श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
<< रास क्रीडा
कृष्ण की यह लीला कुडक्कुत्तु भी बहुत अद्भुत है। कुडक्कूत्तु का अर्थ है घड़ा पकड़ना, कटि भाग पर ढोल बांधना, उस ढोल बजाना और नृत्य करना। यह वर्गाकार (चौराहा) में किया जाता है ताकि प्रत्येक उसको देख सके और आनन्द ले सके।ग्वालों के लिए यह महत्वपूर्ण आनन्दवर्धक है। हमारे पूर्वाचार्यों के व्याख्यान में उल्लेखनीय है कि जब ब्राह्मणों को अधिक धन मिलने पर वे यज्ञ करते हैं और जब ग्वालों को अधिक धन मिलता है तब वे घड़ों के साथ इस नृत्य का आनन्द लेते हैं।
श्रीकृष्ण के जन्म से पहले नन्दगोप इस नृत्य में कुशल थे।परन्तु श्रीकृष्ण जन्म के पश्चात् वे योग्य विशेषज्ञ बन गये। श्रीकृष्ण ने इसी नृत्य के माध्यम से गोपाङ्गनाओं को मन्त्रमुग्ध कर दिया।
आऴ्वारों ने अपनी रचनाओं में कई स्थानों पर इस लीला का आनन्द पूर्वक वर्णन किया है। पोय्गै आऴ्वार् (श्री सरोयोगी स्वामी जी) ने मुदल् तिरुवन्दादि में कहा है कि “अरवम् अडल् वेऴम् कुरवै कुड….. कोत्ताडि” (रास क्रीड़ा के नृत्य का आनन्द प्राप्त करना और घड़ों के साथ नृत्य करना)। पेयाऴ्वार् (श्रीमहद्योगी आऴ्वार स्वामी जी) अपने मून्ऱाम् तिरुवन्दादि में कहते हैं “कुडम् नयन्द कूत्तनाय् निन्ऱान्” (ऎम्पॆरुमान् जो अपनी इच्छा से कण्णन् (श्रीकृष्ण) के रूप में अवतरित हुए जिनकी घड़ों के साथ नृत्य करने में रुचि है)। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) अपने तिरुवाय्मोऴि में कहते हैं “वैगुन्दम् कोयिल् कॊण्ड कुडक् कूत्ताम्माने” (ऎम्पॆरुमान् जो परमपद में विराजमान हैं वे घड़ों के साथ नृत्य करने वाले भगवान हैं)। कुलशेखर आऴ्वार् पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं “कुडमाट्टुम्” (घड़ों के साथ नृत्य करते); तिरुमङ्गै आऴ्वार् पेरिय तिरुमोऴि में कहते हैं “तण् कुडन्दैक् कुडमाडि” (वह जो घड़ों के साथ नृत्य करता है जो शांत तिरुकुडन्दै में रहता है)।
तिरूमङ्गै आऴ्वार् अपने शिरिय तिरुमडल् में अद्भुत वर्णन करते हैं “नीरार् कमलम् पोल् सेङ्गण्माल् एन्ऱु ऒरुवन्” से आरम्भ करते हुए श्रीकृष्ण के द्वारा घड़ों के साथ नृत्य करते हुए देख मन्त्रमुग्ध हो गये। आइए आगे की पंक्तियों का आनन्द लें।
नीरार् कमलम् पोल् सॆङ्गण्माल् ऎन्ऱॊरुवन्
पारोर्गळॆल्लाम् मगिऴप् पऱै कऱङ्गच्
चीरार् कुडम् इरण्डेन्दि सॆऴुम् तॆरुवे
आरार् ऎनच्चॊल्लि आडुम् अदु कण्डु
एरार् इळमुलैयार् ऎन्नैयारुम् ऎल्लारुम्
वारायो ऎन्ऱार्क्कुच् चॆन्ऱेन् ऎन् वल् विनैयाल्
तिरूमङ्गै आऴ्वार् का स्त्रीभाव रूप परकाल नायकी है। उन्होंने स्वयं का श्रृंगार किया और खेलने की वस्तुओं में लग गई। उसी समय उनकी सखाओं ने सूचना दी “कमल नयन सर्वेश्वरन् श्रीकृष्ण के स्वरूप में गोकुल में चौराहे पर हैं और दो घड़ों के साथ नृत्य करते हुए, ढोल बजाते हुए सब को आनन्द दे रहे हैं।” अपने प्रबल दु:ख के कारण वह वहाँ देखने और आनन्द प्राप्त करने गयी। उनको देखते ही वह अपना सर्वस्व उनपर लुटा बैठी।
सार:-
- भगवान जीवात्मा को अपना सौंदर्य और लीला दिखा कर आकर्षित करते हैं।
- परकाल नायकी जीवात्मा है खेल की वस्तुओं में व्यस्तता ही आत्मा का सांसारिक सुखों में संलग्न रखना है। कृष्ण परमात्मा हैं। उनका घड़ों के साथ नृत्य उनके सौन्दर्य और लीला को दर्शाता है।परकाल नायकी का महादुख:ख उसकी अनन्य भक्ति है। जीवात्मा का भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण ही सर्वस्व खोना या लुटा देना ही है।
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार – https://granthams.koyil.org/2023/09/29/krishna-leela-22-english/
प्रमेय (लक्ष्य) – https://koyil.org
प्रमाण (शास्त्र) – https://granthams.koyil.org
प्रमाता (आचार्य) – https://acharyas.koyil.org
श्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – https://pillai.koyil.org