लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ४
श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै – तिरुवल्लिक्केणि ३१) पिराट्टि अशोकवनैकैयिळे पिरिन्तिरुन्ताप् पोलेयिरुक्किरतु काणुम् स्वरूप ज्ञान् पिरन्तवारे उडम्बुडनिरुक्कुमिरुप्पु चेतन (जीव) को स्वस्वरूप ज्ञान के माध्यम से अपने निज स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है कि वह भगवान् और भागवतों का … Read more