श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने यह समझाने के पश्चात यह स्पष्ट किया कि भगवान के प्रति इच्छा ही सभी श्रेष्ठ गुणों का मुख्य कारण है और सांसारिक विषयों से विरक्त होने के गुण का प्रमाण दिया। जब उनसे इसका कारण पूछा गया, तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्यजी ने दयापूर्वक इसका उत्तर दिया।
सूत्रं – ९६
आत्म गुणङ्गळिल् प्रधानम् शममुम् दममुम्
सरल अनुवाद
श्रेष्ठ गुणों में शम(आंतरिक इंद्रीयों को वश में करना)और दम (बाह्य इंद्रीयों को वश में करना)मुख्य हैं।
व्याख्या
आत्म गुणङ्गळिल् प्रधानम् शममुम् दममुम् ।
शम – आंतरिक इंद्रियों को नियंत्रित करना। दम – बाह्य इंद्रियों को नियंत्रित करना। “शमश्चित्त प्रशान्तिस्यात् तमश्चेन्द्रिय निग्रहः” में कहा गया है (कहा जाता है कि शम आंतरिक इंद्रियों को नियंत्रित करना है और दम बाह्य इंद्रियों को नियंत्रित करना है)। श्रीभगवद्गीता १०.४ “क्षमा सत्यम् दमः शमः” (क्षमा करना (क्रोध करने का कारण होने पर भी), सत्य बोलना, बाह्य इन्द्रियों को वश में करना (नीच भोगों की खोज से), मन को वश में करना (नीच भोगों की खोज से)) की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने दयापूर्वक अपनी टिप्पणी में समझाया है “तमो बाह्य करणानाम् अनर्थ विषयेभ्यो नियमनम् – शमोन्तः करणस्य तथा नियमनम्” (दम का अर्थ है बाह्य इन्द्रियों को सांसारिक सुखों में लिप्त होने से रोकना जिससे अनर्थ हो; शम का अर्थ है उसी प्रकार आंतरिक इन्द्रियों को वश में करना)। इसे दूसरे ढंग से भी समझाया गया है [शम का अर्थ है बाह्य इन्द्रियों को वश में करना और दम का अर्थ है आंतरिक इन्द्रियों को वश में करना]। इसका तात्पर्य यह है कि क्योंकि शम और दम उपस्थित हैं, वहाँ अन्य श्रेष्ठ गुण भी प्रकट होंगे, इसलिए इन दो गुणों के प्रमाण दिए गए हैं।
वैकल्पिक रूप से, यह भी समझाया जा सकता है कि जब पूछा जाता है कि “उन महान गुणों में मुख्य गुण क्या हैं?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं “आत्म गुणङ्गळिल् प्रधानम् शममुम् दममुम्” यह मानते हुए कि क्योंकि वैराग्य का कारण भगवान के प्रति इच्छा है, यह अन्य सभी महान गुणों का भी वही कारण है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/10/srivachana-bhushanam-suthram-96-english/
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