लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – १३

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद 121) शिष्यनुक्कु आचार्यानुवर्त्तनम् पण्णलावदु अवन् देह परिग्रहम् पण्णियुरुक्किर नाळिलेयिरे।पिन्भुळ्ळत्तेल्लाम् भगवदनुभवत्तिले अन्यविक्कुमिरे इरुवर्कुम् ।                         अनुवर्त्तनम् – आज्ञा पालन और सेवा करना, पिन्बु – परमपद पहुँचकर इस … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – १२

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद   १११) मुक्तात्मानुक्कु लीलाविभूति तदीयत्वाकारत्ताले उद्देश्यमाग निन्रतिरे मुक्तात्मा के लिए, लीलाविभूति (यह भौतिक संसार) भोग्य वस्तु ही है क्योंकि यह भी भगवान् की ही सम्पत्ति है । यह हमने १०५ वें  सूत्र मे विस्तारपूर्वक देखा है … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ११

श्रीः  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः  श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद १०१) पिरिविल् गुणानुसन्धानम् पण्णि दरिक्कलाम् । अवन् सन्निदियिल् अवनैयोऴिय अरैक्षणमुम् मुकम् मारियिरुक्कुमतुक्कु मेर्पट्ट मुडिविल्लै भगवद्विप्रलम्भ भाव मे, हमे भगवान् के दिव्य कल्याण गुणों का चिन्तन और अनुसन्धान करना चाहिये । परन्तु उनके समक्ष यानि उनके सङ्ग मे, … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – १०

श्रीः  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः  श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद ९१ ) शेषत्वम् आत्मावुक्कु स्वरूपमानाल् देहत्तुक्कु विरोधियाय् निर्कुम् निलै कुलैन्दु यथा आत्म दास्यम् हरेः स्वाम्यं  अर्थात् भगवान् श्रीमन्नारायण ही परमात्मा एवं सर्व शेषी है और अन्य चेतन उनके शेष व दास है । जीवात्मा अगर यह समझ … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ९

श्रीः  श्रीमते शठकोपाय नमः  श्रीमते रामानुजाय नमः  श्रीमद्वरवरमुनये नमः  श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद ८१) अनुष्ठानम् साधनमागातु अनुष्ठान साधन नही होता अर्थात् सही साधन नही है । अनुवादक टिप्पणी : भगवद्प्राप्ति के लिये भगवान् ही एक मात्र उपाय साधन है । केवल उनके सङ्कल्प मात्र से ही सब कुछ होता है … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ८

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै एवं एम्पेरुमान् सहित उभय नाच्चियार् 71) भक्तिमानुडैय भक्ति वैदमाय् वरुमतु । प्रपन्नुडैय भक्ति रुचि कार्यमायिरुक्कुम् । भक्तिपरनुक्कु साधनमायिरुक्कुम् । इवनुक्कु देहयात्रा शेषमायिरुक्कुम् ।  भगवद्भक्ति (भगवद्रति) के कारण कृष्ण-तृष्ण-तत्त्वज्ञता से स्तव्य) — नम्माऴ्वार् भक्त की भक्ति भक्ति-योग … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ७

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै तिरुवल्लिकेणि ६१) एम्पेरुमानार् दर्शनस्तरिल् एत्तनैयेणुम् कल्वियिल्लात स्त्रीप्रायरुम् देवतान्तरगळै अडुप्पिडु कल्लोपादियाग निनैत्तिरुक्कुम् श्रीरामानुज दर्शनान्तर्गत अनुयायियों मे, एक अशिक्षित स्त्री (जिसको प्राथमिक शिक्षा भी अप्राप्त हो वह) भी जानती है कि परतत्त्व, परमेश्वर, परब्रह्म श्रीमन्नारायण ही है … Read more

कैशिक माहात्म्य (कैशिक पुराण का माहात्म्य)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमद्वरवरमुनये नम: श्रीवानाचल महामुनये नम: यह हिन्दी लेख, ” कथा-सङ्ग्रह ” (सङ्क्षिप्त कथा वर्णन) जो ” कैशिक-महात्म्य ” नामक ग्रन्थ से उद्धृत है जिसका संस्करण श्रीमान् उ.वे. कृष्णस्वामी अय्यङ्गार (जो श्रीवैष्णव सुदर्शन के मुख्य संपादक है) ने किया है । यह वराह-पुराणान्तर्गत कैशिक-पुराण कि कथा का सङ्क्षिप्त वर्णन … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ६

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै तिरुवल्लिकेणि ५१) मुन्बु मुकम् तोट्ट्राते (तोत्ताते) निन्रानागिलुम् आबत्तु वन्दवारे मुकम् काट्टि रक्षिक्कुमवनायिट्ट्रु (रक्षिक्कुमवनायित्तु) | अवनिप्पडि इरुप्पानोरुवनागैयाले स्वाराधन् | हालांकि बहुत लम्बे समय तक भगवान् प्रकट नही होते व दर्शन नही देते पर जब भी भक्त … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ५

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै – तिरुवल्लिक्केणि ४१) अव्यतत्तिनुडैय व्यक्ततदशैयिरे महानागिरतु मूल प्रकृति प्रथम तत्त्व है | ऐसी प्रकृति के तीन गुण हैं : सत्त्व, रजस, तमस | प्रकृति केअव्यक्त स्थिति को अव्यक्त कहते हैं| इस स्थिति मे तीनो गुण (सत्त्व, … Read more