श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
अवतारिका
जब उनसे पूछा गया कि, “ यह कहाँ देखी है कि भगवान में अच्छे गुणों में अपूर्णता मानते हुए भी भगवद् विषय में उनकी रुचि रही?” तो श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक समझाते हैं।
सूत्रं – ११०
“कॊडिय ऎन्नॆञ्जम् अवन् ऎन्ऱे किडक्कुम्” “अडियेन् नान् पिन्नुम् उन् सेवडि अन्ऱि नयवेन्” ऎन्ना निन्ऱार्गळिऱे।
सरल अनुवाद
आलवारों [क्रमशः श्रीशठकोप स्वामीजी और श्रीपरकाल स्वामीजी] ने श्रीसहस्रगीती ५.३.५ में कहा “कॊडिय ऎन्नॆञ्जम् अवन् ऎन्ऱे किडक्कुम्” (मेरा क्रूर हृदय केवल उसे ही खोजेगा) और पेरिया तिरुमोळि ११.८.७ “अडियेन् नान् पिन्नुम् उन् सेवडि अन्ऱि नयवेन्” (तथापि, मैं आपके दिव्य चरणों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहूँगा)।
व्याख्या
कॊडिय ऎन्नॆञ्जम् …
अर्थात् – जैसा कि “कडियन् कॊडियन् नॆडिय माल् उलगम् कॊण्ड अडियन् अऱिवरु मेनि मायत्तन्” में कहा गया है भगवान के अच्छे गुणों के अभाव जैसे कि वह स्वार्थी हैं, दूसरों की पीड़ा को नहीं समझते हैं, किसी की पहुँच के परे हैं, धूर्त हैं और दूसरों द्वारा समझने में कठिन हैं, इन बातों को समझाने के पश्चात आऴ्वार् ने कहा “भले ही वह ऐसा हो, मेरा हृदय जो इस जगत में सबसे क्रूर है, उसके अतिरिक्त किसी को नहीं जानता”।
जैसा कि “वेम्बिन् पुऴु …” में कहा गया है, वह कीट जो नीम के पेड़ में और उसके लिए जन्म लेता है, वह केवल नीम के पत्ते और फल ही खाता है और इक्षु मिलने पर भी उसे नहीं चाहता है। इसी प्रकार यदि आप जिनकी पेरिय तिरुमोऴि ७.१.४ में प्रशंसा की गई है “कडल् मल्लै किडन्द करुम्बु” (तिरुकडल्मल्लै में पड़ा इक्षु), नीम की भाँति कड़वे हो जाते हैं, तो मैं जो पूर्णतः आपके लिए ही विद्यमान हूँ आपके दिव्य चरणों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं चाहूँगा, आप जो मेरे स्वाभाविक स्वामी हैं।
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कह रहे हैं कि आळ्वार जिन्हें “मयर्वऱ मदिनलम्” (भक्ति में परिपक्व हुआ ज्ञान) का आशीर्वाद प्राप्त है, उन्होंने दयापूर्वक कहा है।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/05/25/srivachana-bhushanam-suthram-110-english/
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