श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
जब पूछा गया कि “जैसा कि मून्ऱाम् तिरुवन्दादी १४ में कहा गया है “मऱ्-पाल् मनम् सुऴिप्प मङ्गैयर् तोळ् कै विट्टु नूऱ्-पाल् मनम् वैक्क नॊय्विदम्” (जैसे ही हृदय श्रीमन् नारायण की ओर उन्मुख होता है, स्त्रियों के कंधों के प्रति आसक्ति छोड़ना और शास्त्रों में संलग्न होना आसान हो जाता है), जैसे कोई भगवान के शुभ गुणों को देखते हुए जो वांछनीय है भगवद् विषय में संलग्न होता है, क्या हम यहाँ यह नहीं कह सकते कि हम केवल उनके दोषों को देखते हुए सांसारिक सुखों को छोड़ रहे हैं?”
सूत्रं – १०८
भगवत् विषयत्तिल् इऴिगिऱदुम् गुणम् कण्डन्ऱु; स्वरूप प्राप्तमॆन्ऱु ।
सरल अनुवाद
यहाँ तक कि भगवद् विषय में संलग्न होना भी उसके शुभ गुणों को देखकर नहीं होता, बल्कि इसलिए होता है क्योंकि यह आत्मा के वास्तविक स्वरूप के लिए उपयुक्त है।
व्याख्या
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कहते हैं, “भगवत् विषयत्तिल् इऴिगिऱदुम् गुणम् कण्डन्ऱु”।
जब पूछा गया “अन्यथा क्यों?”
वह कहते हैं “स्वरूप प्राप्तमॆन्ऱु”।
अर्थात् – कोई व्यक्ति भगवत् विषय को भगवान के शुभ गुणों के कारण नहीं पकड़ रहा है, बल्कि इसलिए कि वह इस जीवात्मा के लिए उपयुक्त विषय है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/23/srivachana-bhushanam-suthram-108-english/
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