श्रीवचन भूषण – सूत्रं ११४

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अवतारिका

श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक अगले तीन कथनों (विवरण) द्वारा पहले उठाए गए संदेह का उत्तर समझाते हैं [भगवद् विषय में आत्म-प्रयास कैसे किया जा सकता है?]।

सूत्रं – ११४

अन्द सत्तै प्रावण्य कार्यमान अनुभवम् इल्लादपोदु कुलैयुम्; अदु कुलैयामैक्काग वरुमवै ऎल्लाम् अवर्जनीयङ्गळुमाय् प्राप्तङ्गळुमाय् इरुक्कुम्; आगैयाले भगवत् विषय प्रवृत्ति सेरुम्।

सरल अनुवाद

जब प्रेम पर आधारित अनुभव विद्यमान नहीं होगा, तो आत्मा का अस्तित्व खो जाएगा; जो भी विषय सामने आते हैं जो अस्तित्व को न खोने के लिए होते हैं उन्हें छोड़ा नहीं जा सकता और वे उपयुक्त होंगे; इसलिए भगवद् विषयम में आत्म-प्रयास [जब किसी व्यक्ति में ऐसा चरम प्रेम अवस्थित हो] उपयुक्त होगा।

व्याख्या

अन्द सत्तै प्रावण्य कार्यमान अनुभवम् इल्लादपोदु कुलैयुम्

ऐसा आत्म-अस्तित्व एक क्षण के लिए भी नहीं रहेगा, जब भगवान का अनुभव जो उनके प्रति प्रेम के कारण होता है भगवान के साथ आत्म सम्बन्ध से उत्पन्न होता है।

अदु कुलैयामैक्काग वरुमवै ऎल्लाम् अवर्जनीयङ्गळुमाय् प्राप्तङ्गळुमाय् इरुक्कुम्

क्योंकि मडल् आदि सभी कर्म आत्मा के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए किए जाते हैं, अतः भगवान का अनुभव न प्राप्त होने पर इन्हें वर्जित नहीं किया जा सकता; यदि कोई इन कर्मों से दूर रहने का प्रयास भी करे, तो भी इन कर्मों से प्राप्त भगवान की महिमा में वृद्धि के कारण ये आत्मा के वास्तविक स्वरूप के लिए उपयुक्त हो जाएँगे।

आगैयाले भगवत् विषय प्रवृत्ति सेरुम्

उपर्युक्त विषयों को कारण मानकर श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी वर्तमान संदेह को स्पष्ट करते हैं और इस विषय का समापन करते हैं।

अडियेन् केशव् रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/29/srivachana-bhushanam-suthram-114-english/

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