कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – २७ – मथुरा में श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और क्रोध

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

<<अक्रूर जी की यात्रा

कृष्ण और बलराम अक्रूर जी के रथ में सवार होकर मथुरा पहुँचे। वे अक्रूर जी को भेजकर प्रसन्नता से मथुरा की गलियों में घूमने लगे। वहाँ की हवेलियों से, नगर की महिलाओं ने कृष्ण और बलराम को आनन्दपूर्वक निहारा।
जबकि वे धनुषोत्सव में जा रहे थे तब भी कृष्ण निराला श्रृंगार करना चाहते थे। उसी समय कंस के वस्त्र धोने वाला धोबी सामने से आया। श्रीकृष्ण उसके पास गये और कहा, “कृपया हमें कुछ सुन्दर वस्त्र दीजिए।” भगवान की महानता को जानें बिना उसने उन्हें वस्त्र देने से मना कर दिया। जबकि श्रीकृष्ण और बलराम से क्रोध करते हुए अपमान किया। श्रीकृष्ण क्रोधित हो गए और अपनी अंगुलियों के पोरों से उसका सिर काट दिया और श्रीकृष्ण ने धोबी के पास रखी गठड़ी को खोला और वस्त्र निकाले और श्रीकृष्ण और बलराम ने वे वस्त्र धारण किए। नम्पिळ्ळै ने नम्माऴ्वार् के पासुर, “निन्ऱवाऱुम् इरुन्दवाऱुम्” के द्वारा इस लीला का बहुत सुंदर वर्णन किया है। एक बार जब एक धोबी ने पॆरिय पॆरुमाळ् के वस्त्र बहुत अच्छे से धोए तब भगवद् रामानुज ने भगवान से उस धोबी को क्षमा करने की आकांक्षा की जिसने श्रीकृष्ण को पहले क्रोधित कर दिया था, उन्होंने वे वस्त्र पॆरिय पॆरुमाळ् के सामने प्रस्तुत किए और उस धोबी को क्षमा करने की प्रार्थना की। पॆरिय पॆरुमाळ् ने भगवद् रामानुज के अनुरोध के उन शब्दों को स्वीकार किया।

तभी श्रीकृष्ण को सुन्दर मालाएँ पहनने की इच्छा हुई। उन्होंने सुदामा नामक एक मालाकार को ढूंढा, जो एक संकीर्ण गली में रहता था और उनके घर पहुँचे। श्रीकृष्ण और बलराम के दर्शन करके मालाकार बहुत प्रसन्न हुए। उसने उनका सहृदय आदर-सम्मान किया और अपने द्वारा बनाई मालाओं में से सबसे सुंदर मालाएँ उनको समर्पित कर दीं। भगवान बहुत प्रसन्न हुए और कृपादृष्टि बरसाई और वहाँ से चले गए। इस लीला को पॆरियवाच्चान् पिळ्ळै ने नाच्चियार् तिरुमोऴि के पासुर की टिप्पणी में कहा,‌ “माड माळिगै सूऴ् मदुरैप् पदि नाडि ननतॆरुविन् नडुवे वन्दिट्टु” (मथुरा चारदिवारी से घिरा महल, श्रीकृष्ण ने ढूँढा और हमारी गली में आ गए)। तिरुवाय्मोऴि पासुर “पूसुम् सान्दु” की टिप्पणी में वादि केसरी अऴगिय मणवाळ् जीयर् ने इस लीला को दर्शाया है।

तब भगवान को सुगंधित चन्दन के लेप से अपना अभिषेक करने की इच्छा हुई, उसी समय त्रिवक्रा नामक कूबड़ी स्त्री थी वह सुगंधित घिसे हुए चन्दन से कंस की सेवा करती थी, जो दूसरी ओर से आ रही थी। तब श्रीकृष्ण ने उससे सुगंधित चन्दन के लेप को देने का अनुरोध किया तो उसने निम्न कोटि का चन्दन लेप दिया,‌ तब श्रीकृष्ण ने उससे उच्च कोटि का चन्दन लेप देने को कहा। वह श्रीकृष्ण के द्वारा उच्च कोटि के चन्दन लेप की गुणवत्ता को जानने की क्षमता देखकर आश्चर्यचकित हो गई। श्रीकृष्ण उस उत्तम चन्दन लेप को अपने दिव्य मङ्गल शरीर पर धारण कर प्रसन्न हो गये और उसका मङ्गलाशासन करने लगे। श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य चरणकमलों से उसके पैर के अंगूठे को दबाया और दिव्य करकमल से उसकी ठुड्डी को ऊपर उठाया जिससे उसका कुबड़ापन दूर हो गया और वह कांतिमय हो गई। इस लीला को पॆरियाऴ्वार् ने अपने पेरिय तिरुमोऴि के एक पासुर में दर्शाया है, “नाऱिय सान्दम् नमक्किऱै नल्गु ऎन्न तेऱि अवळुम् तिरुवुडम्बिल् पूस ऊऱिय कूनिनै उळ्ळे ऒडुङ्ग अन्ऱु एऱ उरुविनाय्। अच्चो अच्चो ऎम्पॆरुमान्! वारा अच्चो अच्चो” (आपने कहा था, “कृपया थोड़ा सुगंधित चन्दन का लेप दें।” श्रीकृष्ण की महानता की महिमा को जानने पर कूनी ने आप पर चन्दन का लेप लगाया और आपने उसके कुबड़ापन को दूर कर दिया। आप क्यों नहीं आएँगे मेरे प्रभु?”)

इस प्रकार भगवान ने अपना क्रोध धोबी पर और मालाकार और त्रिवक्रा पर आशीर्वाद बरसाया।

सार:-

  • यदि जो भगवान के प्रति प्रेम पूर्वक समर्पित होता है वह भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करता है। जो उनका विरोध करता है तो वह क्रोध प्राप्त करेगा। इस प्रकार प्रत्येक को उसके उपयुक्त परिणाम प्रदान करके “साम्य” नामक गुण को प्रकट करते हैं।
  • यदि कोई भगवान के प्रति थोड़ा सा भी प्रेम प्रदर्शित करता है तो वे उस पर बहुत आशीर्वाद बरसाते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/03/krishna-leela-27-english/

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