श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
बालकृष्ण के पालने में सोते समय की एक और लीला शकटासुर का वध है। आऴ्वारों ने कई स्थानों पर आनन्द पूर्वक वर्णन किया है। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) ने इस लीला का आनन्द पूर्वक अनुभव करते हुए कहा है “तळर्न्दुम् मुऱिन्दुम् सकटवसुरर् उडल् वेऱा पिळन्दु वीयत् तिरुक्काल् आण्ड पॆरुमाने!” (हे भगवान, जिन्होंने शकटासुर के शरीर की दृढ़ता खोकर उसका आकार बिगाड़ने, उसे दो भागों में विभाजित कर, अलग -अलग टुकड़े करने उसे तोड़ने के लिए दिव्य चरण कमल लगाया।)
एक बार, माता यशोदा ने एक लकड़ी की गाड़ी के पहिये पर पालना बनाकर उसमें बालकृष्ण को सुला दिया और कार्य समाप्त करने में व्यस्त हो गई। उसी समय कंस के द्वारा भेजा एक राक्षस जो बालक कृष्ण को मारने के लिए गाड़ी के पहिये में प्रवेश करने की आसान युक्ति सोच रहा था, उसने ऐसा ही किया। वह कृष्ण को मारने के उद्देश्य से उधर ही लुढ़कने लगा। उसी क्षण कृष्ण जाग गये और माता के दुग्ध पान करने के लिए रोने लगे। वह शकटासुर एम्पेरुमान् के दिव्य चरण कमलों के पास आ गया, उन्होंने अपने दिव्य चरण कमल से उस पहिये पर प्रहार किया, और वह शिथिल हो गया, उसके टुकड़े-टुकड़े हो गये और वह धरती पर गिर गया। गाड़ी भी टुकड़े-टुकड़े होकर गिर गई। इस स्थिति को देखकर माता यशोदा भागकर श्रीकृष्ण के पास आई और उठाकर गले लगा लिया। वहाँ उपस्थित सभी ने सोचा कि भगवान की कृपा से कृष्ण बच गए।
इस लीला का सार (चञ्चल गतिविधि):
- जैसे भगवान के दिव्य चरण कमल हमारी सुरक्षा के लिए हैं वैसे ही उसकी सुरक्षा के लिए हैं।
- भगवान को अपने शत्रुओं का वध करने लिए कोई विशेष प्रयास की आवश्यकता नहीं है, वे तो इसे बिना श्रम के ही कर लेते हैं।
- भगवान को अपने शत्रुओं के वध के लिए विशेष आयुधों की आवश्यकता नहीं है, वे अपने दिव्य स्वरूप /दिव्य अङ्गों से इस कार्य करने की क्षमता रखते हैं।
अडियेन अमिता रामानुजदासी
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