श्रीवचन भूषण – सूत्रं १२०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

पूरी श्रृंखला

<< पूर्व

अवतारिका

श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी कृपापूर्वक अन्य उपायों से उत्पन्न होने वाले दोषों को समझाते हैं, जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप को नष्ट कर देते हैं।

सूत्रं१२०

“वर्धते मे महत् भयम्” ऎन्गैयाले भयम् जनकम्; “मा शुचः” ऎन्गैयाले शोक जनकम्।

सरल अनुवाद

जैसे जितन्ते स्तोत्रम् ९ में कहा गया है “वर्धते मे महत् भयम्” (बहुत भय उत्पन्न करने वाले), ये भय उत्पन्न करते हैं; उसी प्रकार जैसे श्रीभगवद्गीता १८.६६ में कहा गया है मा शुच: (चिंता मत करो), ये दुःख उत्पन्न करते हैं।

व्याख्या

वर्धते …

अर्थात –

  • जैसा कि जितन्ते स्तोत्र ९ में कहा गया है “कालष्वपिच सर्वेषु दिक्षु सर्वासुचाच्युत | शरीरेच  गतौचापि वर्धते मे महत् भयम् ||” (हे अच्युत जो भक्तों का परित्याग नहीं करते! जब मैं सभी समयों, सभी पवित्र निवासों, अपने शरीर और अन्य उपायों को देखता हूँ तो मैं बहुत भयभीत हो जाता हूँ) “मैं अन्य उपाय करने के लिए उपयुक्त समय, स्थान और शरीर को देखकर और उन अन्य उपायों को भी देखकर बहुत भयभीत हो रहा हूँ” ऐसा कहा जाता है। 
  • अन्य उपायों के विषय में सुनकर अर्जुन दुःखी हो गए और इसलिए श्रीकृष्ण ने उस उपाय को निर्देश दिया जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप (अर्थात प्रपत्ति) के लिए उपयुक्त था और दयापूर्वक दुःख को दूर कर दिया।

इन दोनों से हम समझ सकते हैं कि ये सर्व प्रापकान्तरम् (अन्य साधन), जो आत्मा के वास्तविक स्वरूप के विपरीत हैं, ज्ञानियों के लिए भय और दुःख का कारण बनेंगे।

अडियेन् केशव रामानुज दास

आधार: https://granthams.koyil.org/2021/06/04/srivachana-bhushanam-suthram-120-english/

संगृहीत- https://granthams.koyil.org/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

Leave a Comment