कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ७ – माखन चोरी करना और पकड़े जाना

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नम्माऴ्वार (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुविरुत्तम् में वर्णित करते हैं “सूट्टु नन्मालैगळ् तूयनवेन्दि विण्णोर्गळ् नन्नीराट्टि अन्दूबम् तरा निऱ्कवे अङ्गु ओर् मायैयिनाल् ईट्टिय वॆण्णै तॊडु उण्णप्पॊण्दुमिलेट्रुवन् कून् कोट्टिडैयाडिनै कूत्तु अडलायर् तम् कॊम्बिनुक्के” कि परमपद में नित्यसूरियों द्वारा तिरुवाराधन (पूजा-अर्चना) करते हुए के बीच में ही भगवान दो कारणों से इस धरा पर आते हैं -१) भक्तों द्वारा स्वयं हाथों से तैयार किया गया मक्खन खाने, २) नप्पिन्नैपिराट्टि (माता नीऴा देवी) को आलिङ्गन करने। इन दो लीलाओं को आऴ्वारों ने परमानन्द के साथ कईकी पासुरों में अपने अद्भुत भावों को व्यक्त किया है। आऴ्वार् ही नहीं बल्कि कई विरक्त ऋषियों ने श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम से हृदय को पिघला देने वाली लीलाओं का पुराणों में वर्णन किया है। आइए ,हम श्रीकृष्ण की माखन चोरी की अद्भुत शोभित लीला के माधुर्य का आस्वादन करें।

नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मोऴि में वर्णन करते हैं “वळवेऴ् उलगिन् मुदलाय वानोर् इऱैयै अरुविनैयेन् कळवेऴ् वॆण्णै तॊडुवुण्ड कळ्वा ऎन्बन्” (अक्षय पापों से युक्त मैं, इस क्षण भङ्गुर भौतिक संसार और आध्यात्मिक दोनों के सर्वोच्च स्वामी के प्रति तल्लीन होते हुए, क्षीण हो इस प्रकार कहता हूँ जैसे माता यशोदा जी ने कहा था “हे चोर! तुम मक्खन चुरा कर और छिपाकर खाने में आनन्द मग्न हो”); पेरियाऴ्वार् भी पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में “वॆण्णै अळैन्द कुणुङ्गुम्” मक्खन को मथने से उसकी सुगन्ध आती है, कहते हुए आनन्दित होते हैं और “वॆण्णै विऴुङ्गि वॆऱुम् कलत्तै वॆऱ्-पिडै इट्टु” (मक्खन को निगलने के पश्चात्, वह उसके पात्र को पत्थर पर फेंक देना); कुलशेखर आऴ्वार् पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं “मुऴुदुम् वॆण्णै अऴैन्दु” (मक्खन को पूर्ण रूप से मथते हुए); तिरुप्पाणाऴ्वार् अमलनादिपिरान् में इस प्रकार कहते हैं “वॆण्णै उण्ड वायन्” वह जो मुख से मक्खन खाता है। इस प्रकार सभी आऴ्वारों ने कई विधियों से इस लीला का आनंदमय रसास्वादन किया।

तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने सिऱिय तिरुमडल् में भगवान श्रीकृष्ण के माखन चोरी की लीला का अद्भुत वर्णन किया है। “आराध तन्मैयनाय् आङ्गॊरु नाळ् आय्प्पाडि” (असन्तोष व्याप्त होने के कारण एक दिन श्रीगोकुल में) से आरम्भ करके, साक्षात् नेत्रों के सामने प्रस्तुत होता है कि किस प्रकार बालकृष्ण ने माता यशोदा से छिपकर मक्खन खाया और माता को चोरी का पता लगने पर कैसे उन्हें ऊखल के साथ बाँधकर दण्डित किया और पिटाई की।

वह (बालकृष्ण) केवल अपने ही घर से नहीं अपितु अन्य गोपाङ्गनाओं के घर से भी मक्खन चोरी करते हैं। पेरियाऴ्वार तिरुमोऴि में पेरियाऴ्वार ने दशक “वॆण्णै विऴुङ्गि” कितने अद्भुत रूप से वर्णन किया है कि कैसे गोपिकाएँ माता यशोदा के पास आकर श्रीकृष्ण के द्वारा की गई चोरी का उपालम्भ देतीं हैं। माता यशोदा के द्वारा बालकृष्ण को बाँधे जाने की लीला का आनन्द मधुरकवि आऴ्वार् भी प्राप्त करते हैं जिनका दिव्य संबंध केवल नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) के साथ है। यह श्रीकृष्ण की महिमा है कि वे उनको अपनी ओर आकर्षित करते हैं जो कि अपने आचार्य के प्रति पूर्ण समर्पित हैं।

मक्खन चोरी करते समय बालकृष्ण इतने चञ्चल प्रतीत होते हैं कि उन्हें चोरी को छिपाना भी नहीं आया और इसी कारण रंगे हाथों पकड़े गए। हमारे आचार्यों ने इस लीला में ध्यान मग्न हो आनन्द प्राप्त किया कि “सर्वेश्वरन् जो कि सबके सर्वोच्च स्वामी हैं कैसे माखन चोरी की लीला में व्यस्त हैं।”

लीला सार:-

  • सामान्यतः मक्खन का रंग श्वेत होता है। श्वेत रंग सत्वगुण का प्रतीक है। इससे ज्ञात होता है कि एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) को सत्वगुण और सत्वगुणी ही भाते हैं।
  • जब श्रीकृष्ण दधि, मक्खन ग्रहण कर लेते हैं और पात्र को भङ्ग कर देते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि एम्पेरुमान् (श्रीमन्नारायण) जब उत्सुकता से आत्मा को स्वीकार करते हैं तब इस शरीर को समाप्त कर देते हैं जो आत्मा का इसी संसार में आश्रय स्थल है।
  • भगवान दधि, मक्खन के इसलिए इच्छुक होते हैं क्योंकि उनके भक्त स्वयं हाथों से तैयार करते हैं।
  • माता यशोदा के हाथों से स्वयं को बंधक बनाकर माता से डरना, इसके द्वारा वे अपने भक्तों के प्रति अपने पूर्ण समर्पण को दर्शाते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/03/krishna-leela-7-english/

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