कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ३० – कंस का वध

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श्रृंखला

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कंस के रक्षक कुवलयापीड नामक हाथी और मल्लयोद्धाओं के वध के पश्चात्, एक ऊँचे मञ्च पर सिंहासन पर बैठा कंस, काँपने लगा। श्रीकृष्ण ने उसका वध करने का निश्चय किया। वे अवतरित होने के दिन से ही इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

कंस ने अपने सैनिकों को आदेश दिया, “इन दोनों बालकों को राज्य से बाहर निकाल दो। वसुदेव और उग्रसेन को मार डालो।” जैसे ही श्रीकृष्ण कंस की ओर दौड़े कंस ने अपनी खड्ग निकाल कर श्रीकृष्ण पर प्रहार किया। परन्तु श्रीकृष्ण ने उसको केशों से खींच कर नीचे उतार दिया और उस पर बैठ गए और वध कर डाला। जैसे ही कंस के भाई उनपर प्रहार करने आए श्रीकृष्ण और बलराम ने उनका वध कर दिया। जबकि कंस सदा श्रीकृष्ण के बारे में ही सोचता था इसलिए श्रीकृष्ण की कृपा से उसने भगवान के जैसे सुन्दर रूप को प्राप्त किया।

आऴ्वारों ने कई पासुरों में श्रीकृष्ण के द्वारा कंस के वध की लीला का आनन्द लिया है।पॆरियाऴ्वार् अपने पॆरियाऴ्वार् तिरुमॊऴि में कहते हैं, “कऱुत्तिट्टु ऎदिर् निन्ऱ कञ्जनैक् कॊन्ऱान्” (श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया जिसने चालाकी से उनका विरोध किया था)। आण्डाळ् (श्रीगोदाम्बा जी) अपने नाच्चियार् तिरुमोऴि में कहतीं हैं, “कञ्जनै वञ्जनैयिनाल् सेट्रवन्” (जिसने कंस को युक्ति से मार डाला)। तिरुमऴिसै आऴ्वार् ने तिरुच्चन्द विरुत्तम् में वर्णन किया है, “कञ्जनैक् कडिन्दु” (दण्डित कंस)। नम्माऴ्वार् (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मॊऴि में कहते हैं, “सादु सनत्तै नलियुम् कञ्जनैच् चादिप्पदऱ्-कु आदियञ्जोदि उरुवै अङ्गु वैत्तिङ्गुप् पिऱन्दु” (एम्पॆरुमान् का अवतरण उनके आदि आध्यात्मिक स्वरूप के साथ हुआ, जिसमें परमपद के जैसे दिव्य वैभव है, कंस को नियंत्रित करने के लिए जोकि देवकी, वसुदेव जैसे महान लोगों को दु:ख पहुँचा रहा था)।

सार-

  • भगवान ‌का कोई शत्रु नहीं है। परन्तु वह अपने भक्तों के शत्रु का नाश कर देते हैं 
  • भगवान उन लोगों को अत्यन्त प्रताड़ित करते हैं, जो उनके भक्तों को पीड़ा देते हैं, भगवान उन्हें दीन बनाकर उनका विनाश कर देते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी 

आधार: https://granthams.koyil.org/2023/10/06/krishna-leela-30-english/

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