श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी उस विरोधाभास को दर्शा रहे हैं जो तब उत्पन्न होगा जब उनके द्वारा पहले समझाया गया सिद्धांत स्वीकार नहीं किया जायेगा।
सूत्रं – १०९
इप्पडिक् कॊळ्ळादप्पोदु, गुणहीनमॆन्ऱु निनैत्त दशैयिल् भगवत् विषय प्रवृत्तियुम्, दोषानुसंधान दशैयिल् सम्सारत्तिल् प्रवृत्तियुम् कूडादु।
सरल अनुवाद
यदि इसे इस प्रकार स्वीकार नहीं किया जाता है (अर्थात भगवान के शुभ गुणों के कारण कोई भगवद् विषय में संलग्न नहीं होता है), तो जब भगवान को शुभ गुणों से रहित माना जाता है तब भगवद् विषय में संलग्न होना और संसार के दोषों का ध्यान करते हुए सांसारिक पहलुओं में संलग्न होना नहीं होना चाहिए।
व्याख्या
इप्पडि …
इप्पडिक् कॊळ्ळादप्पोदु
यदि हम यह न मानें कि सांसारिक सुखों में अरुचि अयोग्यता के कारण है और भगवद्विषय में रुचि योग्यता के कारण है, तथा यह मानें कि दोष और शुभ गुणों को देखना ही इन विषयों का क्रमशः कारण है।
गुणहीनम् ऎन्ऱु निनैत्त दशैयिल् भगवत् विषय प्रवृत्ति
भगवान के वियोग में बहुत दुःखी होने पर भी, भगवान ने तत्क्षण अपना मुख नहीं दिखाने के कारण आऴ्वार् ने सोचा कि भगवान में शुभ गुणों का अभाव है। तथापि उन्होंने भगवान के प्रति महान प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहा “अवनै अल्लादु अऱियेन्” (मैं उनके अतिरिक्त किसी को नहीं जानता) [जो कि श्रीसहस्रगीति (तिरुवाय्मोऴि) ५.३.५ का सार है]
दोषानुसंधान दशैयिल् सम्सारत्तिल् प्रवृत्ति
इस संसार में जहाँ मनुष्य माता, पिता, पत्नी, संतान, निकट और दूर के सम्बन्धी, घर, भूमि आदि के साथ इन्द्रिय सुख (शब्द आदि) भोगता है, वहाँ यद्यपि वह उन विषयों के दोष को महान दुःख देने वाला मानता है तब भी वह उत्सुकता से उनमें संलग्न होता है।ये दोनों नहीं होने चाहिए [यदि पहले बताए गए ऐसे सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया गया हो]।
वैकल्पिक व्याख्या।
दोषानुसंधान दशैयिल् सम्सारत्तिल् प्रवृत्ति
यद्यपि महाज्ञानी महर्षि आदि सांसारिक सुखों के दोषों का ध्यान करते हैं, शास्त्र के विधि-विधान को उपयुक्त मानकर सन्तान उत्पन्न करने आदि में संलग्न होते हैं और इस प्रकार सांसारिक सुखों में रत रहते हैं।ऐसे सिद्धान्त को स्वीकार न करने पर इनमें विरोधाभास नहीं होना चाहिए ऐसा बताकर सिद्ध किया है कि सिद्धान्त को यथावत ही स्वीकार करना चाहिए।
अडियेन् केशव् रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/24/srivachana-bhushanam-suthram-109-english/
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