प्रपन्नामृत – अध्याय ५०

प्रपन्नामृत – अध्याय ५० श्री कुरेश स्वामी का सुन्दर गिरि पर निवास 🔹एकबार कुरेश स्वामीजी रंगनाथ भगवान के दर्शन के लिये गये तो द्वारपोलोंने उन्हे रोकदिया। 🔹द्वारपालोंने कहा की “कृमिकण्ठ राजा नाराज न हो इसलिये यतिराज के संबंधियोंको मंदिरमें प्रवेश नही दिया जा रहा है”। 🔹द्वारपालोंने आगे कहा, “फिर भी आप तो महात्मा हैं इसलिये … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४९

प्रपन्नामृत – अध्याय ४९ श्री कुरेशस्वामी और कृमिकण्ठ का विवाद 🔹जब कुरेश स्वामीजी और महापुर्ण स्वामीजी कृमिकण्ठ के राजदरबारमें लाये गये तब उस श्रीवैष्णवद्वेषी राजा ने कठोर शब्दोंमें कुरेश स्वामीजी से कहा, “लिखो, शिव से बढ़कर संसारमें अन्य कोई श्रेष्ठ तत्व नही” 🔹कुरेश स्वामीजी ने धैर्यपुर्वक विविध प्रमाण देकर श्रीमन्नारायण ही परतत्व हैं यह सिद्ध … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४८

प्रपन्नामृत – अध्याय ४८ यतिराज श्रीरामानुजाचार्य द्वारा यादवाद्रि पर श्रीसम्पत् कुमार भगवान की प्रतिष्ठा 🔹यतिराज जब सम्पतकुमार भगवान को लेकर दिल्ली से यादवाद्रि आरहे थे तब मार्गमें ही वह राजकन्या भगवान के श्रीविग्रहमें विलीन होगयी। 🔹तत्पश्चात श्रीनारायणपुर पहुँचकर यतिराज नें विधीपुर्वक सम्पतकुमार भगवान का संप्रोक्षण करके मूलमुर्ति के समीप प्रतिष्ठित कर दिया। 🔹राजकन्या की भी … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४७

प्रपन्नामृत – अध्याय ४७ 🌷सम्पतकुमार भगवान की प्राप्ति🌷 🔹एक समय तिलक करनेके लिये श्रीरङ्गम से लाया हुवा पासा समाप्त होने को आया। 🔹यतिराज को चिन्ता हुयी की अब श्रीवैष्णव लोग तिलक कैसे करेंगे। 🔹यादवाद्रिनाथ भगवान ने स्वप्नमें आदेश दिया की यादवाद्रि पर तिलकपासा निर्माण करनेके लिये पर्याप्त मात्रा में श्वेतमृत्तिका उपलब्ध है। 🔹यतिराज विष्णुवर्धन राजा … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४६

प्रपन्नामृत – अध्याय ४६ पिशाच बाधा से राजकन्या की मुक्ति 🔹यतिराज मैसुर राज्य के शालग्राम नामक ग्राम में आये। 🔹यहाँके सभी लोग मायावादमें आकण्ठ डुबे हुये थे। 🔹उनपर कृपा करनेके लिये यतिराजनें  दाशरथि स्वामीजी को कहा की ग्राम का मुख्य तालाब है जहाँसे सभी ग्रामवासी जल ग्रहण करते हैं, उस तालाबमें अपने चरण प्रक्षालन करके … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४५

प्रपन्नामृत – अध्याय ४५ चेलाञ्चलाम्बा का वृत्तान्त भाग १/२ 🔹यतिराज अपने शिष्योंको साथ चेलाञ्चलाम्बा के घर पधारें। 🔹चेलाञ्चलाम्बा ने उनका आदर सत्कार करके प्रसाद पाने का आग्रह किया। (रामानुजाचार्य काषाय वस्त्रमें ना होनेके कारण चेलाञ्चलाम्बा उनको पहचान नही पायीं) 🔹उन श्रीवैष्णवोंका प्रसाद के लिये संकोच देखकर चेलाञ्चलाम्बा ने बताया की वें भी रामानुजाचार्य की शिष्यां … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४४

प्रपन्नामृत – अध्याय ४४ पश्चिम दिशा में प्रस्थान 🔹कृमिकण्ठ राजा दुर्जन, श्रीवैष्णवद्वेषी, भगवान श्रीमन्नारायण का निन्दक था और श्रीवैष्णव धर्म से इसको बड़ा विरोध था। 🔹श्रीवैष्णव विरोधी सम्मतिपत्र पर सबके बलपुर्वक हस्ताक्षर करवाके यह आदेश दिया कि जो वैष्णवत्व का आचरण करेगा उसको कठिन दण्ड दिया जायेगा। 🔹राजा के मंत्रीपरिषद के एक सदस्यने (जो कुरेशाचार्य … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४३

प्रपन्नामृत – अध्याय ४३ कृमिकंठ चोलराज की उत्पत्ति का कारण 🔹जिसप्रकार पुत्र के सुयोग्य होनेपर पिता अपना समस्त कार्यभार पुत्र पर सौंप देता है उसी प्रकार अपनी दोनों विभूतियों का कार्य यतिराज को सौंपकर भगवान निश्चिन्ह होगये। 🔹यतिराज और उनके आदेष से ७४ पीठाधीश्वर ने अहर्निश श्रीवैष्णवता का प्रचार करनेमें जीवन लगादिया। 🔹सारा भारत श्रीवैष्णवमय … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४२

  प्रपन्नामृत – अध्याय ४२ आचार्य कृपा ही मोक्ष का उपाय है 🔹श्री महापुर्णाचार्य स्वामीजीने आचार्य आज्ञा से मानेरनम्बि नामक क्षुद्र कुलोत्पन्न महात्मा का ब्रह्ममेध विधी से दाह संस्कार किया। 🔹समस्त रुढिवादी ब्राह्मणोंने धर्म विरुद्ध कार्य बताकर उनकी निन्दा की और उनको पतित मानने लगे। 🔹श्रीमहापूर्णाचार्य की पुत्री अतुलायी ने सभी लोगोंके सामने कहा, “मेरे … Read more

प्रपन्नामृत – अध्याय ४१

प्रपन्नामृत – अध्याय ४१ धनुर्धरदास का उत्कर्ष 🔹रंगनाथ भगवान के ब्रह्मोत्सव के समाप्ति के दिन भगवान कावेरी स्नान के लिये पधारे तो रामानुजाचार्य भी वहाँ अपने अंतरंग शिष्य धनुर्धरदास के कंधे का सहारा लेकर उपस्थित हुये। 🔹ब्राह्मण शिष्योंने ईर्ष्या द्वेश उच्चकुलाभिमान के वशीभूत होकर यतिराज से इसका कारण पूछा। 🔹यतिराजनें स्पष्ट किया “विद्या, धन, कुल … Read more