श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
पेरियाऴ्वार् (विष्णु चित्त स्वामी जी) ने माता यशोदा की मनःस्थिति में स्वयं को रखकर श्रीकृष्ण लीलाओं का आनन्द लिया और उसका चित्रण पासुरों के रूप में प्रस्तुत किया है। अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में कई पदिगमों (दशकों) में, उन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनन्द लेते हुए करुणापूर्वक सविस्तार समझाया।
पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में, “वण्ण माडङ्गळ् सूऴ् तिरुक्कोटियूर् कण्णन् केसवन् नम्बि पिऱन्दिनिल् ऎण्णै सुण्णम् ऎदिर् ऎदिर् तूविड कण्णन् मुट्रम् कलन्दु अळरायिट्रे” से आरम्भ होकर (सुन्दर महलों से परिवृत्त तिरुकोष्टियूर् (श्रीगोष्ठिपुराधीश), केशवनामधारी, कल्याण गुण परिपूर्ण श्रीकृष्ण भगवान जब श्रीनन्दराय जी के यहाँ अवतरित हुए तब अत्यन्त आनन्द के कारण गोप-ग्वालों ने तेल और हल्दी चूर्ण को एक दूसरे पर फेंक कर श्रीकृष्णगृहांगण को कीचड़ बना दिया। उन्होंने भगवान के जन्मोत्सव को धूमधाम से मनाया उसका चित्रण इस प्रकार है:-
- श्रीनन्दराय जी और उनकी पत्नी यशोदाप् पिराट्टि (माता) के यहाँ पुत्रोत्सव का समाचार सुनकर गोप और गोपीगण ने रंग-बिरंगे जल से एक दूसरे के साथ होली खेलते हुए, नाच-गान करते हुए, जन्मोत्सव मनाने लगे।
- सभी गोपबालाएँ एक- एक करके, बालकृष्ण को अपनी गोद में लेकर दुलार करती हैं। उधर उस चरम प्रेमपूर्ण हर्ष का अनुभव करती हैं।
- ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्रादि अन्य देवता भांति -भांति की भेंट बालकृष्ण के लिए लाते हैं।
- चन्द्रमा को देखना, यशोदा माता की पीठ पर चढ़ कर झूल जाना, अपने दोनों हाथों से ताली बजाना, डगमगाते हुए चलना, माता का दुग्ध पान करना, कर्ण छेदन, पुष्प धारण करना, बुरी (ऊपरी) नजर से बचाना, मक्खन चोरी करना, कई राक्षसों का नाश करना, गोपाङ्गनाओं के साथ रास क्रीड़ा का आनन्द लेना
इस प्रकार की लीलाओं का अनुभव आऴ्वार् ने चित्रित किया, अन्य आऴ्वारों ने भी श्रीकृष्ण जन्म और उनकी लीलाओं का अत्यधिक आनन्द का सेवन किया।
बालकृष्ण को मक्खन, घी, दूध, दही बहुत प्रिय था। नम्माऴ्वार् ने (शठकोप स्वामी जी) श्रीकृष्ण के द्वारा मक्खन चोरी करते हुए पकड़े जाने की लीला पर एकाग्र होने पर छः महीने तक मूर्च्छित हो गये। नम्माऴ्वार्, तिरुमङ्गै आऴ्वार् और कुलशेखर आऴ्वार् ने अपने पासुरों में श्रीकृष्ण के साथ प्रेम पूर्वक रूठने का आनन्द प्राप्त किया। श्रीमन्नाथमुनि स्वामी जी से आरम्भ होकर सभी आचार्य भी श्रीकृष्णावतार लीला में ध्यान मग्न थे।
आऴ्वार् और आचार्यों ने श्रीकृष्णावतार की लीला का अर्चावतार-सहित आनन्द लिया। अर्चावतार को विभवावतार के प्रतिनिधि के रूप में उन लोगों के लिए महिमामंडित किया जिनको इसका आनंद लेने का अवसर नहीं मिला।
इसके पश्चात् हम भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक अद्भुत लीला का और उसके सार का अवलोकन करेंगे।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
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