श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२८

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श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक इसका कारण बताते हैं।

सूत्रं – १२८

औषध सेवै पण्णादवर्गळुक्कु अभिमत वस्तुक्कळिले अत्तै कलसि इडुवारैप्पोले, ईश्वरनैक् कलन्दु विधिक्किऱदित्तनै।

सरल अनुवाद

जिस प्रकार लोग उन लोगों को प्रिय खाद्य पदार्थों में मिलाकर औषधि खिलाते हैं जो औषधि को अस्वीकार करते हैं, उसी प्रकार वेदान्त अन्य उपायों में ईश्वर को मिलाता है और उन्हें [उन लोगों के लिए जो सीधे ईश्वर के प्रति समर्पण करने का अस्वीकार करते हैं] नियुक्त करता है।

व्याख्या

औषध सेवै …

शिशुओं, बालकों आदि जो कोई ऐसी उत्तम औषधि लेने से मना करते हैं जो उनके गंभीर रोगों को शीघ्र ठीक कर सकती है, उनकी सबसे अधिक सुश्रुषा करने वाली माताएँ आदि उस औषधि को उनके प्रिय खाद्य पदार्थों [जैसे मद, गुड़ आदि] में मिला देती हैं। इसी प्रकार, यदि सिद्धोपाय (भगवान को उपाय के रूप में), जिसकी व्याख्या श्रीसहस्रगीति ३.४.५ में “नच्चु मा मरुन्दम् ऎङ्गो” (इच्छित महान औषधि) के रूप में दिखाए जानेवाले को औषधि के रूप में नियुक्त किया जाए जिसमें आत्म-प्रयत्न का परित्याग एक निबन्धन है, [कई] चेतनाएँ, जो अनादि काल से आत्म-प्रयत्न के अभ्यस्त हैं उसे स्वीकार नहीं करेंगे। वेदान्त उनका त्याग करने में असमर्थ होने के कारण मोक्ष के लिए उपाय के रूप में उपासना [भक्ति योग जो स्व-प्रयास के रूप में है और इसलिए ऐसे आत्माओं के लिए प्रिय है] की नियुक्ति करते हैं साथ ही ईश्वर को जो सिद्धोपाय हैं ऐसे उपाय के लिए अंग के रूप में नियुक्त करते हैं।

जैसे उदाहरण में जहाँ बालकों को प्रिय खाद्य पदार्थ रोग को ठीक नहीं करता है और जो औषधि उसमें मिश्रित होती है वह रोग को ठीक करती है, यहाँ इस सिद्धांत में भी यह भलि-भाँति समझा जाता है कि उपासना के स्थान पर ईश्वर जो उस उपासना में मिला हुआ है, वही उपाय है।

जब औषधि को सीधे लिया जाता है तो रोग तुरंत ठीक हो जाता है; जब औषधि को इच्छित खाद्य पदार्थ के भीतर रखकर लिया जाता है तो रोग विलम्ब से ठीक होता है; इसी प्रकार जब ईश्वर को उपासना के साथ मिलाया जाता है तो वह विलंब से परिणाम देता है।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/06/12/srivachana-bhushanam-suthram-128-english/

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