श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी श्रीकिडाम्बि नायनार से श्रीभाष्यम् पर व्याख्या को श्रवण किया
वहाँ काञ्चीपुरम् में उन्होंने श्रीकिडाम्बि नायनार् जो श्रीकिडाम्बि आच्चान् [वो जिन्हें श्रीगोष्ठीपूर्ण स्वामीजी ने श्रीरामानुज स्वामीजी के लिये प्रसाद बनाने के कैङ्कर्य के लिये नियुक्त किया] के वंशज से हैं उनके दिव्य चरण कमलों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया और उन्हें श्रीभाष्यम् सिखाने का अनुरोध किया। आपके साथ दो अन्य शिष्य अय्यैगळ् अप्पा और सेल्वनायनार् भी श्रीभाष्य पर श्रीकिडाम्बि नायनार् से व्याख्या सुने। वें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के बहुत सहायक थे और श्रीभाष्यम् कालक्षेप को सुना (आंतरिक व्याख्या)। अय्यैगळ् अप्पा नायनार् के भाषण को सुनकर बहुत विस्मित हुए। एक दिन उन्होंने अपने विचार श्रीकिडाम्बि नायनार् से व्यक्त किये “यह प्रगट नहीं हो रहा हैं आप श्रीमान दास को वह अर्थ समझा रहे हैं जो उनके योग्यता के बराबर हो”।
श्रीकिडाम्बि नायनार् ने अय्यैगळ् अप्पा से कहा “आप कल उनकी परिक्षा लेना” और उन्हें कुछ संकेत दिये। अय्यैगळ् अप्पा एक विशेषज्ञ होने के नाते अगले दिन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कि परिक्षा लेने के लिये तैयार थे। अगले दिन श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपने पहिले पाठ के विचार को हजार गुणा अधीक अपने उपन्यास के माध्यम से समझाया। यह सुनकर अय्यैगळ् अप्पा ने कहा “आप श्रीमान ने सभी स्पष्टीकरण वही दिये हैं जो श्रीकिडाम्बि नायनार ने हमें कहा हैं और इससे भी अधीक श्रीमान ने हमें विशेष अर्थों को भी बताया हैं”। वें उन्मत्त थे। यह सुनकर श्रीकिडाम्बि नायनार् कृपाकर वहाँ पधारे। उनके शिष्यगोष्टी में कुछ विद्वान भी थे जिन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के साथ वाद करने कि इच्छा को प्रगट किये। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने अय्यैगळ् अप्पा से विनम्रतापूर्वक कहा “उनके आचार्य द्वारा अन्य तत्त्वों के विद्वानों से बहस करने पर प्रतिबन्ध हैं” आऴ्वार्तिरुनगरि में अपने आचार्य श्रीशैलेश स्वामीजी के शब्दों को स्मरण किया। अय्यैगळ अप्पा ने कहा “परन्तु क्या यह श्रीवैष्णव जन नहीं हैं! इनके साथ बहस करने से किसीके स्वरूप को कोई संकट नहीं हैं। कृपया इनकी इच्छा को पूर्ण करें”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उनके तर्क, अर्थ और तत्त्वज्ञान पर कालक्षेप दिया। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को सुनकर उन्होंने उनकी प्रशंसा किये और उनके दिव्य चरण कमलों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम किया। उन्होंने तत्पश्चात श्रीकिडाम्बि नायनार् से कहा “हमनें यह सोचा कि यह अन्य शिष्यों कि तरह सामान्य शिष्य हैं। सभी शास्त्र उनमें निवास करते हैं”। श्रीकिडाम्बि नायनार् ने उनसे कहा “वें अवतार पुरुष हैं ऐसे सोचे”। उनके माध्यम से भविष्य में दिव्य प्रबन्धों का प्रचार प्रसार करने का इरादा रखते हुए श्रीकिडाम्बि नायनार् ने उन्हें श्रीभाष्य अधीक आग्रह से सीखाना प्रारम्भ किया। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ईडु व्याख्या को कई बार स्मरण किया। यह सुनकर श्रीकिडाम्बि नायनार् श्रीवरवरमुनि स्वामीजी से एक दिन जब वें एकान्त में थे भेंट कर उन्हें कहा “यह किसी के लिये नहीं पर आप श्रीमान को यह दिव्य नाम मुप्पत्ताऱायिरप्पेरुक्कर् दिया गया हैं। हमने ऐसी बुद्धिमानी ओर कहीं नहीं देखा। हमारे मन में एक इच्छा हैं। आप श्रीमान उसे निश्चित हीं पूर्ण करेंगे”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी यह विचार कर उनसे पूछा कि उन्हें क्या करना हैं कि बजाय उनकी क्या इच्छा हैं कहे। श्रीकिडाम्बि नायनार् ने उनसे कहा “हमने यह सुना हैं कि आप श्रीमान एक महत्त्वपूर्ण अवतार हैं। कृपया यह हमसे न छिपाये। कृपया वह बताये”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उनसे कहा “आप श्रीमान दास के आचार्य होने के कारण दास यह छिपा नहीं सकता। कृपया यह सुनिश्चित करें कि भगवान श्रीरङ्गनाथ कि आज्ञा को किसी ओर को न बतायें”। उन्होंने तत्पश्चात पास में रखे दीपक कि रोशनी को बढ़ाया और श्रीकिडाम्बि नायनार् को सावधान किया कि वें न घबराये और अपने यथार्थ आदिशेष के दिव्य रूप में प्रगट हुए। श्रीकिडाम्बि नायनार् बहुत घबरा गये और उनसे प्रार्थना करें कि “कृपया अपने इस रूप को छुपा ले”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी अपने सामान्य रूप में आ गये। तत्पश्चात इसे भगवान का रहस्य मानकर श्रीकिडाम्बि नायनार् श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पर विशेष प्रेम बरसाये और प्रसाद उनके दिव्य रूप अनुसार अर्पण किया। जब तक श्रीभाष्य कालक्षेप पूर्ण नहीं हुआ श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के तिरुमाळिगै में गाय का दूध श्रीकिडाम्बि नायनार् हीं भेजते थे। कुछ हीं दिनों में श्रीभाष्य सम्पन्न हुआ। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी दोनों संस्कृत और द्राविड में प्रवीण हो गये। कुछ दिनों तक काञ्चीपुरम् में निवास कर श्रीवरदराज भगवान कि स्तुति किये जैसे श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी पेरियाऴ्वार तिरुमोऴि में कहे हैं “वेदान्त विऴुप्पोरुळिन् मेलिरुन्द विळक्कै विट्टुचित्तन् विरित्तनन्” (श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी यह कहे कि चमकते भगवान हीं उपनिषद के आंतरिक अर्थ हैं)। विशेष जनों से यह सुना गया हैं कि उन्होंने कृपाकर यथोक्तकारी भगवान कि सन्निधी में एक वर्ष तक श्रीभाष्य और भगवद विषयम पर कालक्षेप किया। इसी कारण से मंदिर में अर्चा रूप में उन्हें उपदेश मुद्रा में देखा जाता हैं। जब वें काञ्चीपुरम् में निवास कर रहे थे तब उन्होंने ताड़ के पतों कि तलाश किये जिन पर भगवद विषयम् पर लिखा गया हैं और श्रीरङ्गम् कि ओर प्रस्थान किये। जैसे कि इस श्लोक में कहा गया हैं
ततः प्रतिनिवृत्तं तं पुरुषो भुजगेशयः।
प्रत्युद्गम्य प्रभु: स्वैरं पुनः प्रावेशयत्पुरम्॥
(तत्पश्चात श्रीरङ्गनाथ भगवान जो शेषशैय्या पर शयन किये हुए थे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को लाने के लिये श्रीरङ्गम् के बाहर आये और उनकी इच्छानुसार उन्हें पुन: श्रीरङ्गम् में प्रवेश कराया) भगवान द्वारा स्वागत होने के कारण श्रीवरवरमुनि स्वामीजी पुन: श्रीरङ्गम् में प्रवेश किया और भगवान कि पूजा किये जो उन्हें श्रीतीर्थ और प्रसाद प्रदान करने से बहुत खुश हुए। जैसे भगवान उन्हें बाद में कहे
नित्यं रङ्गे निवासाय प्रार्थित: फणिशायिना।
पश्यन्पदाम्बुजन्तस्य पालयामास शासनम्॥
(श्रीरङ्गनाथ भगवान कि आज्ञा से “अब यहाँ श्रीरङ्गम् में हीं निवास करने लगे”, श्रीवरवरमुनि स्वामीजी इस आज्ञा का पालन किये) श्रीवरवरमुनि स्वामीजी भी श्रीरङ्गनाथ भगवान कि आज्ञा माने “यहाँ नित्य वास करिये”। सभी विशेष जन उन्हें यह आज्ञा किए कि “आप श्रीमान को यहीं नित्य वास करना हैं” जिसे उन्होंने स्वीकार किया। पूर्व दिनचर्या के १९वें श्लोक अनुसार
श्रीमद्रङ्गं जयतु परमं धाम तेजोनिधानम्
भूमा तस्मिन् भवतु कुशली कोपि भूमासहायः।
दिव्यं तस्मै दिशतु विभवं देशिको देशिकानाम्
काले काले वरवरमुनिः कल्पयन् मङ्गळानि॥
(तेजोमय सर्वश्रेष्ठ श्रीरङ्गधाम विजयी हो। श्रीदेवी एवं भूदेवी सहित श्रीरङ्गनाथ भगवान भी दिनों दिन कुशली हो। आचार्यों में सर्व प्रथम श्रीवरवरमुनि स्वामीजी भगवान का मङ्गळाशासन् कर उनका वैभव बढ़ाये), उचित समय पर वें भगवान का मङ्गळाशासन् करते रहे जिसके परिणाम स्वरूप जैसे कि इस पध्य में कहा गया हैं “अरङ्गर् तम् सीर् तऴैप्प” (श्रीरङ्गनाथ भगवान के दिव्य गुणों का पोषण किया गया) भगवान का दिव्य धन प्रचुर हो गया जिसे हर स्थान पर भरा गया।
आदार – https://granthams.koyil.org/2021/08/22/yathindhra-pravana-prabhavam-38-english/
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org
1 thought on “यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ३८”