श्रीवचनभूषण – सूत्रं १०२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

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श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी दयापूर्वक इस शंका का उत्तर दे रहे हैं कि, “कर्तव्य समझकर जिन कार्यों को करने की अनुमति है, उनका त्याग तभी होगा जब यह विचार त्याग दिया जाए कि वे आनंददायक हैं; ऐसी स्थिति में, जो चीजें सदा से प्रिय हैं, उनका त्याग कैसे किया जा सकता है?”

सूत्रं१०२

इदुदान् सिलर्क्कऴगाले पिऱक्कुम्; सिलर्क्कु अरुळाले पिऱक्कुम्; सिलर्क्कु आचारत्ताले पिऱक्कुम्।

सरल अनुवाद

कुछ लोगों को यह वैराग्य [भगवान की] सुन्दरता से प्राप्त होगा; कुछ लोगों को यह वैराग्य [भगवान की] दया से प्राप्त होगा; कुछ लोगों को यह वैराग्य [भगवान और पूर्वाचार्यों के] आचरण से प्राप्त होगा।

व्याख्या

इदुदान् सिलर्क्कु

सिलर्क्कु अऴगाले पिऱक्कुम्


भक्ति पारवश्य प्रपन्नों (जो अत्यधिक भक्ति के कारण शरणागत हो जाते हैं) के लिए, भगवान के उन रूपों की सुन्दरता का अनुभव करने से वैराग्य प्राप्त होगा जो सभी को मोहित कर लेता है।

सिलर्क्कु अरुळाले पिऱक्कुम्

ज्ञानाधिक्य प्रपन्नों (जो अत्यधिक ज्ञान के कारण शरणागत हैं) के लिए, जो सत्य के द्रष्टा हैं, यह वैराग्य भगवान की महान दया से प्राप्त होगा, जिससे वे अन्य के प्रति आसक्ति को समाप्त कर देंगे, यह सोचकर कि “यह आत्मा जो मुझसे आनंद लेने के योग्य है, सांसारिक सुखों में लिप्त है और विनाश की ओर जा रही है!”।

सिलर्क्कु आचारत्ताले पिऱक्कुम्

अज्ञान प्रपन्नों (जो अज्ञान के कारण शरणागत हो जाते हैं) के लिए जिनमें ज्ञान का अभाव है, चूँकि वे शास्त्रों और आचार्यों के निर्देशों के माध्यम से सूचीबद्ध आचरण के बारे में जानते हैं इसलिए यह वैराग्य अर्जित किया जाएगा:

  • भगवान ने परिस्थिति के अनुसार स्वयं कार्य किया तथा दूसरों को आचरण करवाया, जैसा कि श्रीरामायण सुन्दरकाण्ड के ३५.११ में कहा गया है “रामो भामिनि लोकस्य चातुर्वर्णस्य रक्षिता। मर्यादानां लोकस्य कर्ता कारयिताचसः।।”  (हे सुन्दरी सीता! श्रीराम जो चारों वर्णों के लोगों की रक्षा करते हैं, वे ही संसार में सीमाओं की व्यवस्था करते हैं तथा दूसरों से उन सीमाओं का पालन करवाते हैं)।
  • महान ज्ञानी पूर्वाचार्यों का आचरण

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/17/srivachana-bhushanam-suthram-102-english/

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