श्रीवचन भूषण – सूत्रं ८५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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अवतारिका

इस प्रकार, उपाय (साधन) और उपेय (लक्ष्य) के आदर्श स्वरूप व्यक्तित्वों के विषय में बताने के पश्चात, श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक उन जैसे बने रहने के लिए कहने का आशय समझाते हैं।

सूत्रं – ८५

उपायत्तुक्कु शक्तियुम् लज्जैयुम् यत्नमुम् कुलैय वेणुम्; उपेयत्तुक्कु प्रेममुम् तन्नैप् पेणामैयुम् धरियामैयुम् वेणुम्।

सरल अनुवाद 

जो व्यक्ति उपाय की योग्यता प्राप्त करना चाहता है उसे अपनी क्षमता, लज्जा और प्रयत्न का त्याग कर देना चाहिए; जो व्यक्ति उपेय की योग्यता प्राप्त करना चाहता है उसे अपने प्रति प्रेम, आत्म-अवहेलना और यहाँ टिकने में असमर्थता रखनी चाहिए।

व्याख्या 

उपायत्तुक्कु …

अर्थात्, उपाय के अनुसरण की योग्यता प्राप्त करते समय, निम्न विषयों को त्याग देना चाहिए

  • वह क्षमता, जो व्यक्ति को स्वयं की रक्षा करने में सक्षम बनाती है
  • लज्जा, जो तब होती है जब सांसारिक लोग हम पर हँसते हैं, जब हम बाधाओं को त्यागकर स्वयं द्वारा अपनाए जाने वाले उपाय के लिए प्रयास करते हैं।
  • स्वयं का प्रयास, जो पूर्ण निर्भरता के लिए बाधा है।

उपेय के लिए अर्हता प्राप्त करते समय, व्यक्ति को चाहिए

  • भगवान से विमुख हुए बिना उनके आदेशानुसार सभी कैंकर्य करने में प्रेम रखना।  
  • जब भगवान पर संकट हो तो अपनी देह की चिंता न करना
  • भगवान के दिव्य स्वरूप का अनुभव किए बिना स्वयं को जीवित रखने में असमर्थ होकर अपना जीवन त्याग देना

इस प्रकार, उनके जैसे होने का अर्थ है इन योग्यताओं का होना।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/04/10/srivachana-bhushanam-suthram-85-english/

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