श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
आइए अब हम श्रीकृष्ण के (भूमिपर) बैठने की मुद्रा में की गई लीला को जानें।
गोकुल में, एकबार कृष्ण भूमि पर बैठे थे। कंस के द्वारा भेजा गया एक तृणावर्त नामक दैत्य वहाँ आया। वह एक विशाल बवंडर रूप धारण कर श्रीकृष्ण का वध करने के लिए उत्साहित था।
पहले उसने वहाँ बहुत भारी चक्रवात बनकर सभी ओर धूल आवृत कर दी। उसने बालक कृष्ण को उठाया और आकाश की ओर उड़ने लगा। उसने उस धूल से सभी नगर निवासियों के नेत्रों को आवृत कर दिया। उसने सभी के हृदय में भय उत्पन्न करने के लिए कोलाहल ध्वनि भी की।
उस समय वहाँ उपस्थित माता यशोदा बालकृष्ण को देख नहीं सकीं और परिस्थिति को समझ न सकने के कारण गिर गईं और करुण -विलाप करने लगीं, वहाँ उपस्थित गोपियाँ भी रोने लगीं।
श्रीकृष्ण का वध करने का प्रयत्न करने वाला तृणावर्त कृष्ण को साथ लेकर आकाश में उड़ गया। परन्तु बालकृष्ण ने स्वयं को इतना भारी कर लिया कि दैत्य उठाने में सक्षम नहीं हुआ। कृष्ण को उठाने में असमर्थ और सांस लेने अवरोध उत्पन्न होने के कारण भयंकर ध्वनि करते हुए भूमि पर गिर कर मर गया। जिसको देखकर वहाँ उपस्थित सभी जन भयभीत हो गए। उपस्थित गोपियों ने देखा कि बालक श्रीकृष्ण बिना किसी भय के राक्षस के ऊपर मंद -मंद हँसते बैठे हैं , उठाकर यशोदा को सौंप दिया।
इस लीला का सार :-
- भगवान पर प्रहार करने के लिए आए शत्रु में भले ही कितना बल हो, वे ऐसे शत्रुओं का नाश सुगमतापूर्वक कर देते हैं।
- कितनी भी भयानक स्थिति हो भगवान अपनी ओर इस संसार की रक्षा सहजता से करते हैं, अतः हमें उनके प्रति पूर्ण समर्पण करना चाहिए।
अडियेन अमिता रामानुजदासी
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