श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नमः
अवतारिका (परिचय)
इस चूर्णिका में इस प्रश्न का समाधान किया गया है कि, “यदि भगवान सभी आत्माओं के साथ निज सम्बन्ध के कारण शास्त्रों का प्रकटीकरण कर रहे हैं, तो केवल मोक्ष की ओर ले जाने वाले शास्त्र का ही प्रकटीकरण करने के बदले, उन्होंने सांसारिक और पारलौकिक भोगों की ओर ले जाने वाले साधनों को बताने वाले शास्त्रों का भी साथ में प्रकटीकरण क्यों किया?”
चूर्णिका – १४
वत्सलैयान माता पिळ्ळै पेगनियामल् मण तिन्नविट्टु प्रत्यौषधम् इडुमापोले ऎव्वुयिर्क्कुम् तायिरुक्कुम् वण्णमान इवनुम् रुचिक्कु ईडागप् पन्दमुम् बन्धम् अऱुप्पदोर् मरुन्दुम् काट्टुमिऱे।
सामान्य व्याख्या
वात्सल्य भाव से माता मिट्टी खाने वाले बालक को पहले रोकती नहीं है तत्पश्चात प्रत्यौषध देती है (रोकने की औषधि) देती है, उसी प्रकार समस्त चेतनों के लिए वत्सला माता स्वरूप भगवान, पहले रुचि अनुसार बन्धन रूप पुरुषार्थ साधनों को बताकर, बन्ध निवर्तक मोक्षशास्त्र रूपी औषधि बताते हैं।
व्याख्यान (टीका टिप्पणी)
अर्थात् – जब वत्सला माता अपने पुत्र को जन्म देने के पश्चात् जब उसका वही पुत्र मिट्टी खाने की इच्छा करता है तब उसे रोकती नहीं है, उसे मिट्टी खाने देती है बाद में उपचार के लिए औषधि देती है, इसी प्रकार तिरुवाय्मोऴि १.५.३ में वर्णन किया है, “ऎव्वुयिर्क्कुम् तायोन्” (सभी प्रकार के जीवों के लिए वत्सला माता स्वरूप) और पेरिय तिरुमोऴि ११.६.६ “तायिरुक्कुम् वण्णमे” (माँ जैसे) में कहा गया है भगवान आत्माओं (चेतनाओं) के प्रति माँ के समान वात्सल्य भाव रखते हैं, आत्माओं की इच्छानुसार, पहले बन्धन बताते हैं, तत्पश्चात् बन्धन निवर्तक औषधि बताते हैं।
इसके साथ यह कहा गया है कि भगवान का यह कार्य उनके सम्बन्ध पर आधारित उनकी वत्सला मातृत्व भाव के कारण है, इसलिए सम्बन्ध को कोई हानि नहीं होती।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार – https://granthams.koyil.org/2024/03/08/acharya-hrudhayam-14-english/
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