श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:
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अवतारिका
श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ज्ञानियों में अग्रणी श्रीशठकोप स्वामीजी (नम्माऴ्वार्) के शब्दों के माध्यम से उस विपत्तिपूर्ण प्रकृति को दर्शाते हैं।
सूत्रं – ११९
“नॆऱिकाट्टि नीक्कुदियो” ऎन्ना निन्ऱदिऱे।
सरल अनुवाद
श्रीशठकोप स्वामीजी ने पेरिय तिरुवन्ददि ६ में कहा “नॆऱि काट्टि नीक्कुदियो” (क्या आप अन्य उपाय दिखाकर मुझे अपने से दूर कर देंगे?)
व्याख्या
“नॆऱिकाट्टि नीक्कुदियो” …
अर्थात् – क्योंकि श्रीशठकोप स्वामीजी कह रहे हैं “क्या आप मुझे अपने से दूर करने के अन्य साधन दिखा रहे हैं?” अन्य साधन विपत्तिपूर्ण होना अच्छी तरह से स्थापित है। नीक्कुगै – हटाना – जीवात्मा को, जो [भगवान पर] परतंत्र (आश्रित) है, अन्य उपायों (प्रापकान्तर) में लगाना जो स्वतंत्र प्रयास हैं और उनसे (भगवान से) दूर धकेलना।
अडियेन् केशव रामानुज दास
आधार: https://granthams.koyil.org/2021/06/03/srivachana-bhushanam-suthram-119-english/
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