यतीन्द्र प्रवण प्रभावम – भाग २

श्री:  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम

<< भाग १

एक दिन श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी अपने दिन नित्य कालक्षेप करने के पश्चात अकेले विश्राम कर रहे थे जब अम्मी, उनके एक शिष्य वडक्कु तिरुवीदिप्पिळ्ळै कि माताजी दण्डवत प्रणाम कर उनके बगल में खड़ी हो गयी। उन्होने बड़ी करुणा से उनकी ओर देखा और उन्से उनके परिवार के विषय में पूछा। यह वह संवाद है: 

“मैं आपसे क्या निवेदन करूँ? मेरा पुत्र असभ्य है। 

“ऐसा क्यों हैं?

“आपको को स्मरण होगा आपने उसका एक लड़की से विवाह कराया था। वह अब यौवन हो गई हैं। हमने उनका विवाह संस्कार कराया। वह चिल्लाया। हमने अन्दर जाकर देखा वह पूर्ण पसीने मे भीग गया था और रोने की स्थिति में था। जब पूछा गया की क्या हुआ तब उसने कहा ‘ओ माँ! यह लड़की मुझे सर्प समान दिखाई दे रही है। मैं डर गया हूँ। वह अभी भी वैसे हीं हैं’। मैं दंग रह गयि और उस लड़की को जाने को कहा। एक और अवसर में भी यही अनुक्रम दोहराया गया।” 

“यह आपको कैसे प्रभावित करता हैं?” पिळ्ळैजी ज़ोर से हँसकर यह पूछते थे। 

“क्या आप ऐसे हो सकते हो? क्या वह लड़की आराम से नहीं रह सकती? क्या वंश आगे बढ़ाने के लिए कोई पुत्र नहीं चाहिए?” यह पूछते हुए वह पून: उनके चरणों में गिर जाती हैं और उदास हो जाती हैं। 

श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी करूणा से उसे कहते हैं “अम्मी! उठो। शोक मत करो। एक उचित समय देखकर अपनी बहू को लेकर आवो”। वह भी अपनी बहू को उनके दरबार में लेकर आयी। श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी ने उनके पेट को अपने दिव्य हस्तो से स्पर्श किया और कहा “आप मेरे जैसे एक पुत्र को जन्म दे”। तत्पश्चात वें वडुक्कु तिरुवीदिप्पिळ्ळै को बुलाकर उन्से कहे थे “आपका भय अब दूर हो गया हैं। आपके विषयों के प्रति अनासक्ति में कोई कमी नहीं रहेगी जिस्को हमारे शास्त्रों ने अनुमति देते हैं । मेरे शब्दों को मानकर आप उसके साथ रात्री में रहीये।” उस बहू ने गर्भ धारण किया और कार्तिक महिने के श्रवण नक्षत्र में एक पुत्र को जन्म दिया। पुत्र के जन्म के बारहवें दिन उसे दिव्य नाम दिया गया “लोकाचार्य पिळ्ळै” जो श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी (लोकाचार्य) के नाम के समान हैं। जब वह पुत्र एक वर्ष का होगया तब उसे बड़े उत्सव जैसे पालकी, मधुर गीत, बाजे आदि के साथ श्रीरंगनाथ भगवान के मन्दिर में पुजा हेतु ले जाया गया। श्रीरंगनाथ भगवान बहुत प्रसन्न होकर उन्हें अपना श्रीतीर्थ, श्री शठकोप, चन्दन का लेप, पुष्प माला आदि प्रदान कर मन्दिर के अर्चक के मुख से श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी  से कहे “आपने मुझे आपके जैसा पुत्र प्रदान किया अब हमारे जैसा एक पुत्र प्रदान किजीए” जिसे श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी तुरन्त माना और इस तरह अऴगिय मणवाळ पेरुमाळ नायनार का बड़ी कृपा से अवतार हुआ। 

इस प्रकार श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी जिनका अवतार श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी जैसे महान आचार्य कि कृपा से हुआ और श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी के कृपा से अपने अनुज को थामे साथ में पले बड़े। जब दोनों साथ में चलते थे श्रीरङ्गम के भक्तजन आश्चर्यचकित हो जाते थे कि क्या भगवान श्रीराम और श्रीलक्ष्मण साथ चल रहे या श्रीबलरामजी और भागवन श्रीकृष्ण साथ चल रहे है। इसका अर्थ बड़ी सुन्दरता से श्रीपिळ्ळै लोकम जीयर स्वामीजी ने वेण्बा (एक प्रकार कि तमिल कविता) में प्रस्तुत किया है।

तम्बियुडन दासरथियानुम सङ्गवण्ण
नम्बियुडन पिन्नडन्दु वन्दानुम-पोङ्गुपुनल
ओङ्गु मुडुम्बै उलहारियनुम अऱम
ताङ्गु मणवाळनुमे तान

(श्रीपिळ्ळै  लोकाचार्य स्वामीजी और उनके अनुज अऴगिय मणवाळ पेरुमाळ नायनार  एक प्रशंसनिय वंश मुदुंबै के निवासी हैं जो भगवान श्रीराम और श्रीलक्ष्मण और शन्ख समान वर्ण  श्रीबलरामजी और भागवन श्रीकृष्ण कि तरह चल रहे थे)। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/07/17/yathindhra-pravana-prabhavam-2-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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