यतीन्द्र प्रवण प्रभावम – भाग १२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम

<< भाग ११

श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी का वैभव 

श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के ऐसे वैभव थे कि उनको श्रीशठकोप स्वामीजी का अपरावतार माना गया हैं। उनके अनुज श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ् नायनार् उनके कृपा के नीचे बड़े हुए। दोनों भाई साथ में बड़े हुए। वें दोनों साथ बड़े हुए वैसे हीं जैसे भगवान श्रीराम और श्रीलक्षमणजी और श्रीकृष्ण और श्रीबलरामजी बड़े हुए। दोनों को साथ देख इस पाशुर के माध्यम से प्रशंसा करते थे।  

तम्बियुडन दासरथियानुम संगवण्ण​

नम्बियुडन पिन्नडन्दु वन्दानुम्- पोङुपुनल्

ओंगु मुदुम्बै उलगारियनुम अऱन्

दागु मणवाळनुमे तान्

(श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी और उनके अनुज श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ् नायनार् एक प्रशंसनिय वंश मुदुंबै के निवासी हैं जो भगवान श्रीराम और श्रीलक्ष्मण और श्रीबलरामजी और भागवन श्रीकृष्ण कि तरह चल रहे थे जिनका शंख के समान स्वरूप हैं)

इन दोनों में श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने कई गूढ ग्रन्थों कि रचना किये जिन्हें स्त्रीयाँ और आम आदमी भी सीख सकते हैं जैसे याद्रिचिक पडि, मुमुक्षुप्पडि, श्रियःपति, परंत पडि, तनि प्रणवम्, तनि द्वयम्, तनि चरमम्, अर्थ पंचकम्, तत्वत्रयम्, तत्वशेखरम्, सारसंग्रहम्, अर्चिरादि, प्रमेयशेखरम्, संसारसाम्राज्यम्, प्रपन्नपरित्राणम्, नवरत्तिनमालै, नवविदसम्बन्धम्, श्रीवचनभूषणम्  इत्यादि। उस समय जब वें अपने अनुज के साथ रहते थे तब कई परमसात्विक (केवल सत्व गुणवाले या पवित्र गुणवाले) आचार्य जैसे श्रीकूर कूलोत्तम दास नायन, श्रीमणप्पाक्कत्तु नम्बी, श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ् पिळ्ळै जिन्हें कोल्लि कावाल दास भी कहते हैं, कोट्टूरिल अण्णर, श्रीशैलेश स्वामीजी, विळाजोलैप्पिळ्ळै और प्रख्यात स्त्रियाँ जैसे श्रीशैलेश स्वामीजी कि माताजी जिन्होंने उनके दिव्य चरणों के शरण लिया और भगवान का भी विचार न करते हुए उनके प्रति हर समय और परिस्थिति में सभी महान सेवाये किये. 

इस प्रकार से जब दोनों भाई रहते थे तब श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी अपने शिष्यों को श्रीवचनभूषण पर कालक्षेप देना प्रारम्भ किया। उसी समय श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ् नायनार ने आचार्य हृदयम पर कार्य करना प्रारम्भ किया जिसे श्रीसहस्रगीति का सार माना जाता हैं और श्रीवचन भूषण के अर्थ का स्थापना। क्योंकि यह दोनों ईडु का अर्थ देते हैं इसलिये जब ईडु कि तानियन के गाने के समय श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी और श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ्  नायनार कि तानियन भी गायी जाती हैं।

इन दोनों भाईयों ने अपने कार्य से जो ख्याती प्राप्त किये और जिस तरह कई जन उनके शरण हुए उनके कार्यों को सुनने के लिए, तो कुछ जन इन दोनों भाईयों कि सफलता से जलते थे।  इस ईर्ष्या से उन जनों ने श्रीरङ्गनाथ​ भगवान से यह कहते हुए निवेदन किया कि “ओ रङ्गनाथ! पिळ्ळैलोकाचार्य ने गूढ ग्रंथ कि रचना की हैं श्रीवचन भूषण जिससे सम्प्रदाय के अर्थ व्यर्थ हो रहे हैं”। यह सुनकर श्रीरङ्गनाथ​ भगवान नाराज हुए और अर्चकों के माध्यम से श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य को बुलवाया। क्योंकि श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य उस समय स्नान कर रहे थे और श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ्  नायनार को यह समाचार ज्ञात हुआ तो वें उनके साथ भगवान कि सन्निधी में चले गये। अर्चकों के माध्यम से भगवान ने पूछा “ओ नायनार! क्या हम ने धार्मिकता के नियमों को स्थापित करने के लिये अनगिनत अवतार नहीं लिये? आप क्यों ओर ग्रन्थों कि रचना कर इसे ओर व्यर्थ कर रहे हो?”  श्रीअऴगियमणवाळपेरुमळ्  नायनार ने आचार्य हृदयम का सिद्धान्त समझाते हुए उत्तर दिये जिसे उन्होंने श्रीवचन भूषण को स्थापित करने के लिये संकलित किया। एक बार उन्होंने अपना स्पष्टीकरण सम्पन्न किया तब भगवान बहुत प्रसन्न हुए और जिन्होंने यह शिकायत कि उनके पास यह कार्य लेकर गये और पूछा “क्या यह वह नहीं जो मैंने अपने अवतारों में कहा हैं?”। भगवान ने फिर नायनार को सभी मन्दिर के सम्मान प्रदान किये (श्रीतीर्थ, श्रीशठारी, श्रीतुलसी, श्रीप्रसाद, आदि) और उन्हें पालकी में उनके तिरुमाळिगै में विदा किये। यह सुनकर श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य  स्वामीजी बहुत प्रसन्न हुए और अपने अनुज को गले लगाकर कहा “वळर्तदनाल पयन पेऱऱेन्” (मुझे तुम्हारे पालन पोषण करने का लाभ का अहसास हुआ) जिसे तिरुनेडुन्दाण्डगम् के पाशुर में बताया गया हैं। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/07/27/yathindhra-pravana-prabhavam-12-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org

Leave a Comment