कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ९ – वृन्दावन की ओर प्रस्थान, बहुत से असुरों का वध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

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गोकुल में निरन्तर उत्पात होने के कारण नन्दगोप और मन्त्रकुशल वृद्ध गोपों की मन्त्रों से गोकुल से वृन्दावन जाने का निश्चय किया। वे अनगिनत बैलगाड़ियों के द्वारा यात्रा करके वृन्दावन पहुँचे। वृन्दावन हरे भरे विशाल काननों से आवृत, (लताकुञ्जों से आवृत) पशुओं के हितकर स्थान है। इसीलिए वे अपने लिए वृन्दावन को ही सर्वोत्तम स्थान मानकर विराजते हैं।

वृन्दावन पहुँचने के पश्चात् भी राक्षसों का उत्पात निरन्तर होता रहा। एकबार कंस ने श्रीकृष्ण के वध के लिए दो राक्षसों को भेजा, उन्होंने अपनी युक्ति के अनुसार, एक राक्षस बछड़े में प्रवेश कर गया और दूसरा उस कपित्थ वृक्ष के फल में (बेल में)। श्रीकृष्ण  उनको अनुपस्थित देख उदासीन ही रहे।जब वह बछड़ा श्रीकृष्ण के पास प्रहार करने के लिए आया तो उन्होंने उसे उठाकर कपित्थ फल (बेल पर) फेंक दिया और इस प्रकार दोनों को डाला। इस प्रकार यह लीला “वत्सासुर-कपित्थासुर वधम्” नाम से प्रख्यात हुई। इस लीला का उल्लेख आऴ्वारों ने पासुरों में किया है। नम्माऴ्वार( श्रीशठकोप स्वामी जी) पेरिय तिरुवन्दादि में कहते हैं “आनीन्ऱ कन्ऱुयरत् ताम् ऎऱिन्दु कायुदिर्त्तार्” (गाय द्वारा जन्म लेने वाले बछड़े के साथ कृष्ण ने बेल फल गिरा दिया)। आण्डाळ् तिरुप्पावै में वर्णन करती हैं “कन्ऱु कुणिलाय् ऎरिन्दान्” (बछड़े को छड़ी की तरह फेंक दिया), तिरुमङ्गै आऴ्वार् पेरिय तिरुमोऴि में कहते हैं “विळङ्गनियै इळङ्गन्ऱु कॊण्डु उदिर ऎरिन्दान्” (एक युवा बछड़े के साथ बेल केवल को गिराते हुए)। भूतदाऴ्वार् इरण्डाम् तिरुवन्दादि में कहते हैं कि “ताऴ्न्द विळङ्गनिक्कुक् कन्ऱॆरिन्दु (बछड़े  को बेल फल पर फेंक दिया जिससे वह नीचे आगया)

एक और राक्षस बगुला (बक) के रूप में आया। श्रीकृष्ण ने सहज ही उसकी चोंच से पकड़ कर उसे मार डाला।यह लीला बकासुर वध (उद्धार)के नाम से प्रसिद्ध है और आऴ्वारों के द्वारा व्याख्यायित है। आण्डाळ् तिरुप्पावै में वर्णन करती हैं “पुळ्ळिन्वाय्क् कीण्डानै” (वह जिन्होंने एक पक्षी का मुख चीर दिया), तिरुमङ्गै आऴ्वार् पेरिय तिरुमोऴि में कहते हैं “पुळ्ळिन्वाय् पिळ्न्दाय्” (हाँ! जिसने पक्षी का मुख चीर दिया।)

इस प्रकार जब श्रीकृष्ण बड़े हुए तब उनकी अद्भुत नटखट लीलाएँ अधिक होने लगीं। गौएँ और उनके बछड़ों के साथ क्रीड़ा करना, गोपाङ्गनाओं के द्वारा एकत्र किया हुआ दधि मक्खन चुराना यह सब सामान्य था।

सार:-

  • भगवान ऐसे जीवों को सहज ही जान लेते हैं जो दुष्वृत्ति के साथ अच्छे होने का अभिनय करते हैं और उनका वध (भगवान) कर देते हैं।
  • शत्रु का वध करना भगवान के लिए बहुत सहज है।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/07/krishna-leela-9-english/

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