प्रपन्नामृत – अध्याय ४९
श्री कुरेशस्वामी और कृमिकण्ठ का विवाद
🔹जब कुरेश स्वामीजी और महापुर्ण स्वामीजी कृमिकण्ठ के राजदरबारमें लाये गये तब उस श्रीवैष्णवद्वेषी राजा ने कठोर शब्दोंमें कुरेश स्वामीजी से कहा, “लिखो, शिव से बढ़कर संसारमें अन्य कोई श्रेष्ठ तत्व नही”
🔹कुरेश स्वामीजी ने धैर्यपुर्वक विविध प्रमाण देकर श्रीमन्नारायण ही परतत्व हैं यह सिद्ध करदिया।
🔹चोलराजा नें जबरदस्ती करनेपर भी कुरेश स्वामीजी ने नही लिखा तो कुरेश स्वामीजी और महापुर्ण स्वामीजी को राजा ने नेत्रहीन करदिया।
🔹कुरेश स्वामीजी और महापुर्ण स्वामीजी ने श्रीरंगम की ओर प्रस्थान किया।
🔹अत्यन्त वृद्ध होने कारण महापुर्ण स्वामीजी की परिस्थिती चिन्ताजनक होगयी।
🔹कुरेश स्वामीजी ने उन्हे अन्तिम कालमें श्रीरंगम चलनेके लिये इच्छा व्यक्त की।
🔹महापुर्ण स्वामीजी ने कहा, “आचार्यदेव के परतंत्र रहनेवाले श्रीवैष्णव के लिये शरीर त्याग के बारेमें कोई नियम नही है। अगर मैं श्रीरंगम में चलकर शरीर त्याग करुँगा तो प्रपन्न श्रीवैष्णव समझेंगे की मुझे आचार्य वचनोंपर विश्वास नही है”
🔹ऐसा कहकर महापुर्ण स्वामीजी ने १०५ की आयुमें शरीर त्यागकर वैकुण्ठ लोक का प्राप्त किया।
🔹तत्पश्चात कुरेश स्वामीजी महापुर्ण स्वामीजी के पुत्र तथा अन्य श्रीवैष्णवोंद्वारा श्रीवैष्णव ब्रह्ममेध विधी से अन्तिम संस्कार संपन्न कराकर श्रीरंगम आगये।
🔹यतिराज यह वृत्तान्त सुनकर अत्यन्त दु:खी हुये और यादवाद्रि पर अपने आचार्य महापुर्ण स्वामीजी का विधीपुर्वक वैकुण्ठोत्सव करवाये।