कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ५४ – सहस्रनाम

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महाभारत में कृष्ण द्वारा दिया गया श्रीगीतोपदेश के जैसे सहस्रनाम की भी महिमा है जो कृष्ण की महानता को दर्शाती है। आइए श्रद्धापूर्वक आनन्द लें।

कृष्ण की आज्ञानुसार अर्जुन ने भीष्म पितामह को शरशैय्या पर लिटाया परन्तु वह दु:खी बहुत हुआ। पांडव यह सोचकर भी बहुत दु:खी हुए कि उन्होंने भीष्म जो कि कुल के वृद्ध उत्तम गुण वाले और भगवान के प्रति अत्यंत शरणागत थे उन्हें पराजित कर दिया। कृष्ण ने उनको सांत्वना देते हुए कहा कि युद्ध में ऐसी घटनाएँ स्वाभाविक हैं।

तत्पश्चात्, उसी रात को कृष्ण ने युधिष्ठिर को भाइयों सहित आमन्त्रित किया और उनसे कहा, “तुम भीष्म पितामह के पास जाओ और सर्वोच्च सिद्धांत को ग्रहण करो।” वे कृष्ण के साथ भीष्म के पास गये। उन्होंने भीष्म के पास जाकर ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने की प्रार्थना की, उदाहरणतः “परमेश्वर कौन है? परम लक्ष्य क्या है? उसे प्राप्त करने का साधन क्या है?” उस समय भीष्म ने देवकी नंदन कृष्ण की ओर संकेत करते हुए कहा, “कृष्ण परम भगवान हैं। सर्वोच्च लक्ष्य उनकी सेवा करना है। सबसे अच्छा साधन उनके दिव्य सहस्र नामों का पाठ करना और जप करना है।” इसके अतिरिक्त उन्होंने सहस्र दिव्य नामों की व्याख्या की और कृष्ण को प्रसन्न किया। पांडवों ने कृष्ण की महिमा को स्पष्ट रूप से समझा।

आऴ्वारों ने कई पासुरों में सहस्रनाम की महिमा का गान किया है।

  • पेरियाऴ्वार् ने तिरुप्पल्लाण्डु में वर्णन किया है, तॊण्डक् कुलत्तिलुळ्ळीर् वन्दु अडितॊऴुदु आयिर् नामम् सॊल्लि” (जो लोग आज दास्य कुल में हैं (भगवान के सेवकों का कुल) वे हमारी गोष्ठी में आएँ और अच्युत के चरण कमलों का आह्वान करें और उनके सहस्रनाम गाएँ)।
  • आण्डाळ् ने अपने नाच्चियार् तिरुमोऴि में वर्णन किया है, नामम् आयिरम् एत्त निन्ऱ नारायणा” (नारायण जिनकी सहस्र नामों से स्तुति की जाती है)।
  • नम्माऴ्वार् ने अपनी तिरुवाय्मोऴि में वर्णन करते हैं, ओरायिरमाय् उलगेऴळिक्कुम् पेर् आयिरम् कॊण्डदोर् पीडुडैयन्” (एम्पेरुमान् के विशिष्ट दिव्य सहस्रनाम हैं उनमें से प्रत्येक नाम सहस्र तरीके से चेतन और अचेतन की रक्षा करता है)।
  • तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने अपनी तिरुमोऴि में वर्णन किया है, पळ्ळियिल् ओदि वन्द तन् सिऱुवन् वायिल् ओरायिर नामम्” (प्रह्लाद आळ्वान्, हिरण्यासुर का पुत्र, विद्यालय से शिक्षा ग्रहण करके अपने पिता के पास आए, उनके दिव्य अधरों से सर्वेश्वर के सहस्रनाम का उच्चारण करते हुए)।

श्री पाराशर भट्टर ने सहस्रनाम की एक विस्तृत व्याख्या की है।

सार-

  • विष्णु सहस्रनाम को विशेष रूप से ऐसे कहने की आवश्यकता नहीं है। जब सहस्रनाम कहते हैं तो उसका अर्थ विष्णु सहस्रनाम ही होगा।
  • यद्यपि इस कलयुग में, भगवान तक पहुँचने के लिए तिरुनाम संकीर्तन (भगवान के दिव्य नामों का गान) को सर्वश्रेष्ठ उपाय माना है, श्रीवैष्णव इसे उपाय मानकर तिरुनाम संकीर्तन नहीं करते। यह केवल कैङ्कर्य के रूप में किया जाता है। चूँकि जीवात्मा के वास्तविक स्वरूप के योग्य भगवान ही एकमात्र उपयुक्त उपाय हैं, इसलिए किसी अन्य को उपाय के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी।

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/30/krishna-leela-54-english/

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