श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
अब यतीन्द्र और यतीन्द्र प्रवणर के मध्य में समानता:
श्रीरामानुज स्वामीजी श्रीपेरुम्बुतूर में अवतरित हुए जो श्रीरङ्गम् के उत्तर दिशा में स्थित हैं, ताकि संस्कृत और तमिऴ् भाषा दोनों को उजागर किया जा सके। उनके अवतार के कारण “नारणनैक् काट्टिय वेदम् कळिप्पुट्रदु तेन् कुरुगै वळ्ळल् वाट्टमिला वण् तमिऴ् मऱै वाऴ्न्ददु” (संस्कृत भाषा बहुत आनंदित थी; आऴ्वार्तिरुनगरि के परोपकारी श्रीशठकोप स्वामीजी द्वारा उपयोग होने वाली उदार तमील भाषा, उत्थान बन गई)। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी जैसे कि कहा गया हैं “अरङ्गनगरुम् मेवु तिरुनगरियुम् वाऴ्न्द मणवाळमामुनि” (श्रीरङ्गम् और वांछनीय आऴ्वार्तिरुनगरि दोनों का श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अवतार के कारण उत्थान हुआ) तमिऴ् भाषा को उभारने के लिये आऴ्वार्तिरुनगरि में अवतरित हुए जो दक्षिणी क्षेत्र के लिए तिलतम् हैं। हालांकी वें संस्कृत और तमिऴ् दोनों भाषा के स्वामी थे परन्तु अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने हेतु यहाँ केवल तमिऴ् का उल्लेख किया गया हैं। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने भी अपने जन्म स्थान को छोड़ श्रीरङ्गम् पहुंचे जो दो नदियों (कावेरी और कोळ्ळिडम्) के मध्य स्थित हैं, काले रत्न (श्रीरङ्गनाथ भगवान) के दर्शन प्राप्त कर, कैङ्कर्य के धन के साथ रहते थे और कैङ्कर्य के धन और दो वेदों (संस्कृत और तमिऴ्) के धन का पोषण करते हैं। श्रीरामानुज स्वामीजी ने “एल्ला उयिर्गट्कुम् नातन् अरङ्गन्” (श्रीरङ्गनाथ भगवान सभी चेतनों के स्वामी हैं) पर प्रकाश डाला जब कि श्रीवरवरमुनि स्वामीजी “पुल्लुयिर्क्कुम् विण्णिन् तलै निन्ऱु वीडळिप्पान्” (श्रीरामानुज स्वामीजी सभी को मोक्ष प्रदान करेंगे) और “अनैत्तुलगुम् वाऴप्पिऱन्द इरामानुसन्” (श्रीरामानुज स्वामीजी सभी का उत्थान करने हेतु इस संसार में अवतार लिये) पर प्रकाश डाला। जब तक श्रीवरवरमुनि स्वामीजी का अवतार नहीं हुआ तब तक श्रीरामानुज स्वामीजी के महिमा में इतना वैभव नहीं था। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी वह दीपक थे जिन्होंने श्रीरामानुज स्वामीजी कि महिमा को उजागर किया। दोनों का अवतार नर नारायण के समान हैं (भगवान बद्रीकाश्रम में आचार्य और शिष्य के रूप में अवतार लिया जैसे नारायण और नर क्रमश:)। वहाँ दोनों आचार्य और शिष्य एक हीं थे; श्रीरामानुज स्वामीजी और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के स्थिति में भी समान थे [दोनों आदिशेष के अवतार हैं]। श्रीरामानुज स्वामीजी ने नारायण के वैभव पर प्रकाश डाला और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीरामानुज स्वामीजी के वैभव पर प्रकाश डाला। दोनों नारायण और श्रीरामानुज स्वामीजी चतुराक्षर हैं। क्योंकि श्रीवरवरमुनि स्वामीजी सभी प्रतिष्ठित जनों में प्रमुख थे चरमचतुराक्षरी में गहराई से निहित थे। आचार्य के अलावा किसी अन्य देवताओं को न जानने कि स्थिति में होने को चरमपर्वम् (अंतिम स्थिति) कहा जाता हैं। श्रीशठकोप स्वामीजी के दिव्य चरणों को रामानुसन कहा जाता हैं। उसी तरह श्रीरामानुज स्वामीजी के कई मुख्य शिष्य थे जैसे श्रीकुरेश स्वामीजी, श्रीदाशरथी स्वामीजी, आदि परन्तु केवल श्रीवरवरमुनि स्वामीजी हीं यतीन्द्रप्रवणर् के जैसे प्रसिद्धी प्राप्त किये। यह तनियन् (श्रीशैलेश दयापात्रम्) प्रपत्ति और वेदों के सार के समान नित्यानुसन्धान में लाना चाहिये।
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अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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