आल्वार तिरुनगरी वैभव – श्री शठकोप स्वामीजी का इतिहास और महानता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:

आल्वार तिरुनगरी वैभव

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श्रीशठकोप स्वामीजी के अवतार के बाद तिरुक्कुरुगूर जिसे आदिक्षेत्र भी कहा जाता है और बाद मे आल्वार तिरुनगरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अभी हम श्रीशठकोप स्वामीजी के इतिहास और महानता के विषय मे आनंद लेंगे।  

भगवान आत्माओं को जो इस संसार में हैं, वे वैकुंठ (भगवान का निवास स्थान जहां से आत्मा इस संसार मे पुनः लोटकर कभी नहीं आती) प्राप्त करें यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत कार्य करते हैं। ये दुनिया जब जल प्रवाह में नष्ट हो गई थी तब उसे फिर से बनाना, आत्माओं को शरीर और इंद्रियाँ प्रदान करना, उन्हे शास्त्र देना, ऋषियों द्वारा उनके अर्थों को समझाना, आत्माएं जो इस संसार से बंधी हुई हैं उनका उद्धार करने के लिये और उन्हे शास्त्रों के विषय मे समझाने के लिये विभिन्न अवतार लेना ऐसे बहुत सारे कार्यों को भगवान नियोजित तरीके से करते है। उन लोगो को सुधारने के लिये जो इन सब के बाद भी नहीं सुधरे है, जैसे एक शिकारी हिरण को फसाने के लिये दूसरे हिरण का प्रयोग करता है वैसे ही भगवान ने उन्हे सुधारने के लिये जो आत्मा पृथ्वी पर मौजूद है उनका प्रयोग करने का निश्चय किया। इन सब को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कुछ आत्माओं को चुना उनकी अज्ञानता को मिटाया और उन पर स्पष्ट ज्ञान बरसाया जो अज्ञानता के लेशमात्र से भी भ्रमित नहीं हैं। अत: आलवारों (कुछ चुनिन्दा आत्माये जिनका यहा उल्लेख किया गया) को बिना किसी अज्ञानता के भक्ति और ज्ञान प्रदान किया। भगवान ने आलवारों को दिव्य प्रबन्ध रचने के लिये बनाया और उनके जरिये इस संसार के स      भी आत्माओ मे ज्ञान को उत्पन करना चाहते थे, जिससे वे मोक्ष (श्री वैकुंठ) प्राप्त करने मे सक्षम बन सके।   सभी आलवारों मे श्रीशठकोप स्वामीजी प्रमुख माने जाते है।

श्रीशठकोप स्वामीजी को कई नामों से बुलाया जाता हैं जैसे मारन, शठगोपन, परान्कुश, वकूलाभरण, वकुलाभिरामन, मघिल्मारान, शटज़ित, कुरुगूर नम्बी।  

कलियुग के प्रारम्भ से कुछ दिनों में वें कारि और उदयनन्गै के पुत्र रूप में आलवार तिरुनगरी के समीप अप्पन कोइल में वृषभ मास के विशाखा नक्षत्र के दिन अवतार लिये। कारि और उदयनन्गै के दोनों पारिवारिक पीढ़ियों से तिरुमाल के अनुयायी की भक्ति में लीन थे। कारि और उदयनन्गै तिरुक्कुरुंगुड़ी गये और तिरुक्कुरुंगुड़ी नम्भी की पूजा की और एक बच्चे के प्राप्ति के लिये वर माँगे। भगवान ने कहा वे स्वयं उनके पुत्र रूप में अवतार लेंगे। हमने यह गुरूपरंपरा ग्रन्थ में पढ़ा हैं।

जब एक बच्चा इस संसार मे जन्म लेता है तब शट नाम की वायु जो अज्ञानता उत्पन्न करती है वह बच्चे को घेर लेती है। जो बच्चे की बुद्धि को गड़बड़ा देती है। ऐसी शट वायु ने श्रीशठकोप स्वामीजी को भी घेरने की कोशिश की थी परंतु वह उसे दूर करने मे सक्षम थे। इसलिए उन्हे शठकोप (जो शट पे गुस्सा थे) भी कहा जाता है। जन्म लेने वाले बच्चों के विपरीत श्री शठकोप स्वामीजी रोये नहीं और दूध भी नहीं पिया।  उनके माता पिता ने उन्हे तिरुकुरुगूर आदिनाथ भगवान के मंदिर मे भेट कर दिया और उनको एक इमली के पेड़ के नीचे छोड़ दिया जिसे तिरुप्पुली आल्वार कहा जाता है, यह निश्चय कर लिया की वह सिर्फ भगवान के लिए ही रहे।  वे वहां पर एक तेजस्वी (चमक के साथ) रूप मे, १६ साल तक शयन बिना या बिना कुछ पाये, भगवान का मनन करते हुवे पद्मासन (एक बैठने की मुद्रा) में रहे।  

उस वक्त एक महान ब्राम्हण श्रीमधुरकवी आल्वार, जो श्री शठकोप स्वामीजी के अवतार के  बहुत पहले तिरुकोलूर में अवतार ले चुके थे जो की आल्वार तिरुनगरी के नज़दीक है, वह भारत की उत्तरी भाग मे तीर्थयात्रा पर गये थे। अलौकिक कृपा के कारण उनको दक्षिणी आसमान में चमक दिखाई पड़ी, उन्होने उसका पीछा किया और श्रीशठकोप स्वामीजी के निकट पहुंचे जो तिरुप्पुली आल्वार के नीचे  दीप्तिमान होकर बैठे थे।

जैसे ही श्री शठकोप स्वामीजी ने नीचे दिये चार प्रबंधों को सुनाया श्रीमधुरकवि स्वामीजी ने उन्हे अपने हाथों से ताड़ के पत्तों पर लिखा

  • तिरुविरुत्तम (ऋग वेद का सार)
  • तिरुवाशिरियम (यजुर वेद का सार)
  • पेरिय तिरुवन्दादि (अथर्व वेद का सार)
  • श्रीसहस्रगीति (साम वेद का सार)

श्रीशठकोप स्वामीजी के ये चार प्रबन्ध चारों वेदों के समान है। इसी कारण से उन्हे वेदम तमिल सेय्द मारन  (मारन जिन्होने वेदों की तमिल भाषा ने रचना की) अर्थात एक वह जो कृपा से संस्कृत वेदों का अर्थ तमिल भाषा मे लेकर आये। दूसरे आलवारों के प्रबन्ध वेदों के सिर्फ सहायक है। अन्य आलवारों के प्रबंध भी वेदों के सहायक ही हैं। श्रीसहस्रगीति सभी दिव्य प्रबंधों और हमारे पूर्वाचर्यों के रहस्य ग्रन्थों का सार हैं। भगवान के अनुग्रह से उस श्रीसूक्ति (श्रीसहस्रगीति) पर ५ व्याख्यान उपलब्ध हैं।

आल्वार (यह पद सिर्फ श्रीशठकोप स्वामीजी को ही संदर्भित करता है जब किसी विशेष आल्वार के नाम के साथ न हो) इस पृथ्वी पर ३२ साल तक रहे, संसार से कोई लगाव न रखते हुए भगवान का निरंतर ध्यान करते रहे। इमली के वृक्ष के नीचे अपने स्थान पर वैसे ही रहते हुए आल्वार ने विभिन्न दिव्य देशों के विविध भगवान का प्रबन्ध के जरिये मंगलाशासन (भगवान की स्तुति) की, और उस संबन्धित दिव्य देश के भगवान श्री शठकोप स्वामीजी के पास आये और प्रबंधों को स्वीकार किया। इसके अलावा अपनी दिव्य दया के माध्यम से आल्वार ने दयापूर्वक सभी शास्त्रों के महान अर्थों को स्पष्ट और विस्तृत रूप से सामने लाए। तभी से वह इतनी महानता के साथ हैं कि जब भी हम कुरुगूर का नाम सुनते है या फलश्रुति पाशुर (श्रीसहस्रगीति के हर दशक का आखरि पाशुर जो पाशुरों को पाठ करने के लाभ को बताता है) में कुरगुर नाम का उच्चारण करते है हमारे पूर्वचार्यों के व्याख्यान मे वे हमे आल्वार तिरुनगरी की दक्षिण दिशा में अंजली (नमस्कार के रूप में अपने हथेलियों को आपस में मिलाना) करनी चाहिये यही मार्गदर्शन करते हैं।   

अपने अवतार के ३२ वर्षों तक रहने के बाद आल्वार ने परमपद धाम जाने की इच्छा जताई। यह जानकार मधुरकवि स्वामीजी दुखी हो गये कि उनके आचार्य यह संसार छोड़कर जा रहे है। जबकि वे निरंतर श्रीशठकोप स्वामीजी की पूजा करते थे, फिर भी उन्होने आल्वार से प्रार्थना की कि वे अपना एक श्री विग्रह बनाये और उनको दे दें। श्रीशठकोप स्वामीजी ने श्रीमधुरकवी स्वामीजी को कहा कि अगर वह ताम्रपर्णी नदी के पानी को उबालेंगे तभी बाद मे विग्रह मिलेगा। श्रीमधुरकवी स्वामीजी ने उसका अनुसरण किया और विग्रह प्राप्त किया। उस विग्रह के हाथों को अंजली मुद्रा में देखकर श्रीमधुरकवी आल्वार ने श्रीशठकोप स्वामीजी से कहा “दास उपदेश मुद्रा (निर्देशन देने की मुद्रा मे हाथ) के साथ श्रीमान की पूजा करना चाहते थे क्योकि श्रीमान दास के आचार्य है। इस अंजली मुद्रा का कारण क्या है?” श्रीशठकोप स्वामीजी ने उत्तर देते हुए कहा “ये भविष्यदाचार्य (जो भविष्य में अध्यात्मिक गुरु बनने जा रहे है।) है जो चार हज़ार साल के बाद अवतार लेकर एक महान व्यक्ति बनेंगे।” जो रामानुज स्वामीजी के अवतार की तरफ इशारा करते हैं। यह वही विग्रह है जिसे हम भविष्यदाचार्य के रूप में पूजेंगे / रामानुज चतुर्वेदीमंगलम (श्री रामानुज स्वामीजी / उडयावर की सन्निधि के आस पास की चार सड़कों) में श्री रामानुज स्वामीजी का दिव्य रूप जो आलवार तिरुनगरी में पश्चिमी भाग मे स्थित है। बाद में श्रीशठकोप स्वामीजी ने श्रीमधुरकवी स्वामीजी को ताम्रपर्णी नदी के पानी को फिर से उबालने का निर्देश दिया। श्रीमधुरकवी स्वामीजी ने इस निर्देश का पालन किया और श्रीशठकोप स्वामीजी का सुंदर दिव्य विग्रह प्राप्त हुआ। इस विग्रह को श्रीमधुरकवी स्वामीजी ने आनंदपूर्वक स्वीकार किया, यह वही विग्रह है जिसकी हम आल्वार तिरुनगरी मे प्रतिदिन पूजा करते हैं। 

इसके बाद भगवान खुद आये और श्रीशठकोप स्वामीजी को परमपद धाम लेकर गये। तत्पश्चात श्रीमधुरकवी आल्वार ने श्रीशठकोप स्वामीजी का विग्रह आदिनाथ भगवान के मंदिर मे स्थापित किया, सामने बड़ा दिव्य कमरा, परिसर की दीवार और मीनार बनवाया। प्रतिदिन वें भिन्न भिन्न फूलों की माला बनाते, श्रीशठकोप स्वामीजी के विग्रह को माला धारण कराते और हर्षित होते। वे श्रीशठकोप स्वामीजी के रचित पाशुरों को कुछ इस तरह गाते की वे बहुत दूर तक यानि पूर्ण संसार मे फैल गये। उन्होने श्रीशठकोप स्वामीजी पर परमानंद भक्ति के साथ कन्निनून शिरिताम्बू (पशुरों का शीर्षक) से शुरू होने वाले ११ पशुरो की रचना की। अभी तक श्रीमधुरकवी आल्वार के वंशज आल्वार तिरुनगरी में अण्णावियार इस दिव्य नाम के साथ निरंतर कैकर्य (दिव्य सेवा) कर रहे हैं।

हम यहाँ पर काफी हद तक श्रीशठकोप स्वामीजी की महानता का आनंद लेने में सक्षम हो गये है।

श्रीशठकोप स्वामीजि कि तनियन

माता पीता युवतय स्थनया विभुथिः
सर्वं य देव नियमेंन
मद्न्वयानाम
आध्यस्य न कुल पथे: वकुलाभिरामं
श्रीमद तदंग्री युगलं प्रणमामि मुर्धना

श्रीशठकोप स्वामीजी कि वालितिरुनाम (उनके दिव्य नामों कि प्रशंसा)

तिरुक्कुरुगैप् पेरुमाळ् तन् तिरुत्ताळ्गळ् वाऴिये
तिरुवान तिरुमुगत्तुच् चेव्वि एन्ऱुम् वाऴिये
इरुक्कुमोऴि एन्‌ नेञ्जिल् तेक्किनान् वाऴिये
एन्दै एदिरासर्क्कु इऱैवनार् वाऴिये
करुक्कुऴियिल् पुगावण्णम् कात्तु अरुळ्वोन् वाऴिये
कासिनियिल् आरियनाय्क् काट्टिनान् वाऴिये
वरुत्तुम् अऱ वन्दु एन्नै वाऴ्वित्तान् वाऴिये
मधुरकवि तम्बिरान् वाऴि वाऴि वाऴिये

आन तिरुविरुत्तम् नूऱुम् अरुळिनान् वाऴिये
आसिरियम् एऴु पाट्टु अळित्त पिरान् वाऴिये
ईनम् अऱ अन्दादि एण्बत्तु एऴु ईन्दान् वाऴिये
इलगु तिरुवाय्मोऴि आयिरत्तु नूटृ इरण्डु उरैत्तान् वाऴिये
वान् अणियुम् मामाडक्कुरुगै मन्नन् वाऴिये
वैगासि विसागत्तिल् वन्दु उदित्तान् वाऴिये
सेनैयर् कोन् अवदारम् सेय्द वळ्ळल् वाऴिये
तिरुक्कुरुगैच् चटकोपन् तिरुवडिगळ् वाऴिये

मेदिनियिल् वैगासि विसागत्तोन् वाऴिये
वेदत्तैच् चेन्दमिऴाल् विरित्तु उरैत्तान् वाऴिये
आदि गुरुवाय् अम्बुवियिल् अवदरित्तोन् वाऴिये
अनवरदम् सेनैयर् कोन् अडि तोऴुवोन् वाऴिये
नादनुक्कु नालायिरम् उरैत्तान् वाऴिये
नन् मधुरकवि वणङ्गुम् नावीऱन् वाऴिये
माधवन् पोऱ्पादुगैयाय् वळर्न्दरुळ्वोन् वाऴिये
मगिऴ् माऱन् सडगोपन् वैयगत्तिल् वाऴिये

आदार – https://granthams.koyil.org/2022/12/03/azhwarthirunagari-vaibhavam-2-english/

अडियेन् शिल्पा रामानुज दासि

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