श्रीवचनभूषण – सूत्रं १५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम: पूरि शृंखला पूर्व अवतारिका इस प्रकार,  श्रीपिळ्ळै लोकाचार्य स्वामीजी ने दयापूर्वक पुरुषकार (पिराट्टि) और उपाय (भगवान्) दोनों की विशिष्ट/व्यक्तिगत महानता को समझाया। इसके अलावा, वह दयापूर्वक उनकी सामान्य महानता की व्याख्या करते हैं। सूत्रं १५ पुरुषकारत्तुक्कुम् उपायत्तुक्कुम् वैभवमावदु दोषत्तैयुम् गुणहानियैयुम् पार्त्तु उपेक्षियाद अळवन्ऱिक्के … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – १३

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद निष्कर्ष श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पिछले लेख में हमने देखा कि श्री वरवरमुनि स्वामीजी एक आदर्श आचार्य थे जिनमे वे सभी गुण भरपूर थे जो एक श्रेष्ठ श्रीवैष्णव में होना चाहिए । अब हम उनके गौरवशालि के बारे … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – १२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद ऒरोरुवर (सबसे आदर्श आचार्य) अपने पिछले लेख में हमने एक श्रीवैष्णव की दिनचर्या को देखा। एऱुम्बि अप्पा (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के अष्टदिग्गजों में से एक हैं) अपने शिष्यों को समझाते हैं कि कैसे एक श्रीवैष्णव को अपना … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ११

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद श्रीवैष्णव दिनचर्या (भाग–२) श्रीपिळ्ळैलोकाचार्यजी – कालक्षेप गोश्टि पिछले लेख में हमने सामान्य निर्देश देखे कि कैसे एक श्रीवैष्णव इस संसार में रहकर अपना जीवन काल बिताये। अब हम श्रीपिळ्ळैलोकाचार्यजी के श्रीवचन भूषण, जो एक दिव्य शास्त्र … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – १०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद श्रीवैष्णव दिनचर्या (भाग–१) अब तक हमने एक श्रीवैष्णव के बाह्य स्वरूप और आंतरिक स्वरूप के बारें में देखा है। यह भी देखा है कि हमें कौन से अपचारों से बचना चाहिए। अंत में हमने यह … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद श्रीवैष्णवों की श्रेष्ठता को समझना – (भाग–२) पिछले लेख में हमने श्रीपिळ्ळैलोकाचार्यजी के काम (जो कि आचार्य और पूर्वाचार्य के काम पर आधारित है) से यह देखा कि, किसी के जन्म के आधार पर एक श्रीवैष्णव … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ८

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद श्रीवैष्णवों की श्रेष्ठता को समझना – (भाग–१) पिछले लेख में हमने कई विशय के अपचारों के बारें में चर्चा की थी| हर एक श्री वैष्णव को इन अपचारों से बचने में ध्यान देना चाहिए। उन सभी … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ७

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद अपचारों से बचना अपने पिछले लेख में हमने यह देखा कि श्रीवैष्णवों को अपने आंतरिक स्वरूप को कैसे विस्तार करना चाहिए। हमने यह भी देखा कि हमें इन महत्वपूर्ण गुणों से भरपूर श्रीवैष्णवों के सत्संग … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद उन श्रीवैष्णवों की स्तुति करना जिनके पास श्रीवैष्णव गुण/ ज्ञान/अनुष्ठान है पिछले लेख में हम श्रीवैष्णव अधिकारियों के गुणों के बारे में देखा था | अब हम फिर से नीचे दिए गए इस तर्क को देखेंगे: … Read more

श्री वैष्णव लक्षण – ५

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवर मुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नमः श्री वैष्णव लक्षण << पूर्व अनुच्छेद श्रीवैष्णवों के आंतरिक गुण अब तक हमने श्रीवैष्णवों के बाह्य स्वरूप, पञ्च संस्कार के बारे में जाना है जिससे एक श्रीवैष्णव के जीवन का प्रारंभ होता है और आचार्य–शिष्य के रिश्तो के बारे में जाना … Read more