प्रपन्नामृत – अध्याय 5
🔷 भगवान द्वारा श्रीरामानुजाचार्य की रक्षा 🔷
🔸यादवप्रकाश को त्याग करने पश्चात् रामानुजाचार्य भगवान केशव का ध्यान करने लगें।
🔸भगवान वरदराज लक्ष्मीजी के साथ व्याध दम्पति के रूपमें रामानुजाचार्य के पास आये।
🔸व्याधवेषधारी भगवान बोले, “मैं काञ्ची जा रहा हुँ, आप इन हिंस्र पशुओंके बीच क्या कर रहे हैं?
🔸रामानुजाचार्य बोले, मैं भी काञ्ची जाना चाहता हूँ पर कोई साथी नही है।
🔸भगवान उन्हे अपने साथ लेकर काञ्ची के लिये प्रयाण किये।
🔸रात्रिमें कहीं विश्राम कर रहे थे तो लक्ष्मीजी को प्यास लगी। रामानुजाचार्य ने पास ही के कूप से अंजली भरकर जल लाया। तीन अंजली लानेके बाद चौथी अंजली भरकर लाये तो व्याध दम्पति नहीं दिखें।
🔸प्रात: समय होगया और रामानुजाचार्य को आश्चर्य हुआ की वें काञ्चीपुरी पहुँचगये हैं। उन्हे वरदराज भगवान की लीला समझमें आगयी।
🔸तदनन्तर माता कांतिमति के आज्ञानुसार शबरी के अंश से उत्पन्न तथा भगवान वरदराजके स्निग्ध कृपापात्र कांचीपूर्ण स्वामीजी को यह वृतांत सुनाये।
🔸यह सुनकर कांचीपूर्ण स्वामीजी ने आज्ञा की की भगवान वरदराज को नित्य आपके हाथोंसे जल पीने की ईच्छा से ही उन्होंने व्याधरुपमें जल की याचना की। तो आप नित्य उस कुएँ से जल लाकर भगवान को समर्पित करें।
🔸उनकी आज्ञानुसार रामानुजाचार्य प्रतिदिन उसी कुएँ (शालकूप) से जल लाकर वरदराज भगवान को समर्पित करने लगें।