लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ४

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै – तिरुवल्लिक्केणि ३१)  पिराट्टि अशोकवनैकैयिळे पिरिन्तिरुन्ताप् पोलेयिरुक्किरतु काणुम् स्वरूप ज्ञान् पिरन्तवारे उडम्बुडनिरुक्कुमिरुप्पु चेतन (जीव) को स्वस्वरूप ज्ञान के माध्यम से अपने निज स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है कि वह भगवान् और भागवतों का … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – ३

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै – श्रीरङ्गम् २१) प्राप्ति पलमाय् वरुमतिरे कैङ्कर्यम् परमपद मे अप्रतिबन्धित सेवा (कैङ्कर्य), जीवात्मा का एकमात्र उद्देश्य – जीव का अन्तिम लक्ष्य जीवात्मा (जीव), स्वभाव से, परम ईश्वर भगवान् श्रीमन्नारायण का दास है | जब … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – २

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां << पूर्व अनुच्छेद नम्पिळ्ळै(श्री कलिवैरिदास स्वामीजी) – तिरुवल्लिकेणि ११) प्राप्याभासङ्गगळिलु प्रापगाभासङ्गळिलुम् नेगिऴ्न्तु अवनैयोऴिन्त एल्लावत्तलुम् ओरु प्रयोअनमिन्रिक्के इरुक्क वेणुम्  वरमंगै नायिका , श्रीदेवी , भूमि देवी, आण्डाळ समेत श्री वानमामलै दैवनायक पेरुमाल , नाँगूनेरी -श्री शठकोप स्वामीजी इनके प्रति पूर्ण … Read more

लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां – १

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्री वानाचलमहामुनये नमः लोकाचार्य स्वामीजी की दिव्य-श्रीसूक्तियां नम्पिळ्ळै   1) स्वपक्षत्तै स्थापिक्कवे परपक्षम् निरस्ततमामिरे | नेर्चेय्यप्पुत्तेयुमापोळे |  जैसे चावल को उत्थित कर पीटने से, स्वत: अपतृण विनष्ट हो जाते है, उसी प्रकार जब स्वयं का मत स्थापित हो, अन्य मत स्वत: निरस्त हो जाते है | २) स्वरूपानुसन्धानत्तुक्क … Read more