श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
वरदराज भगवान् आविर्भाव कि कहानी
सर्वव्यापी भगवान् से चौदह लोकों के अधिपति के रूप में ब्रह्मा नियुक्त होने पर भी, देवताओं के गुरु का श्राप के परिणाम वशात उन्हें धरती पर भटकना पड़ा I
अपनी पदवी से हटाने से कौन दुःखी और परेशान नहीं होगा, और वोह भी ब्रह्मा का यह अमूल्य पदवी?
हज़ार करोड़ों युगों भगवान का अराधना और उपासना के बाद ब्रह्मा यह पदवी आर्जित करते है I ब्रह्मा का यह आसन एक महान निधि है जो कठिन श्रम और कष्ट के बाद प्राप्त हुआ है I
ब्रह्मा मनन करते….” पदवी को कायम रखने के लिये हज़ार अश्वमेध यग्न पूर्ण करना होगा! ठीक है! यह आवश्यक है कि हज़ार पवित्र अग्नि का निर्माण करना होगा I पदवी संरक्षण की यह परीक्षा को छोड़कर क्योंना भगवान् के दर्शन के लिए प्रयास करूँ?”
भारत देश पहुँच कर वे यग्न के लिए उचित स्थान का अन्वेषण कर रहे थे I यग्न का कार्य – यह विचार उन्हें एक अनभिज्ञ पहेलु कि तरह विचलित कर रही थि I
इस से पूर्व ब्रह्मा को असफलता और निराशा प्राप्त हुआ जब वे स्वयं के प्रयास और बल से भगवान का अनुभव करने कि प्रयत्न करते है I वे ऊँचे चन्द्र माँ को पकड ने के प्रयत्न में विफल एक निराश शिशु की तरह शोक में डुब गए I
तब उन्हें स्पष्ट होके ज्ञान प्रकाशित होता है – ” भगवान को अपने प्रयासों से प्राप्त करना एक अवास्तविक कार्य है I हम उन्ही कि सहायता और अनुग्राह से उनको प्राप्त कर सकते हैं “I
उन पर विश्वाश हि एक मात्र राह है I रास्ता और मार्ग दर्शन वे खुद करेंगे I ब्रह्मा दृढ़ निश्चयी हुए I इस अहसास के साथ, पद्मासन (कमल आसन भगवान ब्रह्मा) इस कठिन स्थिति में सही निर्णय लेते हैं I
तभी, उनको एक दिव्य वाणी सुनाई देती है ” कैसे हो ब्रह्मा?” इस वाणी को पहचान ने में ब्रह्मा को अधिक समय नहीं लगा (अशरीरी) I
यह सभी का सर्वोच्च प्रमुख (नारायण) है जिनके दर्शन के लिए ब्रह्मा ने इंतजार और वांछित किया I
मेरे भगवान्! अगर मै कुशल हूँ तो मुझसे क्यों पूछ रहे हो? आप मेरे बारे में इतना जानते हो जितना मै अपने बारे में खुद नहीं जानता I वेद घोषित करते हैं कि “यस सर्वज्ञ सर्व विथ…” कि आप सब जानते है I
“माता पिता भ्राता निवासस चरणं सुह्रुथ गति नारायणा” – आप हमारे लिए सब कुछ हैं; आप आदरणीय माता, पिता और संबंधी हैं I आप सम्पत्ति हो I
परंतु हम विस्मरणशील होकर अपने आप को महान सोच के अपने आत्म छवि (मै, मेरा) से पीड़ित हैं I
मैं आपके द्वारा सौंपा गया सृष्टि का काम करता हूं I परंतु, वास्तविकता को भूलके कि, आप मेरे अंदर निवास होके यह कार्य को सम्पूर्ण करते हैं (अन्तर्यामी होकर), मै अहंकारी हो गया और निष्कर्ष निकाला कि मुझसे बड़ा शक्तिशाली कोई नहीं I
आपके दिव्य कृपा से हि, मै साधारण होके भी ब्रह्मा पदवी का अधिष्टान किया I परंतु मैं कभी आपके प्रति कृतज्ञ नहीं थाI
शास्त्र के धार्मिक वचन कहता है कि किसी को भगवान से मांगना नहीं चाहिए I उन्होंने जो हमें प्रदान किया, कृतज्ञता प्रकट करने हमें उनके पास जाना चाहिए I उसके विपरीत हम आपकी भक्ति केवल विनती करने और आग्रह करने के लिए करते है I
हमने कभी भी उस दुःख और पीड़ा के बारे में चिंतित नहीं हुए जो हमारी अज्ञानता के कारण आपके दिल में हुई।
आज मुझे उपयुक्त प्रतिफल प्राप्त हुई है, यह दण्ड I पत्नी बिछड़ गयी I ब्रुस्पाथी ने शाप दिया और अपना पद खों दिया I यह अनिवार्य है कि मुझे 1000 अश्वमेध यग्न संपन्न करना होगा I मैं यग्न करने के लिए इस विवशता में फंस गया हूँ I
यग्न करने के लिए, एक के मन और विचारों को शुद्ध होना चाहिए I शुद्धता तपस्या से प्राप्त होता है, जो परिणाम स्वरूप बुद्धि और शरीर को नियंत्रित करके (कर्मेन्द्रिय और अन्य अंग)I तथापि, हातों को जोड़ कर एक पैर पर खड़े होने से, साँस को नियंत्रित करने से मेरी बुद्धि को आपके दर्शन योग्य नहीं बना सकता जो मेरे मन में विराजे हुए है (अंतर्यामी होके) I
मै पूरी तरह से परास्त हो चूका हूँ I मैं प्यासा हिरण की तरह हूं जो जल कि खोज में मृगतृष्णा की तरफ दौड़ रहा हो – इस तरह ब्रह्मा ने शोक किया I
एक अशरीरि से हास्य की ध्वनी I आपके कल्याण के बारे में एक बार पूछ ताछ से हि आपका सम्पूर्ण वृत्तान्त बाहर आगया I आपने सामान्य पुरुषों की तरह प्रदर्शन किया है जो इसी तरह समरूप परिस्थितियों में व्यव्हार करते है I भयभीत न होना I मैं आपके दुःख को अल्प करने का अभिप्राय रखता हूं I मैं समझता हूं कि आप अपने बुद्धि को नियंत्रित करने और अपने विचारों को अभिसरण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, परंतु असफलता से Iलंबे समय तक आप केवल अपनी स्थिति का आनंद ले रहे हैंI अब आपके दुःख इस के कारण और कर्म के वजह से हैं (जो यह भोगना निर्धारित है) I
ब्रुस्पाथी ने उचित रूप से आदेश दिया है कि आपको 1000 अश्वमेध यग्न निष्पादित करना होगा I केवल तभी आप मन की शांति प्राप्त करेंगे I
हैरान और अचंभे होगये वाणीसान ( वाणी के पति – ब्रह्मा) I
यह एक चमत्कार है कि उनका दिल टुकड़ों में नहीं बिखरा।
शीघ्र ही स्वर्ग से वह द्वानी ब्रह्मा के भय को कम करने के लिए उत्साहजनक शब्दों का वर्षा करना प्रारम्भ किया I
” चतुर्मुख! आपकी पीड़ा समझने योग्य है I एक अश्वमेध यग्न का निर्वाहन करना हि बहुत कठिन है I अगर १००० हो तो, उस कष्ट का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है I और विलंब के कारण भी, आप और पीड़ा से गुजरेंगे।
चिंतित न होना! ध्यान से मेरी बात सुनो I मैं आपको एक सरल मार्ग दिखाता हूँ I एक ऐसा स्तान है जहाँ आपको एक यग्न करके १००० नहीं बल्कि एक करोड़ याग्नो का फल प्रदान कर सकता है। क्या मैं उस स्तान का नाम बताऊ?
ब्रह्मा हाथ जोड के घुटने के बल बैठ गए I आकाश की ओर देखा I अपने अश्रुवों को पोंच के बोलना आरम्भ किया।
मेरे भगवान! कृपया उस स्तान के बारे में तुरंत उल्लेख करें I आपका यह दास बिना संकोच किये अभि प्रस्थान करेगा ।
एक संक्षिप्त मौन के पश्चात, अशरीरि एक उच्च तरंगों की तीव्रता से अभिव्यक्त किया कि ” सत्य व्रत क्षेत्र जाओ I श्री हस्थिगिरी तुम्हारी शरण और आश्रय होगा I उधर तपस्या करो I
ब्रह्मा ने आनंदपूर्वक दक्षिण की तरफ चलना आरम्भ किया। वे एक बार उच्चारण किया कि ” सत्य व्रत क्षेत्र – श्री हस्थिगिरी” I यह शहद, दूध, शक्कर और अमृत की तरह स्वादिष्ट था I
हम भी अगले प्रकरण कि और प्रस्थान करेंगे, हमारे मुंह से “सत्य व्रत क्षेत्र – श्री हस्थिगिरी” का जाप करते हुए I
अडियेन श्रीदेवी रामानुज दासी
Source – https://granthams.koyil.org/2018/05/14/story-of-varadhas-emergence-5-english/
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