यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ६३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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जब श्रीप्रतिवादी भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी श्रीवेङ्कटेश भगवान के तिरुवाराधनम् में तिरुमञ्जनम् के लिये आकाशगङ्गा से जल लाने कि सेवा कर रहे थे तभी श्रीरङ्गम्  से एक श्रीवैष्णव तिरुमला से श्रीवेङ्कटेश भगवान कि पूजा करने पधारे। अण्णा स्वामीजी ने उन श्रीवैष्णव कि भगवान के पूजा करने में सहायता किये। उन्होंने पूरे दिन उन्हें अपने निकट बैठाकर श्रीरङ्गम्  मन्दिर में होनेवाली गतिविधियों के विषय में जाना, भगवान को अर्पण होनेवाले प्रसाद, मन्दिर के उत्सवों और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की अतुलनीय महिमा के विषय में उनसे सुनते थे। अगले दिन जब श्रीअण्णा स्वामीजी भगवान के तिरुवाराधनम् के लिये आकाशगङ्गा से जल लाने के लिये गये तो उन्होंने उस श्रीवैष्णव को अपने साथ ले गये। जैसे कि कहा गया हैं “श्रुणोम्यहं प्रीतिकरं मम नाथस्य कीर्तनम्” (मैं अपने भगवान के वैभव को सुन रहा हूँ जो मुझे प्रसन्न करता हैं), उन्होंने उन श्रीवैष्णव को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिनचर्या और उनके अद्भुत वैभव को कहने को कहा। केवल यहीं सब उनके विचारों से उन्होंने तिरुमञ्जनम् के लिये जल लाया और उसमें सुगंधीत द्रव्य जैसे इलायची, लौंग, कपूर, आदि को जब मिलानेवाले थे तब एक एकांगी (जीयर स्वामीजी के सहायक जो सामान्यता ब्रह्मचारी होते हैं) ने भागकर आये और वह घड़ा तिरुमञ्जनम् के लिये ले गये। श्रीअण्णा स्वामीजी ने कहा “तिरुमञ्जनम् द्रव्य का मिश्रण नहीं किया गया हैं”। श्रीअण्णा स्वामीजी को सुने बिना उस एकांगी ने जल के घड़े को लिया और तिरुमञ्जनम् के लिये अर्पण किया जो हमेश के समान दयापूर्वक सम्पन्न हुआ। श्रीअण्णा स्वामीजी व्यथित होगये और एक अलग पात्र में द्रव्य सामाग्री लेकर गये और कहा “एक अपराध हो गया हैं”। उस अर्चक ने  हर्षोन्माद से कहा “तिरुमञ्जनम् के जल में सुगंधीत द्रव्य नित्य से भी अधीक हैं जिसे आज तक कभी नहीं देखा गया। सुगन्ध अद्भुत हैं!” अण्णा के भावज्ञर होने के कारण यह विचार किये “यह महज सयोंग नहीं हैं खुशी छलग रहीं हैं। इसका कारण श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की महिमा सुनना रहा होगा”। श्रीअण्णा स्वामीजी ने उन श्रीवैष्णव को बुलाया और उन्हें कहा “क्योंकि श्रीमान ने दयापूर्वक श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव को सुनाया हैं जिसे दास ने सुना हैं और भाग्यशाली हो गया। अप्पा (श्रीवेङ्कटेश भगवान) का दिव्य मन भी बहुत प्रसन्न हुआ। दास को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि तुरन्त पूजा करनी होगी”। अप्पन (श्रीवेङ्कटेश भगवान) प्रसन्न हुए और उन्हें तुरन्त अनुमति प्रदान किये।। 

तत्पश्चात कुछ समय के लिये श्रीवेङ्कटेश भगवान के आज्ञानुसार तिरुमञ्जनम् के गतिविधियों में संलग्न होने के पश्चात श्रीअण्णा स्वामीजी अपने परिवार सहित श्रीरङ्गम कि ओर प्रस्थान किये। श्रीरङ्गम् पहुँचते हीं उन्होंने दिव्य धाम को साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया, धाम को देखे बिना उन्होंने उस पर से नजरें नहीं हटाई। फिर उन्होंने स्नान कर ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक धारण कर श्रीरङ्गनारायण जीयर मठ को गये। वें सही क्रम से मन्दिर में पूजा करना चाहे जब उन्होंने चित्र मण्टप में श्रीवरवरमुनि स्वामीजी की सभा को देखा। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीसहस्रगीति के ४.१० पाशुर “ओन्ऱुम तेवुम्” के प्रस्तावना पर कालक्षेप कर रहे थे। प्रफुल्लित महसूस होकर अण्णा श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को साष्टांग दण्डवत प्रणाम किये। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने पूछा क्या वें प्रतिवादी भयङ्कर् अण्णा हैं, उनके विषय में पूछा और कहा “दास बहुत भाग्यशाली हैं कि दास को इतने दिनों पश्चात आप श्रीमान के दर्शन हुए” और उन्हें गले लगाया। उन्होंने श्रीअण्णा स्वामीजी को अपने निकट बैठाया और उपन्यास  पुनः प्रारम्भ किया। जब ३ पाशुरों पर व्याख्या करना समाप्त किया तब अण्णा ने यह कहकर उनकी प्रशंसा किये “बिना श्रीमान के दिव्य चरण कमलों के सम्बन्ध के यह जानना असंभव हैं कि कैसे आऴ्वारों ने भगवान के श्रेष्ठता को स्थापित किया”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उनके हाथ को पकड़ा और भगवान कि पूजा करने गये। श्रीतीर्थ, श्रीशठारी, आदि प्रदान करने के पश्चात भगवान अर्चकों के माध्यम से कहे “प्रतिवादी भयङ्कर् आचार्य आपका स्वागत हैं! आप तिरुमला में तिरुमञ्जनम् का कैङ्कर्य बड़े हीं समर्पित भाव से निभा रहे हैं। एक दिन आप जब श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभवों को सुन रहे थे तब वह जल पवित्र हो गया और दिव्य सुगन्धीत भी हो गया। क्या आप यह सोचकर नहीं आये कि हम इससे कैसे प्रसन्न हुए। हम आपको एक विशिष्ट सम्बन्ध प्रदान करेंगे” और अण्णा के दिव्य हाथों को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को सौंप दिया। वें फिर मठ को पहुँच गये। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/09/18/yathindhra-pravana-prabhavam-63-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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