श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः
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कृष्ण लीलाओं में एक अति सुन्दर और महत्वपूर्ण तत्व है श्रीकृष्ण और नप्पिन्नैप्पिराट्टि (नीळा देवी) के बीच में सम्बन्ध। हम इसका पूर्णानन्द आऴ्वारों के पासुरों से ले सकते हैं।
प्रथम हमें यह समझना होगा कि “नप्पिन्नैप्पिराट्टि कौन हैं?” उनको नीळा देवी का अवतार माना जाता है। भगवान श्रीमन्नारायण की तीन दिव्य पत्नियां हैं। श्रीदेवी जिनको पॆरियपिराट्टि के नाम से पुकारा जाता है, भूदेवी जो भूमिपिराट्टि के नाम से जानी जाती हैं और नीळादेवी(नीलादेवी)। नीळादेवी नप्पिन्नैप्पिराट्टि के रूप में अवतरित हुई। पराशर भट्टर ने तिरुप्पावै के लिए अपने तनियन् से आरम्भ करते हैं “नीळा तुङ्ग स्तनगिरि तटीय सुप्तम् उद्बोध्य कृष्णम्” अर्थात् नप्पिन्नैप्पिराट्टि जो नीळा देवी का अवतार हैं उनके पर्वतों की ढलान के जैसे वक्षस्थल पर श्रीकृष्ण लेटे हुए हैं। इस तनियन् की टिप्पणी में, पिळ्ळै लोकम् जीयर् पुराण के एक श्लोक का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि नप्पिन्नैप्पिराट्टि यशोदा पिराट्टि (माता) के छोटे भाई कुंभक की बेटी हैं, जो मिथिला के राजा हैं। वे एक और पहचान देते हैं कि उनका जन्म गोपकुल में हुआ है।
श्रीरामावतार में, पॆरियपिराट्टियार् सीता पिराट्टि के रूप में, पुरुषकारम् (भगवान को आत्मा की अनुशंसा करने वाले) के रूप में प्रस्तुत होती हैं। वराहावतार में, भूमि पिराट्टि पुरूषकार के रूप में होती हैं। श्रीकृष्णावतार में, नप्पिन्नैप्पिराट्टि पुरुषकार रूप में होती हैं। यद्यपि रुक्मिणीप्पिराट्टि श्रीकृष्ण की प्रथम दिव्य पत्नी हैं, तब भी नप्पिन्नैप्पिराट्टि का महत्ता अधिक है। आऴ्वारों के पासुरों में भी रुक्मिणी पिराट्टि और सत्यभामा पिराट्टि की अपेक्षा नप्पिन्नैप्पिराट्टि के लिए अधिक पासुर गायें हैं।
नप्पिन्नैप्पिराट्टि के पिताजी ने उनका विवाह करने का निश्चय किया और घोषणा की कि उनके पास जो शक्तिशाली बैल हैं उनको जो नियन्त्रित करेगा उससे विवाह कर दिया जाएगा। जैसे कि नम्माऴ्वार (श्रीशठकोप स्वामी जी) ने दर्शाया कि श्रीकृष्ण के अवतरित होने के दो कारण हैं एक नप्पिन्नैप्पिराट्टि को अङ्गीकार करना और दूसरा वृषभों को वश में करना। उन्होंने उन सातों वृषभों को आलिंगन कर कुचल कर वध कर डाला। नप्पिन्नैप्पिराट्टि ने सहर्ष श्रीकृष्ण से विवाह किया।
पॆरियाऴ्वार् ने अपने पेरियाऴ्वार् तिरुमोऴि में कहा,”पिन्नै मणाळनैप् पेरिल् किडन्दानै”(नप्पिन्नै के पति जो तिरुप्पेर नगर में विश्राम कर रहे हैं।) आण्डाळ् (गोदा देवी)अपने तिरुप्पावै में केवल नप्पिन्नैप्पिराट्टि के माध्यम से श्रीकृष्ण को प्राप्त करने हेतु प्रयास करती हैं। उन्होंने निरन्तर तीन पासुरों में नप्पिन्नैप्पिराट्टि को “उन्दु मदगळिट्रन्” “कुत्तु विळक्कॆरिय” और “मुप्पत्तु मूवर्” । नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मोऴि में नप्पिन्नैप्पिराट्टि को कहते हैं “पिन्नैकॊल् निलमामगळ्कॊल्” (क्या वह नप्पिन्नैप्पिराट्टि हैं या भूमि पिराट्टि हैं?)तिरुमङ्गैआऴ्वार् अपने पॆरियतिरुमॊऴि में कहते हैं,”आयर् पावै नप्पिन्नै तनक्किऱै”(ग्वालिन् के स्वामी, नप्पिन्नै)इनके अतिरिक्त अन्य आऴ्वारों ने कई पासुरों में नप्पिन्नैप्पिराट्टि के विषय में वर्णन किया है।
सार:-
- भगवान को नप्पिन्नैप्पिराट्टि के प्रति अगाध प्रेम है,इसी प्रेम के लिए ही श्रीकृष्ण ने विशेष रूप से यह अवतार लिया। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुविरुत्तम् में वर्णित करते हैं “सूट्टु नन्मालैगळ् तूयनवेन्दि विण्णोर्गळ् नन्नीराट्टि अन्दूबम् तरा निऱ्-कवे अङ्गु ओर् मायैयिनाल् ईट्टिय वॆण्णै तॊडु उण्णप्पॊण्दुमिलेऱ-ऱुवन् कून् कोट्टिडैयादिनै कूत्तु अडलायर् तम् कोम्बिनुक्के” समझाते हुए कहते हैं कि भगवान दो कारणों से एक तो परमपद में नित्यसूरियों द्वारा तिरुवाराधन (पूजा-अर्चना) के बीच श्रीकृष्ण के रूप में इस जगत में आते हैं- १) भक्तों द्वारा अपने हाथों से तैयार गया मक्खन खाने। २) नप्पिन्नैप्पिराट्टि को आलिङ्गन करने।
- श्रीमद्भागवत में, श्रीकृष्ण ने सात बैलों को वश करने और नग्नजित की पुत्री सत्य के सङ्ग विवाह करते दर्शाया है। परन्तु आण्डाळ् श्रीगोकुल में श्रीकृष्ण के साथ नप्पिन्नैप्पिराट्टि का आनन्द लेती हैं।उपनयन संस्कार होने से पहले श्रीकृष्ण दस वर्ष की आयु तक श्रीगोकुल और वृन्दावन में रहे। तत्पश्चात् मथुरा की ओर प्रस्थान किया और श्री गोकुल और वृन्दावन लौट कर नहीं आये।इस कारण से इस लीला को भगवान द्वारा आऴ्वारों को दिव्य दृष्टि से दर्शन करवाया गया
अडियेन् अमिता रामानुजदासी
आधार – https://granthams.koyil.org/2023/10/01/krishna-leela-24-english/
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