आचार्य हृदयम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः

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“आचार्य हृदयम्” याने आचार्य के मन के भाव। यहाँ आचार्य शब्द नम्माऴ्वार् (श्री शठकोप स्वामी) को इङ्गीत कर रहा है। आऴ्वार् को भगवान श्रीमन्नारायण के प्रति अत्यधिक प्रगाढ भक्ति थी और उन्होंने अपने दिव्य प्रबंधों से पूरी दुनिया को भक्ती का मार्गदर्शन भी किया। “हृदयम्” का अर्थ है हृदय। ऐसे “आचार्य हृदयम्” का अर्थ हुआ आऴ्वार् नम्माऴ्वार् के दिव्य विचार/हृदय।

वडक्कु तिरुविधि पिळ्ळै (श्री कृष्ण पाद स्वामी) के पुत्र और पिळ्ळै लोकाचार्य स्वामी के छोटे भाई, अऴगिय मणवाळप् पेरुमाळ् नायनार् (श्री रम्यजामातृ देव जी) ने नम्माऴ्वार् की महिमा, उनके प्रबंधों की महिमा और उनके तिरुवाय्मोऴि के गहरे अर्थों को प्रकट करते हुए “आचार्य हृदयम्” नामक यह सुंदर ग्रंथ लिखा। नायनार् ने इस ग्रंथ में आऴ्वारों और ऋषियों के शब्दों का ही व्यापक रूप से प्रयोग किया है और अपने स्वयं के बहुत ही कम शब्दों का उपयोग किया है। इस ग्रंथ को हमारे श्रीवैष्णव सम्प्रदाय में सबसे अद्भुत साहित्य के रूप में माना है।

मणवाळ मामुनि ने, जिन्हें श्री वरवरमुनि स्वामी के नाम से भी जाना जाता है, इस अद्भुत ग्रंथ के लिए एक सुंदर व्याख्या लिखी है। इस भाष्य की सहायता के बिना इस ग्रन्थ का सम्पूर्ण अर्थ समझ पाना असंभव ही है।

श्रीमान बी. आर. पुरुषोत्तम नाय्डु ने मूल ग्रन्थ के आधार‌ पर सरल तमिऴ भाषा में एक ग्रन्थ लिखा है। हमारे इस प्रयास में जहाँ भी अवश्यकता हो इस ग्रन्थ का सहायता लेंगे।

यद्यपि यह ग्रंथ समझने में और उचित भाषानुवाद करने में कठिन है, हम आऴ्वार्/आचार्य की कृपा पर पूर्ण अवलंबित हैं कि इस ग्रंथ के मूल्यों को सच्चाई से प्रस्तुत कर सकें।

अडियेन् श्याम्सुन्दर् रामानुज दासन्
अडियेन् अमिता रामानुजदासी

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