यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ८६

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

<< भाग ८५

कन्दाडै अण्णन् श्रीदेवराज भगवान का सालैक्किणऱु से तिरुमञ्जन कैङ्कयं करते हैं 

कन्दाडै अण्णन् श्रीवरदराज भगवान के तिरुवाराधन करने हेतु सालैक्किणऱु से तिरुमञ्जन के लिये पवित्र जल लाने कि इच्छा करते हैं। क्योंकि यह कैङ्कर्य श्रीरामानुज स्वामीजी बड़े आनन्द से करते थे, श्रीदाशरथी स्वामीजी बड़े खुशी से करते थे, कन्दडै तोऴप्पर् (श्रीदाशरथी स्वामीजी के पोते) इच्छा से करते थे और कन्दडै अण्णन् इस कैङ्कर्य को प्रसन्न होकर कर रहे हैं। सुबह अपने मठ से जल्दी उठकर मंदिर के पुष्करणी में स्नान कर अन्य श्रीवैष्णवों के साथ नित्यकर्मानुष्ठान कर बड़े अनुराग से कैङ्कर्य कर सालैक्किणऱु जाकर वहाँ पात्र जिसमें जल भरना हैं उन्हें स्वच्छ कर, जल भरकर अपने सिर पर रखकर आळवन्दार् स्तोत्र गाते हुए लाते हैं। जब तक वें काञ्चीपुरम् में निवास किये वें प्रतिदिन यह कैङ्कर्य किये जैसे तण्णीरमुदु उत्सवम् (जल लाने का महोत्सव) (यह उत्सव श्रीरामानुज स्वामीजी कि आज्ञा से तिरुमला में होता हैं)। यह उत्सव करने का कारण यह हैं कि जब श्रीरामानुज स्वामीजी के मामाजी श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी तिरुमला में तीर्थ कैङ्कर्य (आकाश गंगा से श्रीवेङ्कटेश भगवान के तिरुवाराधन के लिये जल लाते) करते थे तब एक दिन भगवान एक व्याध के रूप में आकर उस मटके को छेद किया जो श्रीशैलपूर्ण स्वामीजी उठाकर जा रहे थे और पूर्ण जल पी लिया। यह घटना सभी को मालूम पड़े इसलिये श्रीरामानुज स्वामीजी ने इसे उत्सव रूप दिया जिसमे कई श्रीवैष्णव जन अध्ययन उत्सव के समाप्ती के पश्चात आकाश गंगा से जल लाते हैं। कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी ने अप्पाच्चियार् अण्णा को निरन्तर श्रीवरदराज भगवान के लिये यह कैङ्कर्य करने को कहे। 

कन्दाडै रामानुज अय्यङ्गार् द्वारा किये गये कैङ्कर्य​ 

कन्दाडै रामानुज अय्यङ्गार् तिरुमला में कैङ्कर्य कर काञ्ची को लौटने के पश्चात अनन्तसरस (काञ्चीपुरम् में श्रीवरदराज भगवान के मंदिर में पुष्करनी) में नीराऴि मण्डप (पुष्करनी के मध्य में विशाल कक्ष), जिसमे अनन्तसरस के चारों ओर सीढीयाँ, पुष्करनी के दक्षीण दिशा में एक सुन्दर उठा हुआ फर्श, एक सिंहासन (भगवान के लिये दिव्य सिंहासन) और मंदिर में एक कक्ष का निर्माण करवाया। उन्होंने भक्तिसार स्वामीजी के मन्दिर में भी कैङ्कर्य किया, मण्डप के सामने एक और मण्डप जहां भगवान का तिरुमञ्जन होता हैं, कई अन्य मण्डप, तिरुमडप्पळ्ळि​ (भगवान का प्रसाद बनाने के लिये दिव्य रसोई घर), भगवान को दिव्य आभूषण अर्पण करना, तिरुमञ्जन के समय हल्दी का लेप बनाना और कई अन्य कैङ्कर्य किये। कन्दाडै अण्णन् ने उन्हें यह भी कहा भगवान के दिव्य होठों के लिये सही प्रसाद बनवाये और उन्हें आगे कहा “यह सभी श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के कैङ्कर्य हैं। इनका निर्वाह अवश्य करें”। उन्होंने कन्दाडै रामानुज अय्यङ्गार् से यह भी कहा कि “अप्पाच्चियार् अण्णा के साथ वैसे ही व्यवहार करो जैसे मेरे साथ करते हो” और उन्हें फिर तिरुमला को भेजे। 

अण्णन् जीयर् – जीयर् अण्णन्

कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी फिर श्रीपेरुम्बुदूर और अन्य दिव्यदेशों में मङ्गळाशासन् करने कि इच्छा प्रगट किये। श्रीवरदराज भगवान का तिरुवाराधन करने के पश्चात उन्होंने उनसे आज्ञा मांगी और भगवान को अर्पण भेंट में भाग लिया। भगवान ने उन्हें अपना दिव्य पीताम्बर वस्त्र, अभयहस्त,  तिरुवडिसोडु (उनके दिव्य चरणों के दिव्य कवच), कळबम् (सुगंधीत चूर्ण का मिश्रण), उनकी धारण कि हुई तुलसी माला दिया और कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी से कहा यह सभी “श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के लिये हैं”। उन्होंने फिर कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी को जाने कि आज्ञा प्रदान किये। कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी वैयमाळिगै में कच्चिक्कु वाय्त्त मण्डपम् (मन्दिर अंदर सभागृह) पहुँचे और श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वैभव को स्मरण किया। यह सभी सुनकर श्रीवरदराज भगवान बहुत आनंदित हुए। उस समय कुछ विशेष जन जो वहाँ पधारे थे ने कहा श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के लिये श्रीवरदराज भगवान ने एक दिव्य नाम दिया अण्णन् जीयर् । कुछ ओर विशेष जन वहाँ ने कहा श्रीरङ्गनाथ भगवान ने कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी को पहिले एक दिव्य नाम प्रदान किया जीयर् अण्णन् । अत: कुछ विशेष जन जीयर् और अण्णन् के बीच आपसी निकटता और अद्भुत प्रेम के साथ साथ उनके वैभव का उत्सव जैसे मनाया। उसी समय कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी को श्रीवरवरमुनि स्वामीजी से एक संदेश आया “बहुत समय हो गया हैं। तुरन्त आओं”। कन्दाडै अण्णन् स्वामीजी ने उस संदेश को अपने सिर पर रखा श्रीपेरुम्बुदूर और अन्य दिव्यदेशों के दिशा में देख साष्टांग करते हुए तुरन्त श्रीरङ्गम् के लिये प्रस्थान किये। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/10/12/yathindhra-pravana-prabhavam-86-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org

1 thought on “यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ८६”

Leave a Comment