कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – २८ – कुवलयापीड हाथी का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

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इस प्रकार श्रीकृष्ण और बलराम ने स्वयं का श्रृंगार किया और सीधे उस स्थान पर पहुँचे जहाँ धनुषोत्सव आयोजित किया गया था। वहाँ जब रक्षकों ने उन्हें प्रवेश करने पर रोक लगाई तब श्रीकृष्ण ने वहाँ रखा धनुष उठाया और उसे भङ्ग कर दिया। उन रक्षकों ने जब श्रीकृष्ण और बलराम पर प्रहार किया तब उन्होंने रक्षकों को पराजित कर दिया।

तत्पश्चात् श्रीकृष्ण और बलराम मथुरा में प्रसन्नचित्त होकर घूमने लगे। रात्रि में विश्राम स्थल पर पहुँचे। अगली सुबह कंस के किले की ओर प्रस्थान किया। उस समय किले के प्रवेशद्वार पर सबसे पहले उन्हें कुवलयापीड नामक हाथी ने रोका जो बहुत विशाल और शक्तिशाली था। इसका महावत निपुण था। यदि कोई हाथी को गिरा भी देता तो वह अपनी निपुणता से उसे फिर से खड़ा कर देता। महावत ने उसे नशीले खाद्य पदार्थ खिलाकर पागल किया हुआ था। वह हाथी श्रीकृष्ण और बलराम को मारने की प्रतीक्षा कर रहा था।

जैसे ही हाथी ने श्रीकृष्ण को देखा, महावत के संकेत से वह श्रीकृष्ण की ओर बढ़ने लगा। श्रीकृष्ण दौड़कर उसके पैरों में घुस गये और प्रताड़ित किया, उसका दांत उखाड़ दिया और उसके महावत का वध कर दिया। श्रीकृष्ण विजयी होने पर उसके दाँत उठाकर चलने लगे।

आऴ्वारों ने इस लीला को कई पासुरों में वर्णित किया है। पॊय्गै आऴ्वार् ने अपने मुदल् तिरुवन्दादि में वर्णन किया है, “वॆन्ऱि सऴ् कळिट्रै ऊन्ऱिप् पोरुदुडैवु कण्डानुम्,” (जिसने शक्तिशाली हाथी को हराकर अंग-भंग कर दिया)। आण्डाळ् के तिरुप्पावै के पासुर, “कोट्टुक् काल् कट्टिल् मेल्” की व्याख्या टिप्पणी में आचार्य कहते हैं कि श्रीकृष्ण के पर्यङ्क के पायों के लिए कुवलयापीड नामक हाथी के दाँत का प्रयोग किया गया था। कुलशेखर आऴ्वार् अपने पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं, “वेङ्गट्टिन् कळिऱडर्त्ताय्” (वह जिसने कंस के हाथी (कुवलयापीड) को मार डाला, जिसका हृदय दृढ़ था)। तिरुमङ्गै आऴ्वार् अपने पॆरिय तिरुमोऴि में कहते हैं, “विऱ्-पॆरु विऴवुम् कञ्जनुम् मल्लुम् वेऴमुम् पागनुम् वीऴ,” (महत्वपूर्ण धनुषोत्सव, कंस, मल्लों, हाथी और उनके महावत को गिराने के लिए)।

सार:-

  • भगवान गजेन्द्र नामक हाथी की भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीवैकुण्ठ से दौड़े आए। लेकिन श्रीकृष्ण के अवतार रूप में उन्होंने उस हाथी का वध कर दिया जिसने उनका विरोध किया था। चाहे वह हाथी हो, मनुष्य हो या दिव्य प्राणी, वह स्वभावतया उन लोगों की रक्षा करते हैं जो उनमें आस्था रखते हैं। और उन लोगों का विनाश कर देते हैं जो उनका विरोध करते हैं।
  • भगवान सबसे भयंकर कठिनाई और बाधाओं को आसानी से समाप्त कर देते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/05/krishna-leela-28-english/

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