कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ६ – यशोदा द्वारा कृष्ण के मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

<< तृणावर्त उद्धार (वध)

बालक कृष्ण और बलराम अब बहुत अच्छे से (घुटरूं) घुटनों के बल चलने लगे। वे घुटनों के बल चलते हुए, (रेंगते हुए) मिटृटी में खेले, और अपनी माताओं यशोदा माता व रोहिणी माता के पास लौट गए, उनकी गोद में चढ़ गये अद्भुत अङ्गच्छटा से स्तनपान करने लगे। सामान्यतः ग्वालों के कुल में स्नानादि नित्य कर्म अनुष्ठान के सदाचरण की विषमता होती है जबकि ग्वालों के कुल में भगवान उनके मुखिया के रूप में अवतरित हुए। इसलिए उन्होंने इस प्रकार के सदाचरण का लगभग त्याग कर दिया और माता यशोदा को उन्हें स्नान कराने में बहुत संघर्ष करना पड़ता था। पेरियाऴ्वार तिरुमोऴि में पेरियाऴ्वार ने माता यशोदा के मनोदशा को समझते हुए “वॆण्णै अळैण्द कुणुङ्गुम्” से आरम्भ करके एक पूरा पदिगम (दशक) गाया है।

इस प्रकार कुछ समय के पश्चात् श्रीकृष्ण ने खड़े होना आरम्भ कर दिया और चलने लगे। तभी से उनकी नटखट लीलाएँ आरम्भ हो गईं। वे सदैव गोपबालाओं के केश खींचना, उनके वस्त्र खींचना, मक्खन चुराना, मटकियाँ तोड़ना, गोओं और उनके बछड़ों को छेड़ते रहना आदि नटखटपन की लीलाओं में व्यस्त रहने लगे।

एक बार जब सभी गोप बालक मिट्टी से भरी गली में खेल रहे थे, तभी बाल कृष्ण ने थोड़ी सी मिट्टी उठाई और खाने लगे। वहाँ उपस्थित गोपबालक माता यशोदा के पास आ गये और उपालम्भ करने लगे। यह सुनकर माता शीघ्र ही क्रोध में कृष्ण के पास गईं और पूछा “तुमने मिट्टी क्यों खाई?” कृष्ण ने उत्तर दिया “मैंने कदापि ऐसा नहीं किया”। माता यशोदा ने कहा “इधर आओ,अपना मुँह खोलो, मुझे स्वयं देखने दो।” माता को भ्रमित करने का सोच उन्होंने अपना मुख खोला और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन अपने मुख में करा दिए। यह अद्भुत दृश्य दिखाकर हतप्रभ कर दिया। क्षणभर में उस दृश्य को नेत्रों से ओझल कर विस्मृत कर दिया। पेरियाऴ्वार् ने अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में इस लीला का आनन्द लिया और करुणामय समझाया “वायुळ् वैयगम् कण्ड मड नल्लार् आयर् पुत्तिरन् अल्लन् अरुन्दॆय्वम् पाय सीरुडैप् पण्बुडैप् पालगन् मायन् ऎन्ऱु मगिऴ्न्दनर् मान्दरे” (गोकुल की संस्कारी और विनम्र गोपाङ्गनाओं ने श्रीकृष्ण के मुख में ब्रह्मांड का दर्शन किया और सोचा “कृष्ण केवल एक ग्वाला ही नहीं हैं जबकि सर्वोच्च भगवान जो विख्यात और अद्भुत हैं”। ऐसी चर्चा करते हुए बहुत प्रफुल्लित हो गईं।)

इस घटना का सार:-

  • एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) ने श्रीकृष्णावतार में अपने सरलता और सर्वोच्चता को प्रदर्शित किया।
  • एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) अपने दासों के सामने अपनी अद्भुत लीलाएँ प्रकट करते हैं और वे बहुत आनन्दित होते हैं 

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/08/28/krishna-leela-6-english/

प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org

Leave a Comment