यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ५१

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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एऱुम्बियप्पा श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के शरण होते हैं 

तत्पश्चात एक श्रीवैष्णव तिरुमला जाते समय एऱुम्बि में पधारे। अप्पा की दृष्टी उनपर पड़ी, उन्होंने उन्हे आमंत्रण दिया और उन्हें कृपाकर श्रीरङ्गम्  मन्दिर और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के विषय में बताने को कहा। उन श्रीवैष्णव ने उन्हें कहा कि “कन्दाडै अय्यङ्गार् जैसे कन्दाडै अण्णन् और अन्य प्रख्यात जन जैसे तिरुवाऴियाऴ्वार् पिळ्ळै और अन्य श्रीवैष्णव जन स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण हो गये। स्वामीजी कि प्रसिद्धी दिन प्रति दिन बढ़ रही हैं”। यह सुनकर अप्पा को अपने दिव्य मन में बहुत आनन्द हुआ और उन श्रीवैष्णव को बहुमूल्य बहुमान प्रदान किये। उन्होंने फिर उन श्रीवैष्णव से कहा “हमने बहुत संक्षिप्त में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि वैभवता आप से सुने हैं। आप विस्तार से श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के श्रीरङ्गम से आऴ्वार्तिरुनगरि लौटने के सभी घटनाओं को कहे”। उन्होंने आगे कहा “कृपया तिरुमला से शीघ्र लौटे। हम आपके साथ श्रीरङ्गम् चलेंगे”। वें फिर अपने पूजनीय पिताजी के पास जाकर सम्पूर्ण घटनाओं को बताया। उनके पिता ने उन्हें कहा “यह प्रतित हो रहा हैं कि तुम्हें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण होना हैं। मुझे यह महसूस हो रहा हैं कि अभी यह उचित समय नहीं हैं। अगर तुम्हारी इच्छा हैं तो तुम उन्हें आदर प्रदान करों, उनसे सही गूढ़ार्थ सुनों, उनका श्रीपादतीर्थ और प्रसाद ग्रहण करों”। इस दौरान वह श्रीवैष्णव तिरुमला से लौट गया। एऱुम्बियप्पा उनके साथ श्रीरङ्गम् को पधारे। उन्होंने श्रीरङ्गनाथ भगवान के दिव्य चरणों में पूजा किये और पेरिया कन्दाडै अण्णन् के तिरुमाळिगै में गये जो उनके परम मित्र थे और वहाँ प्रसाद ग्रहण किया। तत्पश्चात उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य तिरुमाळिगै में गये। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को पता था कि एऱुम्बियप्पा बहुत विद्वान थे। उन्होंने बहुत विस्तार से श्रीसहस्रगीति के पहिले पाशुर उयर्व​ऱ उयर्नलम्   पर प्रस्तावना किया जिसमे सर्वेश्वर के गुण परत्वम् पर कहा गया हैं। एऱुम्बियप्पा जीयर से उपन्यासम् सुनकर अचम्बित हो गये और कहा “हमने सुना जीयर् केवल तमिऴ् भाषा के स्वामी हैं परंतु आप तो संस्कृत भाषा के भी स्वामी हैं। आप तो दोनों वेदान्तम् में निपुण हैं”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजीको उनके प्रति बहुत स्नेही हुए और उन्हें मठ में प्रसाद पाने के लिये प्रार्थना किये। एऱुम्बियप्पा ने तब तह कहा 

यत्यन्नं यतिपात्रस्नं यतिना प्रेशितञ्च यत्।
अन्नत्रयं न भोक्तव्यं भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत्॥

(सन्यासी का दिया हुआ सन्यासी के पात्र का और सन्यासी के द्वारा भेजा हुआ यह तीन प्रकार का अन्न भोजन नहीं करना चाहिये अन्यथा चान्द्रायण व्रत करने से शुद्धि होती हैं)। देवराजगुरु को इस विशेष शास्त्र का परिचय न था। (शास्त्र दो प्रकार के होते हैं सामान्य शास्त्र और विशेष शास्त्र)। उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण नहीं हुए; कन्दाडै अण्णन् के दिव्य तिरुमाळिगै मे भी नहीं गये और तुरन्त एऱुम्बि के लिये प्रस्थान किया।  

तिरुमाळिगै पहुँचते हीं उन्होंने अपने आराध्य देव चक्रवर्ती श्रीराम भगवान के तिरुवाराधन का कक्ष को खोलना चाहते थे। बहुत प्रयास करने पर भी वें मंदिर को खोल न सके। इससे वें बहुत शोक में आगये और कुछ पा न सके। जब रात में शयन किये तो चक्रवर्ती श्रीराम उनके स्वप्न में आकर यह कहे 

शेषः श्रीमानजनिहिपुरा सौम्यजामातृयोगी
     भोगीभूतः  ततनुभगवान्  राघवस्यानुजन्मा।
भूत्वाभव्यो वरवरमुनिः  भूयसापासमानः
      रक्षत्यस्मान्  रघुकुलपते रास्तितोपत्रपीठम्॥
भूत्वा भव्यो वरवरमुनिरः भोगिनां सार्वभौमः
       श्रीमद्रङ्गे वसतिविजयी विश्वसम्रक्षणार्थम्।
तत्वं गन्तुं व्रज शरणमित्यादिशत् राघवोयम्
       स्वप्ने सोयं वरवरगुरुः समश्रयो मातृशानाम्॥

(यह श्रीवरवरमुनि आदिशेष के अवतार हैं। फिर भगवान श्रीराम के अनुज लक्ष्मण बनकर अवतार लिये। तत्पश्चात वें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के रूप में अवतार लिये जो उनके अनुयायी को आसानी से प्राप्त हो जाते हैं और भगवान श्रीराम के सिंहासन पर बैठकर हमारी रक्षा कर रहे हैं। “आदिशेष श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के रूप में अवतार लिया और श्रीरङ्गम् में संसार कि रक्षा के लिये निवास कर रहे हैं” – ऐसे चक्रवर्ती भगवान श्रीराम ने उनके स्वप्न में आज्ञा किये।) 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/09/04/yathindhra-pravana-prabhavam-51-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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