ भगवान विष्णु ही हैं।
जैसा कि चेतन का स्वयत्न निवृत्ति (स्व-प्रयास का बंधन) आदि सूत्रं ७० “प्राप्तावुम्…” में देखा जाता है,
- उसका कारण,
- ऐसे व्यक्ति के प्रयास और चेतन का परिणाम
- आत्मा की यह दासता उसकी आंतरिक पहचान है जो शेषत्व आदि की प्रधानता पर आधारित है जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप हैं और ऐसी दासता एक आंतरिक गुण है
- ऐसी दासता के विपरीत अर्थात स्वातंत्र्य आदि आकस्मिक हैं
- ऐसे विपरीत गुणों के उन्मूलन पर, दासता ही आत्मा की पहचान होगी
इन ऊपर उक्त विषयों पर प्रकाश डालकर, यह भी स्पष्ट कर कि इस चेतन की पहचान उसके मूल गाँव, वंश आदि से नहीं होती है, समझाए गए सिद्धांत का प्रमाण भी इस सूत्रं में दिखाया गया है। सूत्रं ७१ से प्रारम्भ होकर इस सूत्रं तक प्रासंगिक जानकारी हैं (भगवान ही उपाय होने के विषय के लिए)।
इस प्रकार, इस [दूसरे] प्रकरण में, निम्नलिखित सिद्धांतों को समझाया गया है।
- स्थान आदि के आधार पर प्रपत्ती के लिए कोई प्रतिबंध नहीं है और केवल शरणागति का उद्देश्य ही महत्वपूर्ण है
- शरणागति का वह उद्देश्य क्या है? [अर्चावतार रूपी भगवान]
- ऐसे अर्चावतार भगवान की महानता
- ऐसे भगवान के प्रति शरणागति करने वाले तीन प्रकार के व्यक्तित्व
- ऐसी प्रपत्ती को उपाय (साधन) मानने पर होने वाला दोष
- प्रपत्ती का वास्तविक स्वरूप आदि
- जो शरण है, वही साधन है
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/04/srivachana-bhushanam-suthram-79-english/
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