श्री वैष्णव लक्षण – ४

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद गुरू परम्परा अपने पिछले लेख में हमने आचार्य और शिष्य के रिश्ते के बारे में चर्चा की थी। कोई अगर हमें पुछे कि, “हमें अपने और भगवान के बीच में आचार्य की क्या जरूरत है? … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद आचार्य–शिष्य संबंध उदैयवर (श्रीरामानुज स्वामीजी)– आलवान (श्री कुरेश स्वामीजी)- आदर्श आचार्य और् शिष्य – कूरम पिछले लेख में हमने देखा कि पञ्च संस्कार हमारे श्रीवैष्णव जीवन को प्रारम्भ करता है। हमने आचार्य और शिष्य के … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – २

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद पञ्च संस्कार हमारे पहले अनुच्छेद में श्री वैष्णवों के बाह्य स्वरूप और गुण के बारे में पढ़ा था. कोई हमसे पूछ सकता है ” किसी का बाह्य स्वरूप इतना आवश्यक क्यों है? शास्त्रों में दिए … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – १

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः बाह्य स्वरूप अपने पूर्वाचार्यों के बहुत से ग्रन्थो में बहुत सी जगह श्री वैष्णवों के लक्षणो के बारे में उल्लेख किया है। इसी संधर्भ में हमें अपने पूर्वाचार्यों के ग्रन्थों में बहुत से उदाहरण मिलेंगे। पद्म पुराण में एक मौलिक प्रमाण … Read more