श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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अवतारिका

तत्पश्चात् श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी योग्य प्रपन्न (जो शरणागति करता है) की जाँच करते हैं। उपाय (साधन) उपेय (लक्ष्य) की प्राप्ति के लिए किया जाने के कारण, और पहले भी सूत्रं ६५ और सूत्रं ७२ में लक्ष्य के लिए योग्यता के बारे में कहा जाने के कारण, और क्योंकि द्वय महामंत्र पर स्थिर प्रपन्न को उपाय और उपेय दोनों पर स्थिर होना आवश्यक है, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक समझा रहे हैं कि एक प्रपन्न को उपाय और उपेय के संबंध में किस प्रकार आचरण करना चाहिए तथा उन लोगों का नाम लेते हैं जो दोनों में अच्छी तरह से स्थिर हैं।

सूत्रं – ८०

उपायत्तुक्कु पिराट्टियैयुम्, द्रौपदियैयुम्, तिरुक्कण्णमङ्गै आण्डानैयुम्  पोले इरुक्क वेणुम्।  उपेयत्तुक्कु इळैयपॆरुमाळैयुम्, पॆरिय उडैयारैयुम्, पिळ्ळै तिरुनऱैयूर् अरैयरैयुम्, चिन्तयन्तियैयुम् पोले इरुक्क वेणुम्।

सरल अनुवाद 

उपाय (साधन) के लिए व्यक्ति को श्रीमहालक्ष्मी, द्रौपदी और तिरुक्कण्णमङ्गै आण्डान् जैसे होना चाहिए। उपेय (लक्ष्य) के लिए, व्यक्ति को श्रीलक्ष्मण, जटायु महाराज, पिळ्ळै तिरुनऱैयूर् अरैयर् स्वामीजी और चिन्तयन्ति [एक गोपीका] जैसे होना चाहिए।

व्याख्या

उपायत्तुक्कु …

उपायत्तुक्कु

उपाय का पालन करते समय योग्य व्यक्ति को संसूचित करता है। या इसे उपाय के पालन के लिए योग्यता के रूप में कहा जा सकता है। इसी तरह, हम उपाय के लिए भी यही कह सकते हैं।

यदि उपायत्तिल् पाठ किया जाए, तो इसका‌ अर्थ है‌ “उपायम् के संबंध‌ में”। उपेय के लिए भी (उपेयत्तिल्) यही कहा‌ जा सकता है।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/05/srivachana-bhushanam-suthram-80-english/

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