श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री वानाचल महामुनये नम:
श्रीवचन भूषण का पाठ / अध्ययन करने से पूर्व निम्म तनियन का पाठ करने कि प्रथा हैं। हम अपने गौरवशाली आचार्य और सभी के हित के लिये उनके साहित्यिक योगदान को समझने हेतु उन्हें संक्षेप में देखेंगे।
पहिले श्रीशैलेश दयापात्रं … भूतं सरश्च तनियन् का अनुसन्धान होता हैं। इसे https://divyaprabandham.koyil.org/index.php/thaniyans-invocation/ में देखा जा सकता हैं। इसके पश्चात निम्म तनियन् को गाया जाता हैं।
लोकगुरुं गुरुभि: सह पूर्वै: कूरकुलोत्तमदासमुदारम् ।
श्रीनगपत्यभिरामवरेशौ दीप्रशयानगरुं च भजेहम् ॥
(दीप्रशयम् वरयोगि नमीडे ऐसे भी अनुसंधान किया जाता हैं)
सरल अनुवाद: श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित। मैं हमारे पूर्वाचार्य, श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी, पर कृपालु श्रीकूरकुल्लोत्तम दास, श्रीशैलेश स्वामीजी, अऴगियमणवाळप्पेरुमाळ् पिळ्ळै (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के नानाजी) और श्रीतिगऴक्किडन्दान् तिरुनावीऱुडैयपिरान् तादर् (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के पिताजी)। टिपण्णी: श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के पिताजी सत सम्प्रदाय के सिद्धान्तों को अपने श्वसुर कोट्टियूर अऴगियमणवाळप्पेरुमाळ् पिळ्ळै से सीखे जो श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के प्रिय शिष्य हैं।
लोकाचार्याय गुरवे कृष्णपादस्य सूनवे ।
संसार भोगि सन्दष्ट जीव जीवातवे नम: ॥
सरल अनुवाद: श्रीईयुण्णि पद्मनाभ पेरुमाळ् (श्रीईयुण्णि माधव पेरुमाळ् के पुत्र जो श्रीकलिवैरिदास स्वामीजी के शिष्य हैं) द्वारा प्रतिपाडित हैं। मैं श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी को प्रणाम करता हूँ जो श्रीकृष्णपाद स्वामीजी के पुत्र हैं और जो संसारियों के लिये जीवन रक्षक औषधि हैं जिन्हें इस संसार रूप सर्प ने काटा हैं।
लोकाचार्यकृपापात्रं कौण्डिन्य कूलभूषणम् ।
समस्तात्मगुणावासं वन्दे कूरकुलोत्तमम् ॥
सरल अनुवाद: श्रीशैलेश स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित हैं। मैं कूर कुलोत्तम दास कि पूजा करता हूँ जो श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के कृपापात्र हैं जो कौण्डिय वंश के शिखा के आभूषण हैं और जो सभी शुभ गुणों का निवास स्थान हैं।
नम: श्रीशैलानाथाय कुन्तीनगरजन्मने ।
प्रसादलभ्द परमप्राप्य कैङ्कर्य शालिने ॥
सरल अनुवाद: श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित हैं। मैं श्रीशैलेश स्वामीजी को प्रणाम करता हूँ जो कैङ्कर्यश्री (सेवा के धन) के साथ चमक रहे हैं जिन्हें श्रीशठकोप स्वामीजी ने आशीर्वाद प्रदान किया था और जिनका जन्म “कुन्तीनगर” में हुआ था।
लोकाचार्य पदाम्भोज राजहंसायितान्तरम् ।
ज्ञान वैराग्यजलधिं वन्दे सौम्य वरं गुरुम् ॥
सरल अनुवाद: श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित हैं। मैं अऴगियमणवाळप्पेरुमाळ् पिळ्ळै (उनके नानाजी) कि पूजा करता हूँ जो श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के दिव्य चरण कमलों से दिव्य हंस (जो दिव्य कमल पुष्प से बंधा हैं) के जैसे बंधे हैं और जो ज्ञान और वैराग्य के सागर हैं।
श्रीजिह्वा वतदीशदासम् अमलम् अशेष शास्त्रविदम्।
सुन्दरगुरुवर करुणाकन्दळित ज्ञानमन्दिरं कलये॥
सरल अनुवाद: श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा प्रतिपादित हैं। मैं तिगऴक्किडन्दान् तिरुनावीऱुडैयपिरान् गौरवान्वित करता हूँ जिनके ज्ञान को अऴगियमणवाळप्पेरुमाळ् पिळ्ळै की दिव्य कृपा से तैयार किया गया था जो दोषरहित हैं और सभी शास्त्र के विशेषज्ञ हैं।
श्रीवचन भूषण के विशिष्ट तनियन्
श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र को ६ प्रकरण और ९ प्रकरण में समझाया गया हैं। निम्म लिखत तनियन् इस प्रबन्ध के दो भिन्न भिन्न वर्गीकरणों की व्याख्या करती हैं।
पुरुषकार वैभवं च साधनस्य गौरवं
तदधिकारिकृत्यमस्य सद्गुरूपसेवनम् ।
हरिदयां अहैतुकीं गुरोरुपायतान्च यो
वचनभूषणेवदज्जगद्गुरुं तमाश्रये॥
सरल अनुवाद: मैं श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी के शरण होता हूँ जिन्होंने कृपाकर श्रीवचन भूषण के निम्म तत्त्वों को समझाया हैं।
- अम्माजी कि महिमा जो पुरुषकार करती हैं (भगवान कि जीवात्मा की स्वीकृति को सुगम बनाती हैं)।
- सिद्धोपाय कि महानता – भगवान पहिले से हीं स्थापित उपाय रूप में
- योग्य अधिकारीयों का व्यवहार जिन्होंने भगवान को उपाय रूप में स्वीकार किया
- ऐसे जनों का व्यवहार और आचार्य के प्रति सेवा
- भगवान के निर्हेतुक कृपा के वैभव
- आचार्य हीं अंतिम उपाय होना
साङ्गाखिल द्राविड संस्कृतरूप वेदा सारार्थ संग्रह महारस वाक्यजातम् ।
सर्वज्ञ लोकगुरु निर्मितम् आर्य भोग्यं वन्दे सदा वचनभूषण दिव्य शास्त्रम् ॥
सरल अनुवाद: मैं श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र कि निरन्तर पूजा करता हूँ जिसे सर्वज्ञ श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी द्वारा संकलित किया गया था जो विद्वानों के लिये सबसे अधिक सुखद हैं जो वेद, वेदान्त आदि के सार को स्पष्ट रूप से प्रगट करता हैं और इसमें सुन्दर छन्द और वाक्यों के कई समूह हैं।
अकुण्ठोत्कण्ठ वैकुण्ठप्रियाणां कण्ठभूषणम्।
गुरुणाजगताम् उक्तं व्याप्तं वचन भूषणम्॥
सरल अनुवाद: श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र उन भक्तों के गले के लिये सुन्दर आभूषण हैं जो श्रीवैकुण्ठ तक पहुँचने के इच्छुक हैं जो अनन्त सुखों का धाम हैं और जो हर जगह जाना जाता हैं। ऐसे सुन्दर प्रबन्ध को श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी ने प्रतिपादित किया था।
पेऱु तऱुविक्कुमवळ् तन् पेरुमै आऱु पेऱुवान् मुऱै
अवन् कूऱु गुरुवैप्पनुवल् कोळ्वदिलैयागिय कुळिर्न्द अरुळ्दान्
माऱिल्पुगऴ् नऱ्कुरुविन् वण्मैयोडेलाम् वचन भूडणमदिल्
तेऱिड नमक्करुळ् मुडुम्बै इऱैयवन् कऴल्गळ् सेरेन् मनने
सरल अनुवाद: हे हृदय! मुदुम्बै के भगवान (श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी) के शरण लेवे जिन्होंने श्रीवचन भूषण में हमारे उत्थान हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त को सपष्ट रूप से प्रगट किया। इस प्रबन्ध में जो ६ सिद्धान्तों कि व्याख्या कि गई हैं वह हैं:
- अम्माजी कि महिमा जो पुरुषकार करती हैं (भगवान कि जीवात्मा की स्वीकृति को सुगम बनाती हैं)।
- सिद्धोपाय कि महानता – भगवान पहिले से हीं स्थापित उपाय रूप में
- योग्य अधिकारीयों का व्यवहार जिन्होंने भगवान को उपाय रूप में स्वीकार किया
- ऐसे जनों का व्यवहार और आचार्य के प्रति सेवा
- भगवान के निर्हेतुक कृपा के वैभव
- आचार्य हीं अंतिम उपाय होना
तिरुमगळ् तन् सीररुळेट्रमुम् तिरुमाल् तिरुवडि सेर्वऴि नन्मैयुम्
अव्वऴि ओऴिन्दन अनैत्तिन् पुन्मैयुम् मेय्वऴियून्ऱिय मिक्कोर् पेरुमैयुम्
आरणम् वल्लवर् अमरु नन्नेऱियैयुम् नाऱणन् ताळ् तरु नऱ्कुरुनीदियुम्
सोदिवानरुळ् तूयमागुरुविन् पादमामलर् पणिबवर् तन्मैयुम्
तीदिल् वानवर् देवन् उयिर्गळै एदुमिन्ऱि एडुक्कुम्पडियैयुम्
मन्निय इन्बमुम् मागदियुम् गुरुवेन्नु निलै पेऱुम् इन्पोरुळ् तन्नैयुम्
असैविला वेदम् अदनुळ् अनैत्तैयुम् वचनबूड़ण वऴियाल् अरुळिये
मरैयवर् चिगामणि वण्पुगऴ् मुडुम्बै इऱैयवन् एङ्गोन् एर उलगारियन्
तेन्मलर्च्चेव्वडि सिन्दै सेय्बवर मानिलत्तु इन्बमदु एय्दि वाऴ्बवरे
सरल अनुवाद: जो मेरे स्वामी श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य के मधु समान चरण कमलों का ध्यान करता हैं, जो मुदुम्बै के प्रभु हैं, जो वेदों के विशेषज्ञों के मुकुट पर शिखर रत्न हैं और जो श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के माध्यम से शास्त्र के सबसे आवश्यक सिद्धान्तों का वर्णन करते हैं – ऐसे जन इस संसार में हीं (भगवद/भागवत का अनुभव और कैङ्कर्य का) सबसे अधिक आनन्द प्राप्त करेंगे। श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी विशेषकर ९ सिद्धान्तों को इस या अन्य प्रबन्ध में समझाते हैं।
- श्रीअम्माजी कि महिमा जो भगवान को जीवात्मा को स्वीकार करने में पुरुषकार करती हैं (बिल्कुल एक माँ कि तरह जो लगातार अपने बच्चे का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनके लिये पिता से बात भी करती हैं)
- भगवान कि महानता उन तक पहुँचने का एक उपाय हैं।
- अन्य मार्ग कि सीमाएं जैसे कर्म, ज्ञान, भक्ति, आदि
- प्रपन्नोंकी महिमा जो केवल भगवान को उपाय रूप में स्वीकार करते हैं
- ऐसे प्रपन्नों का व्यवहार और दिनचर्या
- आचार्य और उनके व्यवहार में पाये जानेवाले आदर्श गुण
- एक शिष्य में पाये जानेवाले आदर्श गुण
- जीवात्मा के उत्थान के लिये भगवान (नित्यसूरि के स्वामी) की अकारण दया और प्रयास
- परम सिद्धान्त जो समझाता हैं कि आचार्य हीं साधन और लक्ष्य हैं (चरम पर्व निष्ठा)
लोकाचार्य कृते लोकहिते वचनभूषणे ।
तत्वार्थ दर्शिनो लोके तन्निष्टाश्च सुदुर्लभा: ॥
सरल अनुवाद: ऐसे व्यक्ति मिलना बहुत दुर्लभ है जो वास्तव में श्रीवचन भूषणम में बताए गए सिद्धांतों को समझते हैं और अभ्यास करते हैं, जो पूरी तरह से सभी जीवात्माओं के लाभ के लिए लिखा गया है।
लोकाचार्य कृते लोकहिते वचनभूषणे ।
तत्वार्थ दर्शिनो लोके तन्निष्टाश्च सुदुर्लभा: ॥
सरल अनुवाद: ओ यतिराज (श्रीरामानुज)! दास पर कृपा करिये कि मैं श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी द्वारा रचित श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र में उल्लिखित सिद्धान्तों को समझ कर उसका पालन कर सकूँ।
इस प्रकार श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र के आह्वानात्मक छंदों का अनुवाद समाप्त होता है जो श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी और इस अद्भुत प्रबंध की महिमा को पूरी तरह से सामने लाते हैं।
अगले लेख में हम श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा इस श्रीवचन भूषण दिव्य शास्त्र में अवतारिकै (व्याख्यान का परिचय) का अनुवाद देखेंगे।
अडियेन् केशव् रामानुज दास्
आधार – https://granthams.koyil.org/2020/12/01/srivachana-bhushanam-thaniyans-english/
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
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