यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग ९०

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

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जीयर् कोयिल के अनुभव की कमी के लिए दुःखित थे।

जबकी श्रीवरवरमुनि स्वामीजी आऴ्वार्तिरुनगरि में विराजमान थे मार्गशीष महिना (धनुर्मास) प्रारम्भ हुआ। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी बहुत दुखी हुए कि वें श्रीरामानुज स्वामीजी कि तिरुप्पावै [श्रीरामानुज स्वामीजी तिरुप्पावै से बड़ी गहराई से जुड़े हुए थे; इसलिये उन्हें तिरुप्पावै जीयर्  कहा जाता हैं; इसलिये श्रीवरवरमुनि स्वामीजी उन्हें श्रीरामानुज स्वामीजी कि तिरुप्पावै] कि महिमा को सुन न सके और पूजा भी न कर सके। उन्होंने यह पाशुर कि रचना किये 

एन्दै एदिरासर् सिऱप्पै एऴिल् अरङ्गा
सिन्दै मगिऴ्न्दु अमुदु सेय्य​- अन्द निलम्
सेन्ऱु निन्ऱु सेविक्कुम् सेल्वम् इन्ऱु पेट्रिलमे 
एन्ऱु सेविक्कुम् इनि याम्?

(ओ सुन्दर श्रीरङ्गनाथ​! मैं आज सौभाग्यशाली नहीं कि श्रीरङ्गम् जा सकूँ, मन्दिर में खड़े होकर और मेरे स्वामीजी श्रीरामानुज के वैभव को सुन सकूँ और इसे उत्सव मानकर खुश हो जाऊँ। कब मैं यह पूजा करूँगा?) 

जब संक्रांती (तै मास [मकर मास] के प्रारम्भ के साथ दक्षिणायन से उत्तरायण कि ओर बढ़ते हुए) आयी उनके हृदय को दुख हुआ और यह पाशुर गाया 

चीररङ्गर् तम्देवियरोडु चिऱप्पुडने
येरारु माऱन् कलियन् एदिरासनोडु अमरप्
पारोर् मगिऴ्न्देत्तुम् तट्टुक्कळ् तन्नुडन् पोट्रुम् अन्द​
पेरार् वार्त्तै इन्ऱु कण्डु इन्बुऱप् पेट्रिलमे

(मैं भाग्यशाली नहीं हूँ कि श्रीरङ्गनाथ भगवान को उनकी दिव्य पत्नीयों के साथ, श्रीशठकोप स्वामीजी, श्रीपरकाल स्वामीजी और श्रीरामानुज स्वामीजी के साथ बैठे हुए देखा जाय, जब कि संसार के सभी लोग बहुत खुशी से झूम उठेंगे और उनके महान शब्द को सुनकर बड़ी चतुराई से उनकी प्रशंसा करेंगे) 

तैत्तिरुनाळ् (मकर मास में यह उत्सव श्रीरङ्गम् में प्रारम्भ होता हैं) को स्मरण करते हुए उन्होंने यह पाशुर का अनुसन्धान किया 

देवियरुम् तामुम् तिरुत्तेरिन् मेल् अरङ्गर्
मेवि विकिरमन् वीदि तनिल्- सेवै सेयुम्
अन्दच् चुवर्क्कत्तै अनुबविक्कप् पेट्रिलमे
इन्दत् तिरुनाळिले नाम्

(इस शुभ दिन पर मैंने श्रीरङ्गनाथ भगवान के दिव्य रथ पर उनकी दिव्य पत्नीयों के साथ बैठे हुए और तिरुविक्किरमन वीदि (श्रीरङ्गम् मन्दिर के सात प्राकारम में से एक) के चारों ओर घूमते हुए उस महान उत्तम दृष्टि का अनुभव नहीं किया) 

उत्सव के दिनों में श्रीरङ्गम् में न होने के अपने बड़े हानि को महसूस करते हुए, वे सूना महसूस कर रहे थे और श्रीशठकोप स्वामीजी के पाशुरों को स्मरण किये जैसे अणियरङ्गम् आडुदुमो तिरुवरङ्गप् पेरुनगरुळ् तेण्णीर्प् पोन्नि तिरैक्कैयाल् अडिवरुड पळ्ळि कोळ्ळुम् करुमणियै कोमळत्तै कण्डुकोण्डु एन् कण्णिनैगळ् एन्ऱुकोलो कळिक्कुम् नाळ् (श्रीकुलशेखर आऴ्वार् के पेरुमाळ् तिरुमोऴि १.१.१), ऊररङ्गम् एन्बदु इवन् तनक्कु आसै आदि। अपने हृदय में बड़ी इच्छा के साथ वें श्रीशठकोप स्वामीजी के सन्निधी में गये और इस पाशुर का अनुसंधान कर उनका मङ्गळाशासन् किया 

तिरुक्कुरुगैप्पेरुमाळ् तन् तिरुत्ताळ्गळ् वाऴिये
      तिरुवानतिरुमुगत्तुच् चेवियेन्ऱुम् वाऴिये
इरुक्कुमोऴियेन्नेञ्जिल् तेक्किनान् वाऴिये
      येन्दैयेदिरासर्क्किऱैवनार् वाऴिये
करुक्कुऴियिल् पुगावण्णम् कात्तरुळ्वोन् वाऴिये
     काचिनियिल् आरियनाय्क् काट्टिनान् वाऴिये
वरुत्तम​ऱ वन्देन्नै वाऴ्वित्तान् वाऴिये
     मदुरकवि तम्बिरान् वाऴि वाऴि वाऴिये

(तिरुक्कुरुगूर के भगवान आपके दिव्य चरणों का मंगल हो! अनन्त काल के लिये दिव्य चेहरे कि ताजगी का मंगल हो! जिस तरह से उन्होंने ऋग्वेद के शब्दों को मेरे हृदय में निवास करवाया का मंगल हो! मेरे स्वामीजी श्रीरामानुज के स्वामी का मंगल हो! मुझे गर्भगृह में पुनः गिरने से बचानेवाले का मंगल हो! उन्होंने इस संसार में प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में जो दिखाया उसका मंगल हो! जिस तरह से उसने मुझे बिना किसी पछतावे के रहने के लिये सक्षम किया उसका मंगल हो! श्रीमधुरकवि स्वामीजी के उपकारी का मंगल हो!)

उन्होंने श्रीशठकोप स्वामीजी कि आज्ञा लेकर तिरुक्कुरुगूर से प्रस्थान किया। वे शिघ्रता से श्रीविल्लिपुत्तूर पहुँचे, मंदिर में प्रवेश कर श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी (पेरियाऴ्वार्, जिनके पास पोङ्गुम् परिवु हैं (भगवान के लिये अत्याधिक स्नेह)) कि पूजा किए और साथ ही वडपेरुङ्कोयिलुडैयान् (जो बरगद के पत्ते पर विशाल मन्दिर में रहता हैं) कि पूजा किए। उन्होंने फिर अम्माजी के दिव्य तिरुमाळिगै में प्रवेश किया और श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी और श्रीगोदाम्बाजी (श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी कि दिव्य पुत्री) के दिव्य चरणों कि पूजा किये। कोदै (श्रीगोदाम्बाजी का एक और नाम, यह नाम उनके भगवान से पहिले स्वयं को माला धारण करने को दर्शाता हैं) ने अपनी कृपा यह कहकर उनपर बरसाई “क्या आप कोइल अण्णन् (इसका अर्थ – उनके बड़े भाई जो श्रीरङ्गम् में निवास करते हैं यानि श्रीरामानुज स्वामीजी) के अपरावतार नहीं हैं”। श्रीगोदाम्बाजी कि कृपा से उन्होंने अऴगर् कोयिल् के लिये प्रस्थान किया अऴगन् अलङ्कारन् तिरुमलियान् सुन्दरत्तोळुडैयान् (वह जिनके सुन्दर भुजा हैं जो तिरुमालिरुञ्चोलै में निवास करते हैं जो सुन्दर और सजे हुए हैं। उन्होंने परमस्वामी कि पूजा किये जो तिरुमालिरुञ्चोलै में मूल भगवान का नाम हैं) कि पूजा करने हेतु। उन्हें यह कहा गया था कि उत्सव भगवान कृपाकर अपने दिव्य निवास स्थान को स्थानांतरित करते हुए तिरुक्कुऱुङ्गुडि के लिये प्रस्थान किये। उन्होंने श्रीविष्णुचित्त स्वामीजी के पाशुर को स्मरण किया “नल्लदो्र तामरैप् पोय्गै नाण्मलर्मेल् पनिचोर अल्लियुम् तादुम् ओऴिन्दिट्टु अऴक​ऴिन्दाल् ओत्तदालो इल्लम् वेऱियोडिट्रालो एन् मगळै एङ्गु काणेन्” (जब ओस एक खिले हुए कमल पुष्प पर गिरता हैं जो एक सुन्दर कमल के तालाब में होता हैं तो वह अपनी बाहरी और भीतारी पंखुड़ियो को खो देता हैं। इसी तरह मेरा घर बिल्कुल खाली दिखता हैं क्योंकि मेरे पुत्री अब कहीं दिखती नहीं हैं), क्योंकि भगवान अब मन्दिर में नहीं दिख रहे हैं और मन्दिर कि सुन्दरता पूर्णत: खो गई हैं। जैसे कि इसमें कहा गया हैं “पुत्र द्वय विहीनं तत्” (जैसे कि बिना दोनों भाईयों [राम और लक्ष्मण] के घर में न होने से दुखी महसूस करता था। जैसे श्रीरामानुज स्वामीजी ने किया उन्होंने सभी सामग्रीयों का आह्वान किया, उनके साथ एक उपयुक्त खाद्य पदार्थ बनाया, इसे भगवान को अर्पण किया जैसे नाच्चियार तिरुमोऴि के ९.६ में श्रीगोदाम्बाजी ने गाया हैं “नाऱुन​ऱुम् पोऴिल् मालिरुञ्चोलै नम्बिक्कु” (तिरुमालिरुञ्चोलै के परोपकारी के लिये जिसके पास सुगंधीत उद्यान है)। कैक्कूलि  के रूप में उस प्रसाद को ग्रहण करने के लिये उन्होंने भगवान का मङ्गळाशासन् नाच्चियार् तिरुमोऴि के ९.७ पाशुर “पिन्नुम् आळुम् सेय्वन्” और पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि के ५.३.३ पाशुर “उन्पोन्नडि वाऴ्ग​” को गा कर किया। उन्होंने परमस्वामी के दिव्य मुख कि पूजा किये और उन्हें सच बोलने वाले आऴ्वार् के दयालु पाशुर बनाने का अनुरोध किया “नङ्गळ् कुन्ऱम् कैविडान्” (हमारा निवास नहीं छोड़ेंगे) को सच्चा बनाये रखे [उन्होंन तिरुमालिरुञ्चोलै में उत्सव मूर्ति की शीघ्र वापसी के लिये भगवान से प्रार्थना किये]। 

आदार – https://granthams.koyil.org/2021/10/16/yathindhra-pravana-prabhavam-90-english/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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