श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः
कन्दाडै अण्णन् तिरुमला के लिये प्रस्थान करते हैं
श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी पर कृपाकर अनुग्रह किये और उनसे पूछे “क्या आप श्रीमान को श्रीवेङ्कटेश भगवान का मङ्गळाशासन् नहीं करना चाहिये?” अप्पिळ्ळै जो निकट में थे ने उत्तर दिया “क्या कन्दाडै अण्णन् के रूप में उनकी प्रशंसा नहीं की जाती जो कावेरी नदी को पार नहीं करते हैं?” [क्योंकि वें श्रीरङ्गनाथ भगवान से गहराई से जुड़े हुए थे] जिसके लिये श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उत्तर दिया “क्या तिरुमला वह स्थान नहीं हैं जहां नित्यसूरी श्रीवेङ्कटेश भगवान का तिरुवाराधन करने हेतु एकत्रीत होते हैं?” [यहाँ श्रीयोगीवाहन स्वामीजी के अमलनादिपिरान् नामक प्रबन्ध के तीसरे पाशुर के संदर्भ को लिया गया हैं जिसमे वें कहते हैं मन्दिपाय् वडवेङ्गडमामलै वानवर्गळ् सन्दि सेय्य निन्ऱान् अरङ्गत्तरविन् अणैयान् – महान तिरुमला पहाड़ियों पर जहाँ बन्दर कूद रहे हैं श्रीरङ्गनाथ भगवान नित्यसूरियों द्वारा पूजा किये जाने के लिये खड़े हैं]। अण्णन् फिर श्रीवरवरमुनि स्वामीजी से कहे “श्रीमान को दास को तदनुसार आज्ञा करना चाहिये”। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने उन्हें भगवान कि सन्निधी में ले गये और उन्हें तिरुमला जाने कि आज्ञा प्रदान किये। उन्होंने मन्दिर के अर्चक उत्तम नम्बी से कन्दाडै अण्णन् के साथ जाने को कहे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने कई श्रीवैष्णव, जीयर, एकांगी को उनके साथ यात्रा करने को कहे। उत्तम नम्बी कन्दाडै अण्णन् के लिये पालकी और अन्य सुविधा के साथ तैयार हुए। अण्णन् ने यह सभी को अस्वीकार किया और श्रीवैष्णव गोष्ठी कि पूजा करते हुए तिरुमला को गये। उन्हें तिरुमला में ब्रह्मोत्सव (भाद्रपद महिने में) में २ से ३ दिन रहने कि इच्छा थी। यह समूह तिरुमला के पहाड़ों में पहुंचा और अडिप्पुळि अऴगिय सिंङ्गर् (नरसिंह भगवान) कि पूजा किये। तिरुमलै अनन्दाऴ्वान् [जो कदापि श्रीरामानुज स्वामीजी के शिष्य तिरुमलै अनन्दाऴ्वान् (प्रथम अनन्दाऴ्वान्) के वंशज हो सकते हैं और उनके पुष्प- कैङ्कर्य का अनुकरण करते होंगे] ने इस संदेश को प्राप्त किया और इसे पेरिय केळ्वियप्पन् जीयर् और स्थलत्तार् (तिरुवेङ्गडम् के प्रमुख जन) को घोषित किया इस समाचार से वें बहुत आनन्द हुए; यह इच्छा रखते हुए कि अण्णन् उत्सव के समय मङ्गळाशासन् करें, उन्होंने भगवान को दिव्य रथ पर चढ़ने कि प्रतिक्षा किये और अण्णन् को लाने के लिये एक दल के रूप में तुरंत चले गये। उन्होंने अण्णन् और उनके साथियों का स्वागत किया जिसके पश्चात सभी दिव्य रथ पर लौट आये। कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी ने मङ्गळाशासन् किया जिसके बाद पर दिव्य रथ सभी दिव्य विथीतों से गुजरी। जिस स्थान पर इयल्गोष्टी प्रारम्भ करना था अयोध्या रामानुज अय्यङ्गार् ने अण्णन् को देखा और हर्ष होकर उनकी पूजा किये। अण्णन् ने बड़ी दया से अपनी कृपा अय्यङ्गार् को दिये।
उस समय रामानुज दास जो बद्रीकाश्रम में थे तिरुमला पधारे यहाँ देखा कि अण्णन् कृपाकर वहाँ पधारे; यह देख सभी विस्मित हो गये और तुरन्त सभी अण्णन् के दिव्य चरणों में पूजा किये। अण्णन् भी रामानुज दास को देखकर बहुत प्रसन्न हुए, आलिंगन किया और खुशी से कहा “ओ रामानुज दास! आवों। क्या आपको देखकर हम भाग्यशाली नहीं हैं! जिस तरह एक पिता का हृदय अपने पुत्र के साथ रहता हैं जो दूसरी स्थान पर चला गया हैं, जीयार स्वामीजी का दिव्य हृदय आपके साथ जुड़ गया हैं”, रामानुज दास के आचार्य निष्ठा को प्रगट करते हुए वहाँ उपस्थित सभी प्रतिष्ठित जनों पर दया किये। भगवान भी कृपाकर अपने दिव्य पालकी में मन्दिर में पधारे। भगवान को पूजा करने के क्रम से अण्णन् ने भगवान के दिव्य चरणों से प्रारम्भ कर उनके दिव्य मुकुट तक और फिर पुनः दिव्य मुकुट से लेकर दिव्य चरणों तक पूजा किये। अपने मन कि इच्छा कि पूर्ण संतुष्टी के साथ उन्होंने श्रीतीर्थ, श्रीशठारी और दिव्य चरणरज को स्वीकार किया। उन्हें फिर श्रीअनन्दाऴ्वान् स्वामीजी के दिव्य तिरुमाळिगै मे लेजाया गया और उनका वहाँ पूर्ण सम्मान हुआ। कन्दाडै अण्णन् कुछ दिवस तक वहाँ विराजमान हुए।
आदार – https://granthams.koyil.org/2021/10/11/yathindhra-pravana-prabhavam-84-english/
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
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