यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ८३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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कोयिल् में आगे की घटनाएँ

जिस दिन श्रीवेङ्कटेश​ भगवान ने तिरुमलै अय्यङ्गार् को तिरुमला में कैङ्कर्य करने को कहा उस दिन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीसहस्रगीति के ३.३ दशक ओऴिविल्कालमेल्लम् उडनाय् मन्नि व​ऴुविला अडिमै सेय्य वेण्डुम् नाम्  (बिना रूके हमे निरंतर दोषरहित कैङ्कर्य भगवान कि ओर करना चाहिये) पर कालक्षेप कर रहे थे। वह खड़ा, बैठा या लेटा हो, दु:ख कि स्थिति में था और विलाप कर रहा था, विरक्त महसूस कर रहा था। पिछले रात्री को एक एकांगी (जीयर् स्वामीजी का एक सहायक जो अविवाहित होता है) जिसका नाम तिरुवेङ्कट जीयर् हैं श्रीप्रतिवादि भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी के स्वप्न में आकर कहे “ओ श्रीवैष्णव दास! आवो! कल ओऴिविल्कालमेल्लम्  पर कालक्षेप के समय श्रीवरवरमुनि स्वामीजी समाधि में होंगे क्योंकि वें कोई कैङ्कर्य नहीं कर रहे होंगे। उन्हें कहो तिरुमला में उन्हें हम कैङ्कर्य प्रदान करेंगे जो आदिशेष का अपरावतार हैं”। श्रीप्रतिवादि भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी चौंक कर उठे और सोच रहे थे “ऐसे इस स्वप्न कि महिमा हैं!” अगले दिन सुबह उन्होंने अपने नित्य कैङ्कर्य कर तिरुमलै कालक्षेप मठ पहुँचे जहां उन्होंने जीयर् स्वामीजी के समाने साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। वहाँ जीयर स्वामीजी कि अवस्था देख और पिछले रात्री अपने स्वप्न को स्मरण कर देखा कि दोनों समान हैं और प्रसन्न हो गये और जीयर स्वामीजी को अपने स्वप्न के विषय में बताया। जीयर् स्वामीजी ने अण्णा कि प्रशंसा कर उन्हें कहा “यह भी भगवान कि ऐसी कृपा हैं, प्रसन्नता हो रही हैं”। उन्होंने अण्णा स्वामीजी को स्वप्न को बार बार दौराने को कहे और अष्ट दिग्गज स्वामीजी से पूछे “आप इस के बारे में कैसे महसूस कर रहे हैं?” उन्होंने कहा “अब तक तिरुमला में कोई अद्भुत कृत्य हो गया होगा; श्रीमान किसी को यह विषय जानने कि आज्ञा करें”। उस समय उस श्रीवैष्णव गोष्ठी से एक व्यक्ति अऴगरण्णन् उठ खड़े होकर जीयर् स्वामीजी को साष्टांग दण्डवत कर उन्हें कहे “दास आप श्रीमान के दिव्य चरणों को पुरुषकार मानकर तिरुमला जायेगा, श्रीवेङ्कटेश​ भगवान कि पूजा कर और उस घटना को वहाँ सीखेगा”। जीयर् स्वामीजी उससे बहुत प्रसन्न होकर उसे जाने कि आज्ञा प्रदान किये। अऴगरण्णन् तुरन्त तिरुमला कि ओर गये और भगवान कि पूजा किये। उन्होंने इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै को वहाँ देखा और दोनों ने एक दूसरे को अभिवादन प्रगट कर एक दूसरे से के विषय को जाना। इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै ने उन्हें श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् से मिलाया जिन्होंने उन्हें सम्भावना देकर उनसे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव के विषय में पूछा। श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् ने अऴगरण्णन् से भगवान कि तिरुमला में भगवान के कैङ्कर्य के आज्ञा के विषय में कहा और उन्हें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य चरणों के शरण होने को कहा। अऴगरण्णन् ने उन्हें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के तिरुमला में कैङ्कर्य के इच्छा और श्रीप्रतिवादि भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी के स्वपन के विषय में भी कहा। श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् ने कहा “दास एक भाग्यशाली व्यक्ति हो गया हैं; श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के दिव्य हाथों कि कृपा से दास अपने क्षमता अनुसार कैङ्कर्य करेगा”। उन्होंने फिर इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  और अऴगरण्णन् को श्रीरङ्गम् जाने कि अनुमती प्रदान किये। वें तुरन्त चले गये और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को साष्टांग दण्डवत प्रणाम किये और उत्तर भारत के कई दिव्यदेशों के भगवान के प्रसाद उनके दिव्य चरणों में निवेदन किया। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उसे स्वीकार कर इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  से कहा हमने आपको बहुत दिनों पश्चात देखा हैं। उन्होंने अपनी कृपा इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  और अऴगरण्णन् पर बरसाई। उन्होंने फिर श्रीप्रतिवादि भयङ्कर् अण्णा स्वामीजी को कहे “आपका स्वप्न सफल हो गया हैं। क्या यह आपके लिये नहीं हैं क्या श्रीवेङ्कटेश भगवान ने आप पर कृपा बरसाई हैं!” उन्होंने इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  को आलिंगन कर कहे “आप बहुत दूर गये हैं!” उन्होंने श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् के सच्चे स्वभाव और विशेषताएँ के विषय में उनसे सुना। वें श्रीरङ्गनाथ भगवान, बद्रीकाश्रम भगवान, तिरुनारायण भगवान, श्रीवेङ्कटेश भगवान, अऴगर् [श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पर तनियन] के बीच एकमतता के विषय के बारे में स्मरण करते रहे। यह सभी घटानयें कन्दाडै अप्पन द्वारा कृपाकर अपने प्रबन्ध “वरवरमुनि वैभव विजयम” में लिखा गया हैं जिसे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने कृपाकर सुना हैं। 

फिर एक दिन जब श्रीवरवरमुनि स्वामीजी दिव्य कावेरी नदी से स्नान कर लौट रहे थे इळैयाऴ्वार् पिळ्ळै  ने उन्हें अपना हाथ देकर श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् कि इच्छा को कहा। [श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के हाथों से आशीर्वाद प्राप्त कर, कैङ्कर्य करने के लिये] श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने कहा “श्रीवेङ्कटेश भगवान कि पूजा करने का एक और अवसर प्राप्त होगा; उस समय वह इच्छा पूर्ण होगी; अभी तो उन्हें धन का कैङ्कर्य करने दो”। इळैयाऴवार् पिळ्ळै  ने फिर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी से कहा श्रीअयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् आपके दिव्य चरण पादुका को अपने तिरुवाराधन भगवान ऐसे पूजा कर रहे हैं। जब श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपने मठ में पहुँचे कुछ श्रीवैष्णव जो उनके चरणों से सम्बंधीत थे ने उन्हें कहा वें तिरुमला में पुरट्टासि महोत्सवम् में पूजा करने हेतु तिरुमला कि ओर प्रस्थान कर रहे हैं। यह सुनकर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी बहुत प्रसन्न हुए, तिरुमला कि दिशा कि ओर देखे, अंजली अर्पण कर अपनी दिव्य चरण पादुका दिये और उन्हें रामानुज अय्यङ्गार् को देने को कहे जिसके पश्चात वें तिरुमला कि ओर प्रस्थान किये। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/10/09/yathindhra-pravana-prabhavam-83-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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