श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं कि सौंदर्य आदि तीन प्रकार के प्रपन्नों की विरक्ति का कारण है।
सूत्रं – १०४
इवैयुम् ऊट्रत्तैप् पट्रच् चॊल्लुगिऱदु।
सरल अनुवाद
यह भी प्रत्येक विषय की प्रधानता के आधार पर कहा गया है।
व्याख्या
इवैयुम् ऊट्रत्तैप् पट्रच् चॊल्लुगिऱदु।
अर्थात्, जैसे सूत्र ४३ में कहा गया “अज्ञानत्ताले प्रपन्नर्…” कि इन तीन प्रकार के प्रपन्नों के लिए उनके समर्पण का कारण उस प्रकार के प्रपन्न में प्रत्येक पहलू की प्रधानता के आधार पर कहा गया है, यहाँ भी सूत्र १०२ में बताए गए विरक्ति का कारण “अऴगाले पिऱक्कुम्…” प्रत्येक विषय की प्रधानता के आधार पर कहा गया है।
इसके साथ यह समझाया गया हैं कि
- भक्ति पारवश्य प्रपन्नों में, यद्यपि अरुचि का कारण होनेवाले भगवान की कृपा पर ध्यान करने की और भय का कारण होनेवाला भगवान/पूर्वाचार्यों के आचरण पर ध्यान करने की क्षमता होती है, किन्तु वे भगवान के दिव्य रूप की विशिष्ट प्रकृति का दर्शन करने के कारण और उनका हृदय उस सौंदर्य में मोहित हो जाने के कारण, वह सौंदर्य, जो उन्हें सांसारिक सुखों के बारे में अज्ञानी बना देता है, उनमें वह प्रमुख रहेगा।
- ज्ञानाधिक्य प्रपन्नों के लिए, यद्यपि वे भगवान के दिव्य सौंदर्य को, जो अज्ञान का कारण है, उनके पुरातन रूप में देखते हैं और उसका आनंद लेते हैं, और यद्यपि वे पूर्वाचार्यों के आचरण की प्राचीन संपदा का ध्यान कर सकते हैं जो भय का कारण है, किंतु वे पूर्ण शक्ति से उनकी कृपा प्राप्त करने में भाग्यशाली होने के कारण, वह भगवत्कृपा, जो अरुचि का कारण है, उनमें प्रबल रहेगी।
- यद्यपि अज्ञान प्रपन्न कभी-कभी अर्चावतार के भौतिक सौन्दर्य का अनुभव करते हैं तथा दया का अनुभव करते हैं जो अरुचि का कारण है, किन्तु वे निरंतर पूर्वाचार्यों के आचरण का ध्यान करते हैं, अतः वे आचरण, जो भय के कारण हैं, उनके हृदय में प्रबल रहेंगे।
इस प्रकार की प्रधानता के कारण इनमें से प्रत्येक विषय को वैराग्य का कारण बताया गया है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/19/srivachana-bhushanam-suthram-104-english/
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