आचार्य हृदयम् – ८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः 

श्रृंखला

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अवतारिका (परिचय)

इनके कारणों को बताया गया है।

चूर्णिका – ८

इवट्रुक्कु मूलम् इरुवल्लरुळ् नल्विनैगळ्

सामान्य व्याख्या

भगवान के कृपा कटाक्ष (कृपा दृष्टि) जन्म के समय और जन्म (बिना कृपाकटाक्ष के) का कारण भी भगवान की कृपा ही है और प्रबल पुण्य और पाप हैं।

व्याख्यान (टीका टिप्पणी)

अर्थात् – इस संसार में जन्म का कारण प्रबल पुण्य और पाप हैं, जिनका आत्मा से दूर नहीं किया जा सकता, जैसे कि तिरुवाय्मोऴि १.५.१० में कहा गया है, “सार्न्द इरु वल् विनै” (दो प्रकार  के प्रबल कर्म अर्थात् पुण्य और पाप, जो मेरे साथ ही हैं, जिनसे अलग होना असंभव है); भगवान के कृपा कटाक्ष का मूल कारण उनका अनुग्रह (सुकृत्य) के रूप में उनका कृपा स्व स्वरूप है, जैसे तिरुवाय्मोऴि ५.९.१० “तॊल् अरुळ् नल् विनै” (उनका कृपालु स्वभाव ही पुण्य तथ्य है)।इरुवल्लरुळ् नल्विनैगळ् को इरु वल् विनै (दो प्रकार के प्रबल कर्म) और अरुळ् नल् विनै (दया पूर्ण पुण्य कर्म) के रूप में देखना चाहिए।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

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