श्रीवचन भूषण – सूत्रं ११५

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इससे पहले श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने सांसारिक सुखों के प्रति आसक्ति को पूरी तरह से त्यागने और भगवद् विषय को स्वीकार करने के मुख्य कारणों को समझाया था; इस संदर्भ में, तत्पश्चात, वे अन्य साधनों को पूर्णतया त्यागने के मुख्य कारण से अवगत करा रहे हैं।

सूत्रं – ११५

प्रापकान्तर परित्यागत्तुक्कुम् अज्ञान अशक्तिगळन्ऱु, स्वरूप विरोधमे प्रधान हेतु ।

सरल अनुवाद

अज्ञानता और असमर्थता अन्य साधनों को पूर्ण रूप से त्यागने के मुख्य कारण नहीं हैं, बल्कि अपने वास्तविक स्वभाव के विपरीत होना इसका मुख्य कारण है।

व्याख्या

प्रापकान्तर परित्यागत्तुक्कुम् …

प्रापकान्तर

प्रपत्ती के अतिरिक्त अन्य उपाय। 

अज्ञान अशक्तिगळ् अन्ऱु

इन अन्य उपायों को छोड़ने के मुख्य कारण ये नहीं हैं: (क) इनके विषय में ज्ञान का अभाव, तथा (ख) इन्हें करने की क्षमता का अभाव।

स्वरूप विरोधमे प्रधान हेतु

मुख्य कारण यह है कि वे उपाय आत्मा के वास्तविक स्वरूप के अर्ह नहीं हैं जो पूर्णतः भगवान पर निर्भर है।
इससे यह इङ्गित है कि अज्ञान और असमर्थता जिनकी पहचान सूत्र ४३ “अज्ञानत्ताले प्रपन्नर्” (अज्ञान के कारण शरणागत होने वाले) में की गई हैं, मूल कारण नहीं हैं। यदि कोई अज्ञान और असमर्थता के कारण अन्य उपायों का त्याग करता है तो इसका अर्थ यह होगा कि जब उसके पास ज्ञान और योग्यता होगी तब इन उपायों का पालन किया जा सकता है। केवल जब वे अपने वास्तविक स्वरूप के विपरीत होने के कारण त्याग दिए जाते हैं, तब वे कभी पुन: नहीं आते।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/30/srivachana-bhushanam-suthram-115-english/

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