यतीन्द्र प्रवण प्रभावम – भाग १९

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम

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तत्पश्चात श्रीकूर कुलोत्तम दास नायन को यह अहसास हो गया कि वें अपने अन्तिम दिनों में हैं इसलिये श्रीशैलेश स्वामीजी को बुलाकर कहा “आपको जो भी सम्प्रदाय के अन्य ग्रन्थ के गूढ़ार्थ सीखने कि लालसा हो आप श्रीविळाञ्चोलैप्पिळ्ळै स्वामीजी के पास जाकर उनसे सीखे; तिरुक्कण्णङ्गुडि पिळ्ळै के पास जाकर श्रीसहस्रगीति का पाठ सीखे”। यह कहकर अपने आचार्य श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के दिव्य चरण कमलों को स्मरण करते हुए श्रीवैकुण्ठ के लिये प्रस्थान किया। उनका अंतिम संस्कार उनके पुत्र के हाथों सम्पन्न करवाया गया। श्रीकूरकुलोत्तमदास स्वामीजी का पादुर्भाव आद्रा नक्षत्र और आश्विनी मास में हुआ। उनकी तनियन हैं 

लोकाचार्य कृपापात्रं कौण्डिन्य कुल भूषणं ।
समस्तात्म गुणावासं वन्दे कूरकुलोत्तमं ।।

स्वयमाहूय शैलेश गुरवेऽर्थप्रदानत: 
लब्धोदारामिधं कूरकुलोत्तमम् अहमं भजे 

(मैं श्रीकूर कुलोत्तम दास नायनार के प्रति अपना अभिवादन करता हूँ जो श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के कृपापात्र थे, जो कौण्डिन्य वंश के आभूषण हैं और जो दिव्य गुणों की कोष हैं; मैं श्रीकूरकुलोत्तमदास  नायनार कि पूजा करता हूँ जिन्होंने स्वइच्छा से श्रीशैलेश स्वामीजी को बुलाया और रहस्य के गूढ़ार्थ उनके उपर बरसाये और इस कारण से उन्हें उदार कहा जाता है)।  

तत्पश्चात श्रीशैलेश स्वामीजी श्रीतिरुक्कण्णङ्गुडि पिळ्ळै स्वामीजी के पास पहुंचकर साष्टांग दण्डवत प्रणाम कर उनके समक्ष प्रस्तुत कर कहा “आप कृपाकर दास को श्रीसहस्रगीति के अर्थों को प्रदान करें”। श्रीतिरुक्कण्णङ्गुडि पिळ्ळै मान गये और शब्दों के अर्थो के आधार पर श्रीसहस्रगीति के अर्थो को कहना प्रारम्भ किया। क्योंकि श्रीशैलेश स्वामीजी तमिऴ भाषा में माहिर थे उन्होंने श्रीतिरुक्कण्णङ्गुडि पिळ्ळै को विस्तार से अर्थों को बताने कि प्रार्थना किये। क्योंकि श्रीतिरुक्कण्णङ्गुडि पिळ्ळै कि उम्र हो गई थी वें यह नहीं कर पाये और इसलिये श्रीशैलेश स्वामीजी को श्रीतिरुपुट्कुऴि जीयर के पास जाकर उनसे सिखने को कहा। श्रीशैलेश स्वामीजी काञ्चीपुरम पहुँचे और जाना कि आज उन जीयर स्वामीजी के मोक्ष प्राप्ति का १२वां दिन हैं। उन्हें बहुत दु:ख हुआ। श्रीवरदराज भगवान के मंदिर के सभी आचार्य और मंदिर में काम करनेवाले कर्मचारी उन्हें श्रीवरदवल्ली अम्माजी और श्रीवरदराज भगवान के पास पूजा करने के लिये ले गये और उन्हें पवित्र जल, श्रीशठारी (भगवान के दिव्य चरण कमलों का प्रतिनिधित्व करते हुए), दिव्य पुष्पहार, दिव्य तुलसी, आदि अर्पण कर और उन्हें सम्प्रदाय के पथ प्रदर्शक (जो भगवद श्रीरामानुज स्वामीजी के तत्त्वों का प्रचार प्रसार करें) होने कि प्रशंसा किये। 

अगले दिन श्रीनालूर पिळ्ळै और उनके पुत्र श्रीनालूराच्चान पिळ्ळै तिरुनारायणपुरम से लौटे और मन्दिर में श्रीवरदराज भगवान को मंगलाशासन प्रदान किया। उस समय श्रीशैलेश स्वामीजी भी सन्निधी में मंगलाशासन अर्पण कर रहे थे। यह नहीं जानते हुए कि श्रीशैलेश स्वामीजी सन्निधि के अन्दर हैं बाहर लोगों से पूछे कि अन्दर मंगलाशासन कौन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोइल तिरुमलै आऴवार् कर रहे हैं। उन्होंने बड़ी दया से कहा कि “क्या ये कोइल तिरुमलै और पेरुमाळ् कोइल नहीं हैं?” (यह एक रिवाज हैं कि दिव्य मंदिरों को श्रीर​ङ्गम्, तिरुमला और काञ्चीपुरम को कोइल, तिरुमलै और पेरुमाळ् कोइल ऐसे संभोधित किया जाता हैं)। जब मंदिर के अर्चक सभी को श्रीशठारी दे रहे थे तब श्रीनालूर पिळ्ळै  जो पिछे खड़े थे शठारी प्राप्त करने हेतु अर्चक के समीप अपना सर उठाये। जब श्रीशठारी दिया गया तब उन्होंने शठारी को अपने दिव्य हाथों से सहारा दिया। अर्चक शीघ्रता से श्रीशठारी को मंदिर के भीतर लाये, श्रीशैलेश स्वामीजी का हाथ पकड़े उन्हें श्रीनालूर पिळ्ळै  के निकट लाये और उन्हें श्रीनालूर पिळ्ळै  को यह कहकर सौंप दिया कि “हमने यह निश्चय किया कि उन्हें ज्योतिषकुड़ी में मूवायिरम (३००० पाशुरों के लिए व्याख्या यानि श्रीसहस्रगीति को छोड़ अन्य दिव्य प्रबन्ध) सिखाया जाये; श्रीतिरुपुट्कुऴि  जीयर कि कमी को पूर्ण करने हेतु उन्हें लाया गया हैं, आप उन्हें यह भी सीखा दीजिए” यह दर्शाते हुए कि भगवान उनके जरिये कह रहे हैं। श्रीनालूर पिळ्ळै  कहे कि “अड़िएन कृतार्थ हो गया। क्या दास में उन्हें सिखाने कि क्षमता हैं जिसे श्रीतिरुक्कण्णङ्गुडि पिळ्ळै स्वामीजी भी नही कर सके?” भगवान अर्चक के माध्यम से कहे “अगर श्रीनालूराच्चान पिळ्ळै  उन्हें सीखा सके तो यह आपके समान सिखाने का होगा जैसे कहा गया हैं आत्मावै पुत्रनामाचसि (यह आत्मा हैं जो पुत्र रूप में जन्म लेता हैं)”। यह सुनकर श्रीनालूर पिळ्ळै  बहुत प्रसन्न हुए और श्रीशैलेश स्वामीजी से कहा “स्वागत हैं स्वामीजी! अड़िएन वृद्ध हो गया हैं; आप कई क्षेत्र में माहिर हैं; अपने पुत्र कि ओर बताते हुए कहे “केवल श्रीनालूराच्चान पिळ्ळै हीं आपको सिखाने योग्य हैं”। श्रीशैलेश स्वामीजी को उनके पुत्र श्रीनालूराच्चान पिळ्ळै को सौंप कर वे तिरुनारायणपुरम के लिए प्रस्थान हुवे। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/08/03/yathindhra-pravana-prabhavam-19-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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